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संस्कृत में रोगों के नाम चित्र सहित और उनकी संक्षिप्त जानकारी
Disease Name In Sanskrit And Hindi
मनुष्य और रोग का जन्म जन्मातंर का नाता है. यदि स्वास्थ्य पर ध्यान ना दिया जाएं तो रोग होना स्वाभाविक है लेकिन एक अच्छी दिनचर्या और पौष्टिक भोजन के द्वारा हम इन्हें नियंत्रित कर सकते हैं. कुछ बीमारियाँ ऐसे होती हैं जिनसे हम ठीक हो जाते हैं लेकिन कुछ बीमारियाँ ऐसी हैं जिनसे मुक्ति मिलना दुर्लभ हो जाता है. आइये जानते हैं संस्कृत में रोगों के नाम चित्र सहित –
1. अक्षिपीडा – आँख का आना – Conjunctivitis
Table of Contents
आँख आना का संस्कृत नाम अक्षिपीडा है. इसे अंगेजी में Conjunctivitis कहते हैं. आमतौर पर यह बीमारी गंदगी के कारण होती है. इसमें आँख के सफ़ेद भाग की बाहरी सतह और पलक की आंतरिक सतह पर सूजन आ जाती है. सूजन आने के कारण आँख गुलाबी या लाल दिखाई देती है. आँख आने पर बेहद ही कष्टदायक पीढ़ा होती है, और पलकों में खुजली होती है. आँख से आंसू आते हैं व कीचड़ जम जाता है. उपचार के रुप में आंखों में गुलाब जल डालना चाहिए. यह बीमारी करीब एक सप्ताह तक अपना असर दिखाती है.
2. आमातिसारः – आंव – Dysentery
आंव को संस्कृत में आमातिसारः कहते हैं. इसमें दस्त के साथ खून भी आता है. क्षेत्रिय भाषा में इसे पेचिस भी कहा जाता है. यह संक्रमण होने के कारण जन्म लेता है, जो आँतों में होता है. इसमें पेट के निचले हिस्से में दर्द होता है. इसके उपाचार के लिए खान – पान का ध्यान रखना बेहद ही आवश्यक होता है.
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3. वमनम् / वमथुः – उल्टी – Vomiting
उल्टी को संस्कृत में वमनम्/वमथुः कहते हैं. संक्रमित भोजन करने से या किसी संक्रमित चीज़ के सम्पर्क में आने से हमारा प्रतिरक्षा तंत्र उसे उल्टी के रूप में शरीर से बाहर निकालता है. कभी – कभी अधिक भोजन कर लेने के कारण भी उल्टी हो जाती है.
4. कफः – बलगम – Cough
बलगम को संकृत में कफः कहते हैं. इसमें गले में कफ जम जाता है जो मुँह के रास्ते से खांसते समय बाहर निकलता है. यह अन्दर फेंफडों में जमने वाला गाढ़ा पदार्थ होता है. इसमें श्वांस नाली में परेशानी होती है. कभी – कभी तो बलगम के साथ खून भी आ जाता है. घरेलु उपचार की बजाए चिकित्सकों का परामर्श अवश्य लें.
5. कुष्ठः – कोढ़ – Leprosy
कोढ़ को संस्कृत में कुष्ठः कहते हैं. यह पूरी उम्र यानी लम्बे समय तक चलने वाला रोग है जो कि माइकोबैक्टिरिअम लेप्राई और माइकोबैक्टेरियम लेप्रोमेटॉसिस जैसे जीवाणुओं के कारण होता है. यह एक छुआ – छूत की बीमारी है. जो भारत में प्राचीन समय से देखने में आ रही है. यह रोग त्वचा पर होता है जिसमें जीवाणु होते हैं और यह फैलता ही जाता है. कोढ़ की बजह से चमड़ी पर असर पड़ता है और व्यक्ति को हाथ या पाँव में लकवा भी लग जाता है.
6. विषव्रणम् – कैंसर – Cancer
कैंसर को संस्कृत में विषव्रणम् कहते हैं. हम सभी जानते हैं कि हमारा शरीर कई सारी कोशिकाओं से मिलकर बना है. हमारे शरीर को जितनी कोशिकाओं की जरुरत होती है उतनी कोशिकाएं बनती जाती हैं. कई बार ऐसा भी होता है कि असामान्य कोशिकाएं बनती जाती हैं और सामान्य कोशिकाएं नियंत्रण खो देती हैं. यही असामान्य कोशिकाएं ऊतकों पर हमला कर देती हैं और ये शरीर के हिस्सों में जाकर कैंसर का रूप ले लेता है. यह एक गंभीर बीमारी है. रोगी को इससे बचाना मुश्किल हो जाता है
7. कुब्जः – कुबड़ा – Humpback
कुबड़ा को संस्कृत में कुब्जः कहते हैं. इस बीमारी में पीठ पर आसामान्य बड़ा गोलाकार उभार बन जाता है जिसे कूबड़ कहते हैं. यह किसी भी उम्र के लोगों को हो सकता है. अत्यधिक कार्य के भार के कारण या अधिक समय तक एक ही स्थान पर बैठे रहने से इस बीमारी के होने की संभावना शत प्रतिशत रहती है. सामान्यतः बूड़े होने पर अक्सर यह महिलाओं को हो जाता है. यह रीढ़ की हड्डी में विकृति के कारण हो जाता है.
8. क्षयः – क्षयरोग – Tuberculosis
क्षयरोग को संस्कृत में क्षयः कहते हैं. क्षयरोग आमतौर पर फेंफडों में होता है. इसमें व्यक्ति खांसता है, छींकता हैं. खांसने व छीकने से यह बीमारी फैलती है, यह एक गंभीर बीमारी है. यह माइकोबैक्टीरियम के कारण होता है. इसका ईलाज संभव है. शासकीय अस्पताल में इसके लिए एक अलग से विभाग बनाया जाता है, जो रोगी को प्रतिसप्ताह गोलियां देते है. यह लंबे समय तक चलने वाली बीमारी है.
9. पामा – खसरा – Measles
खसरा को संस्कृत में ‘पामा’ कहते हैं. यह श्वसन नली में होने वाला वायरल संक्रमण है. यह एक संक्रामक रोग है. यह खांसने, छीकने, लार, बलगम आदि से फैलता है. यह रोग पहले बहुत होता था लेकिन वैक्सीन आने पर अब इसका खतरा कम है.
10. वातरोगः – गठिया – Gout
गठिया को संस्कृत में वातरोगः कहते हैं. यह रोग जोड़ों में यूरिक एसिड क्रिस्टल जमा होने के कारण हो जाता है. इस रोग में जोड़ों में सूजन, लालिमा, गर्माहट, दर्द और अकड़न होने लगती है. यह पैर की उंगली को प्रभावित करता है.
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