भारत हमेशा से कृषकों की भूमी रही है. भारतीय लोगों के बीच आज भी धारणा है कि, खेती किसानी तो सिर्फ़ अनपढ़ और गरीब लोगों का पेशा है. ये जानते हुए कि किसान के खेत में बहाए गए पसीने से ही उनके घर की थाली में रोटी आती है. लेकिन खेती अनपढ़ लोगों का पेशा है, ये बात पूरी तरह सच नहीं है. काेरोना महामारी के बाद से देश में खेती की ओर पढ़े लिखे युवाओं का रुझान बढ़ा है. खासकर सब्जियों की खेती की ओर, आज देश में ऐसे भी लोग हैं, जो बहुत पढ़े लिखे होने के बावजूद खेती कर रहे हैं. क्योंकि उन्हें आधुनिक खेती के फायदे भली-भांति पता हैं. आइए आपको आज हम एक ऐसे ही छोटे किसान एकलव्य कौशिक (Eklavya kaushik) बिहार के बेगूसराय (Begusarai) के रहने वाले हैं. जिसने यूट्यूब (You tube) पर देखकर कैसे बदल दी खेती की तस्वीर.
एकलव्य कौशिक (Eklavya kaushik)
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एकलव्य कौशिक (Eklavya kaushik) बिहार के बेगूसराय (Begusarai) के रहने वाले हैं. जन्म साल 2006 में हुआ था. एकलव्य बताते हैं कि उनके घर में अभी तक पुराने ढंग से केवल धान गेहूँ और कुछ दालें बोते थे. ये ऐसी फ़सल थी जो मौसम और बारिश सही होने पर तो फायदा देती थी. लेकिन यदि मौसम ने साथ नहीं दिया तो कई बार घाटे की खेती भी बन जाती थी. ऐसे में एकलव्य हमेशा से इसका कोई विकल्प तलाशना चाहते थे.
You Tube पर देखी स्ट्रॉबेरी की खेती Strawberry Farming in Bihar
एकलव्य दसवीं कक्षा में पढ़ते हैं। ऐसे में वह स्मार्टफोन का प्रयोग बखूबी करते हैं। एक दिन उन्होंने यूट्यूब पर देखा कि स्ट्रॉबेरी की खेती (Strawberry farming) का वीडियो देखा। वीडियो में उन्होंने देखा इससे अच्छा मुनाफा भी कमाया जा सकता है। साथ ही उनके गाँव का मौसम और मिट्टी भी इसके अनुकूल हैं। बस मानो उन्हें स्ट्रॉबेरी की खेती भा गई।
1 हज़ार पेड़ों से शुरू की खेती
एकलव्य बताते हैं कि जब उन्होंने सबको बताया कि अब वह धान गेहूँ की बजाय स्ट्रॉबेरी की खेती करने जा रहे हैं. तो शुरुआत में लोगों ने उनका खूब मजाक बनाया. लेकिन वह किसी की बात से रुके नहीं। उन्होंने 2700 रुपए में हिमाचल प्रदेश से 1 हज़ार पौधे मंगाए जो कि ऑस्ट्रेलियन प्रजाति के थे. इस काम में उनके फूफा ने बखूबी साथ दिया जो जियोलाॅजी के प्रोफेसर हैं. जिनका नाम शैलैंन्द्र प्रियदर्शी है. उन्होंने उनके खेत की मिट्टी को देखा और कहा कि ये मिट्टी स्ट्रॉबेरी की खेती (Strawberry farming) के लिए अनुकूल है.
एकलव्य बताते हैं कि उन्होंने ये सब काम कोरोना महामारी के दौरान साल 2020 में लॉकडाउन के दौरान किया. जब वह घर में फुर्सत में बैठे थे। Youtube पर ही उन्होंने देखा कि पहले खेत की जुताई करके मिट्टी को भुरभुरी बना दिया जाता है. जिसके बाद स्ट्रॉबेरी की बुआई की जाती है. नमी को ध्यान में रखकर सिंचाई की जाती है. परिणाम यह हुआ है कि, आज उनके खेत में स्ट्रॉबेरी के फल भी आने शुरू हो गए हैं.
फायदा ही फायदा है
एकलव्य बताते हैं कि स्ट्रॉबेरी की खेती बड़े फायदे का सौदा है, क्योंकि इसमें जोखिम के साथ कम लागत भी आती है. ऐसे में यदि इसे लोकल बाज़ार में बेचा जाए तो इसकी क़ीमत 50 से 80 रुपए किलो तक मिलती है. लेकिन यदि बड़े बाज़ार में बेचा जाए तो क़ीमत बढ़ाकर 600 रुपए तक पहुँच जाती है. एकलव्य की फ़सल भी तैयार हो चुकी है. बहुत से लोगों ने संपर्क भी शुरू कर दिया है. ऐसे में उनका प्लान है कि जब उनकी ये फ़सल बिक जाएगी, तो आगे बड़े पैमाने पर खेती करेंगे.
क्यों की स्ट्रॉबेरी की खेती? Strawberry farming
एकलव्य का तर्क है कि, वह किसान परिवार से आते हैं. बचपन से ही वह गाँव में रहे हैं. देखते आए हैं कि कैसे बाढ़ आ जाने पर सूखा पड़ जाने पर सारी खेती नष्ट हो जाती थी. कई बार तो घर में खाने लायक अनाज भी नहीं बचता था। ऐसे में बचपन से ही उनका सपना था कि वह कोई बदलाव ज़रूर करेंगे. आख़िर इस तरह तो कभी खेती में फायदा होगा ही नहीं. इसी सोच और प्रेरणा को लेकर वह बदलाव को अपने जीवन में उतार चुके हैं. साथ ही लोगों को इस बदलाव से जुड़ने के लिए प्रेरित भी कर रहे हैं.
माता-पिता ने दिया भरपूर साथ
एकलव्य बताते हैं कि जब उनके दिमाग़ में ये विचार आया तो उन्होंने माता पिता के साथ साझा किया. लेकिन उनके माता-पिता ने इसका थोड़ा भी विरोध नहीं किया. उनके पिता रविशंकर (Ravishankar) ट्रांसपोर्ट में गाड़ी चलने का काम करते हैं. आज उनका परिवार एकलव्य के ऊपर गर्व करता है कि इतनी कम उम्र में भी उनके बच्चे ने एक नई सोच को दिशा दी है. एकलव्य फिलहाल दसवीं कक्षा में पढ़ते हैं साथ-साथ खेती भी करते हैं.एकलव्य आज 14 साल की उम्र में ही पूरे इलाके में मिसाल बनकर उभरा है.
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