हीर-राँझा की सच्ची प्रेम कहानी | Heer Ranjha True Love Story In Hindi
Heer Ranjha History – हीर-राँझा एक ऐसा नाम जो परिचय का मोहताज नहीं है। दुनिया का हर इंसान इस नाम से वाकिफ है। ऐसे दुनिया में कई मोहब्बत के किस्से और कहानियां है, जो हमें यह प्रमाण देते हैं कि, सच्चा प्यार ना कभी हारता हैं ना कभी झुकता हैं। सच्चा प्यार हमेशा अमर रहता हैं। प्यार करने वालों पर दुनिया चाहे कितना भी जुल्म ढाहे, अंत में प्यार की ही जीत होती है।
इन्हीं कहानियों में से एक कहानी हीर-रांझा की हैं, जिसने प्यार की एक ऐसी छाप छोड़ी है। जिनके नाम की प्रेमी जोड़े कसमें खाते है। पूरी दुनिया आज भी उन्हें उदब से याद करता है। हीर-राँझा का प्यार अमर हैं। आइए जानें हीर-रांझा की सच्ची प्रेम कहानी…
True Love Story in Hindi
Table of Contents
ईश्क को शब्दों में बयाँ कर पाना बहुत मुश्किल है। प्यार की कोई कोई परिभाषा नहीं है। इसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है। यह एक ऐसा अहसाह है जिसे दो प्रेम करने वाले ही समझ सकते हैं। प्यार एक समुद्र है जिसका अंतिम सिरा को नहीं खोज पाया है। प्यार वह रस्सी है जो, दो लोगों को बहुत गहराई से आपस में जोड़ता है। यह एक ऐसा बंधन है जो दो लोगों की रूह को आपस में मिलाता है। ईश्क आसानी से किसी से हो तो सकता है पर आसानी से ख़त्म नहीं हो सकता। मोहब्बत को सिर्फ वहीं लोग महसूस कर सकते हैं जो सच में किसी से सच्चा प्यार करता है।
ये हैं कहानी – About Heer Ranjha True Love Story in Hindi
यह कहानी भारत के पड़ोसी मूल्क पाकिस्तान से शुरू होती हैं। करीब 7वीं सदी की बात है। पड़ोसी मूल्क पाकिस्तान की चेनाब नदी के किनारे पर तख़्त हजारा नामक गाँव था। जहां पर मौजू चौधरी गाँव का मुख्य ज़मींदार रहता था। उसके चार बेटे थे और राँझा उन चारों भाइयों में सबसे छोटा था। राँझा का असली नाम ढीदो था। राँझा उसका उपनाम यानी निकनेम था, पूरा गांव उसे राँझा कहकर पुकारता था। राँझा चारो भाइयों में छोटा होने के कारण अपने पिता का बहुत लाडला था। राँझा के दुसरे भाई खेती किसानी कर अपना भरण पोषण करते थे। दूसरी ओर राँझा बाँसुरी बजाता रहता था। जिस कारण उसके भाई रांझा से चिढ़ा करते थे।
रांझा को बचपन में ही खूबसूरती से इश्क था। उसने अपने लिए सपनों में ही एक हसीना की तस्वीर दिमाग में बना ली थी। आपको जानकर हैरानी होगी कि, रांझा बड़ा ही आशिक मिजाज था। 12 वर्ष की कम उम्र में ही उसके पिता का साया उसके सिर से उठ गया था। पिता की मौत के कुछ दिनों बाद ही रांझा का उसके भाइयों से विवाद हो गया। अपने भाइयों से अलग होकर वह पूरा दिन पेड़ के नीचे बैठकर सपनों की शहजादी के बारे में चिंतन करता था। एक बार एक पीर ने उससे पूछा-तुम इतने दुःखी क्यों हो? तब रांझा ने पीर को अपने द्वारा रचित प्रेम गीत सुनाए, जिसमें सपनों की शहजादी का उल्लेख था। पीर ने बताया कि तुम्हारे सपनों की शहजादी हीर के अलावा और कोई नहीं हो सकती। यह सुन रांझा अपनी हीर की तलाश में गाँव से बाहर की ओर निकल पड़ा।
एक रात रांझा ने एक मस्जिद में शरण ली, दूसरे दिन वह मस्जिद से रवाना हो गया और एक दुसरे गाँव में पंहुचा जो हीर का गाँव था। हीर एक सियाल जनजाति के सम्पन्न जाट परिवार से ताल्लुक रखती थी। वर्तमान समय में यह स्थान पंजाब ,पाकिस्तान में है। पहली बार हीर को देखते ही रांझा हीर को अपना दिल दे बैठा और समझ गया की यही मेरी सपनो की शहज़ादी हैं। हीर बहुत सख्त दिमाग वाली लड़की थी। एक रात रांझा चुपके से हीर की नाव में सो गया। यह देख हीर क्रोधित हो गई, लेकिन जैसे ही उसने जवाँ मर्द रांझे को देखा, वह अपना आक्रोश भूला बैठी और रांझा की आंखों में डूब गई। तब रांझा ने उसे अपने सपनों की बात कही। रांझे पर फिदा हीर उसे अपने घर ले गई और अपने यहाँ नौकरी पर रखवा दिया।
हीर के पिता ने रांझा को मवेशी चराने का काम सौंप दिया। हीर, रांझा की बांसुरी की आवाज में मंत्रमुग्ध हो जाती थी और धीरे धीरे हीर को रांझा से गहरा प्यार हो गया। वो कई सालो तक गुप्त जगहों पर मिलते रहे, लेकिन हीर के चाचा को इसकी भनक लग गई और सारी बात हीर के पिता चुचक और माँ मालकी को बता दी।
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अब हीर के घरवालो ने राँझा को नौकरी से निकाल दिया और दोनों को मिलने से मना कर दिया। हीर को उसके पिता ने सैदा खेरा नाम के व्यक्ति से शादी करने के लिए बाध्य किया। मौलवियों और उसके परिवार के दबाव में आकर उसने सैदा खरा से निकाह कर लिया। जब इस बात की खबर राँझा को पता चली तो उसका दिल टूट गया। वो ग्रामीण इलाको में अकेला दर-दर भटकता रहा। एक दिन उसे एक जोगी गोरखनाथ मिला, गोरखनाथ जोगी सम्प्रदाय के “कानफटा” समुदाय से था और उसके सानिध्य में रांझा भी जोगी बन गया।
रब्ब का नाम लेता हुआ वो पुरे पंजाब में भटकता रहा और अंत में उसे हीर का गाँव मिल गया जहा वो रहती थी। वो हीर के पति सैदा के घर गया और उसका दरवाजा खटखटाया उसकी आवाज सुनकर हीर बाहर आई और उसे भिक्षा देने लगी। दोनों एक-दूसरे को देखते रह गए। रांझा रोजाना फकीर बनकर आता और हीर उसे भिक्षा देने। दोनों रोजाना मिलने लगे। यह हीर की भाभी ने देख लिया। उसने हीर को टोका तो रांझा गाँव के बाहर चला गया। सारे लोग उसे फकीर मानकर पूजने लगे। उसकी जुदाई में में हीर बीमार हो गई। जब वैद्य हकीमों से उसका इलाज न हुआ तो हीर के ससुर ने रांझे के पास जाकर उसकी मदद माँगी। रांझा हीर के घर चला आया। उसने हीर के सिर पर हाथ रखा और हीर की चेतना लौट आई।
जब लोगों को पता चला कि वह फकीर रांझा है तो उन्होंने रांझा को पीटकर गाँव से बाहर धकेल दिया। फिर राजा ने उसे चोर समझकर पकड़ लिया। रांझा ने जब राजा को हकीकत बताई और अपने प्यार की परीक्षा देने के लिए आग पर हाथ रख दिया तो उसने हीर के पिता को आदेश दिया कि वह हीर की शादी रांझा से कर दे। राजा की आज्ञा के डर से उसके पिता ने मंजूरी तो दे दी, लेकिन शादी के दिन हीर के चाचा कैदो ने हीर खाने में जहर मिला दिया ताकि यह विवाह नहीं हो सके। यह बात जैसे ही राँझा को मिली वो दौड़ता हुआ हीर के पास पहुचा लेकिन बहुत देर हो चुकी थी।
हीर ने वो खाना खा लिया था जिसमे जहर मिला था और उसकी मौत हो गयी। रांझा अपने प्यार की मौत के दुःख को झेल नहीं पाया और उसने भी वो जहर वाला खाना खा लिया और उसके करीब उसकी मौत हो गयी। हीर-रांझा को उनके पैतृक गाँव झंग में दफन किया गया। जहाँ आज भी प्रेम का मज़ार बना हुआ हैं। भले ही हीर मर गई, रांझा मर गया, लेकिन उनकी मोहब्बत आज भी जिंदा है।
हीर-राँझा की प्रेम कहानी पर आधारित कई फ़िल्मे और धारावाहिक बनी – Heer Ranjha Film
- भारत-पाकिस्तान विभाजन से पहले हीर-रांझा / Heer Ranjha नाम से 1928 , 1929 , 1931 और 1948 में कुल चार फिल्मे बनी हालांकि यह चारो फिल्में दर्शकों के दिल में नहीं उतर सकी।
- भारत पाकिस्तान के विभाजन के बाद पहली बार 1971 में हीर रांझा / Heer Ranjha फिल्म भारत में बनी जिसमे राजकुमार और प्रिया राजवंश मुख्य कलाकार थे और ये फिल्म काफी सफल रही।
- 2009 में हीर-रांझा फिल्म पंजाबी में बनी जिसमे गुरदास मान मुख्य अभिनेता थे।
- पाकिस्तान में भी 1970 में हीर-रांझा फिल्म बनी थी और 2013 में धारावाहिक ।