Lord Shri Krishna Janmasthaan : साल 2019 नवंबर में श्री राम जन्मभूमि (Ram Janmabhumi Temple) को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का फैसला आया था. मंदिर निर्माण का भूमि पूजन ही हुआ है कि, अब श्री कृष्ण जन्मभूमि का मुद्दा कोर्ट पहुंच गया है. इस बारे में एआईएमआईएम (AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) ने भी सवाल खड़ा किया है कि जब श्रीकृष्ण जन्मस्थान (Lord Shri Krishna Janmasthaan) सेवा संघ और शाही ईदगाह ट्रस्ट (Eidgah Masjid Trust) के बीच का विवाद 1968 में सुलझा लिया गया था, तो यह विवाद फिर क्यों? दरअसल, मथुरा कोर्ट (Mathura Civil Court) में श्रीकृष्ण जन्मभूमि को लेकर एक वाद दायर हुआ है.
यूपी के मथुरा सिविल कोर्ट में एडवोकेट विष्णु जैन ने संपूर्ण कृष्ण जन्मभूमि पर दावा ठोका है. वाद में जैन ने कहा है कि, श्री कृष्ण के भक्तों के लिए भूमि पवित्र स्थान है. परिवाद में जन्मस्थान की पूरी 13.37 एकड़ की ज़मीन पर दावा ठोकते हुए कहा गया है कि 1968 में समझौता हुआ था, जो मान्य नहीं किया जा सकता.शाही ईदगाह मस्जिद को हटाया जाना चाहिए.
चलिए लेख के जरिए पूरे मामले को बारीकी से समझते हैं, और जानते हैं कि दावा क्या कहता है और क्या हैं कृष्ण जन्मभूमि से जुड़े ऐतिहासिक रोचक तथ्य.
क्या है इस दावे का दावा?
जैन ने कोर्ट में दावा किया गया है कि श्रीकृष्ण का जन्म कंस के कारागार में हुआ था. पूरे इलाके को ‘कटरा केशव देव’ के नाम से जाना जाता है. कृष्ण जन्म की असली जगह वहां है, जहां मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट की प्रबंधन कमेटी ने निर्माण किया है. मुगल शासक औरंगज़ेब ने मथुरा में कृष्ण मंदिर को नष्ट करवाया था. जहां पर केशव देव मंदिर था, वहीं जो मस्जिद बनवाई गई, उसे ईदगाह के नाम से आज जाना जाता है.
क्या चाहता है ये परिवाद?
परिवाद के जरिए मांग की गई है कि, ट्रस्ट मस्जिद ईदगाह की प्रबंधन कमेटी ने जो निर्माण करवाए हैं, उन्हें प्रबलता से हटाया जाए. सुन्नी सेंट्रल बोर्ड की सहमति से कमेटी के निर्माणों को अतिक्रमण कहते हुए दावा है कि कटरा केशव देव बस्ती पूरी तरह से ‘श्रीकृष्ण विराजमान’ की है. उक्त निर्माणों को अवैध बताते हुए हटवाने की मांग के साथ ही इस परिवाद में यह भी मांग है कि सुन्नी वक्फ बोर्ड, ट्रस्ट ईदगाह और उससे जुड़े तमाम कर्मियों को यहां से हटाने की कवायद जल्द शुरू की जाए.
क्या कहता है इतिहास?
हम 1804 से की ओर चलते हैं, जब मथुरा ब्रिटिश नियंत्रण में था. ईस्ट इंडिया कंपनी ने कटरा की ज़मीन नीलाम कर दी थी, जिसे 1815 में बनारस के राजा पटनीमल ने खरीद लिया था. राजा खरीदी गई भूमि पर मंदिर बनवाना चाहते थे, लेकिन ऐसा हो नहीं हुआ. और राजा के वारिसों के पास ही खरीदी गई जमीन पड़ी रही.
अब हुआ यूं कि, राजा के वारिस राज कृष्ण दास के समुख ज़मीन को लेकर विवाद खड़ा हुआ. 13.37 एकड़ भूमि पर मथुरा के मुस्लिमजनों ने कोर्ट केस लड़ा, लेकिन हुआ यूं कि, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 1935 में राज कृष्ण दास के हक में फैसला सुना दिया. जिसके बाद 1944 में भूमि दास से पंडित मदनमोहन मालवीय ने 13000 रुपए में खरीद ली, जिसमें जुगलकिशोर बिड़ला ने आर्थिक सहायता राशि दी. मालवीय की मौत के बाद बिड़ला ने यहां श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट बनाया, जिसे वर्तमान में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के नाम से जाना गया.
1953 में जयदयाल डालमिया के आर्थिक सहयोग से बिड़ला ने इस भूमि पर मंदिर कॉम्प्लेक्स का निर्माण करवाया. जिसके बाद फरवरी 1982 में मंदिर निर्माण पूरा हुआ. मालूम हो कि, तीसरी पीढ़ी के अनुराग डालमिया ट्रस्ट के जॉइंट ट्रस्टी हैं. निर्माण में उद्योगपति रामनाथ गोयनका का भी आर्थिक सहयोग रहा है.
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क्या था 1968 में हुआ करार?
वर्ष 1958 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ ने मालिकाना हक नहीं होते हुए भी कई प्रकार के फैसले शुरू किए. साल 1964 में भूमि पर नियंत्रण के लिए सिविल केस दायर करने के बाद इस संस्था ने खुद ही मुस्लिम पक्ष के साथ समझौता किया था. समझौते के अंतर्गत दोनों पक्षों ने कुछ ज़मीन एक दूसरे को भूमि सौंप दी. जिस जगह मस्जिद है, वह जन्मस्थान ट्रस्ट के नाम पर दर्ज हैं.
समझौते के बाद दोबारा मथुरा की सिविल कोर्ट में एक और वाद दायर हुआ था, जो श्रीकृष्ण जन्म सेवा संस्थान और ट्रस्ट के बीच समझौता हो जाने से बंद हो गया था. खबरों की मानें तो 20 जुलाई 1973 को कोर्ट ने यह निर्णय दिया था कि, ताज़ा परिवाद में कोर्ट के उस फैसले को चुनौती देकर उसे रद्द किए जाने की मांग है.
बाबरी विध्वंस के बाद
1992 में जब बाबरी मस्जिद गिराई गई थी तब वृंदावन निवासी मनोहर लाल शर्मा ने मथुरा जिला अदालत में एक याचिका दायर कर साल 1968 के समझौते को चुनौती दी थी. वाद के तहत 15 अगस्त 1947 के बाद से पूजास्थलों को यथास्थिति में रखने का प्रावधान हैं.
बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद से ये कयास लगाए गए थे कि विश्व हिंदू परिषद व हिंदुत्व एजेंडा वाली संस्थाओं का अगला निशाना ईदगाह मस्जिद हो सकती है, जो कृष्ण जन्मस्थान के पास स्थित है.
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