
पूर्णिमा कब है 2025 में? देखें पूरी सूची, जानें व्रत, स्नान-दान का महत्व और चंद्रोदय का समय
पूर्णिमा कब है? यह प्रश्न हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले हर व्यक्ति के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। पूर्णिमा, जिसे लोक भाषाओं में ‘पूनम’, ‘पूने’ या ‘पूरणमासी’ भी कहा जाता है, शुक्ल पक्ष का वह अंतिम दिन है जब चंद्रमा आकाश में अपने पूर्ण सौंदर्य और सोलह कलाओं के साथ उदित होता है। यह केवल एक खगोलीय घटना नहीं, बल्कि आध्यात्मिकता, ऊर्जा और सकारात्मकता का एक शक्तिशाली संगम है। इस दिन किए गए व्रत, पूजा, स्नान-दान और सत्यनारायण कथा का फल कई गुना अधिक मिलता है।
प्रत्येक माह आने वाली पूर्णिमा का अपना एक विशेष महत्व होता है और उस दिन कोई न कोई बड़ा पर्व या त्योहार अवश्य मनाया जाता है। लेकिन अक्सर लोगों को आने वाले वर्ष की पूर्णिमा तिथियों को लेकर संशय रहता है। आपकी इसी दुविधा को दूर करने के लिए, हम इस विस्तृत लेख में पूर्णिमा कब है 2025 में, इसकी पूरी सूची प्रस्तुत कर रहे हैं। साथ ही, हम पूर्णिमा के वैज्ञानिक और आध्यात्मिक महत्व, व्रत विधि और इससे जुड़े प्रमुख त्योहारों पर भी प्रकाश डालेंगे।
पूर्णिमा का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक महत्व
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण: खगोल विज्ञान के अनुसार, पूर्णिमा वह स्थिति है जब पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा के बीच में आ जाती है। इस स्थिति में सूर्य का पूरा प्रकाश चंद्रमा पर पड़ता है और वह हमें पृथ्वी से पूर्ण रूप से प्रकाशित दिखाई देता है। इस दिन चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण बल पृथ्वी पर सबसे अधिक होता है, जिसका प्रभाव समुद्र में आने वाले उच्च ज्वार-भाटे के रूप में देखा जा सकता है।
- आध्यात्मिक दृष्टिकोण: शास्त्रों में चंद्रमा को मन का कारक माना गया है। पूर्णिमा के दिन चंद्रमा की ऊर्जा अपने चरम पर होती है, जिसका सीधा प्रभाव मनुष्य के मन और भावनाओं पर पड़ता है। इसलिए इस दिन व्रत और ध्यान करने से मन को नियंत्रित करने और आध्यात्मिक ऊर्जा को बढ़ाने में मदद मिलती है। यह दिन देवी-देवताओं की पूजा और पितरों के तर्पण के लिए भी अत्यंत शुभ माना जाता है।
2025 में पूर्णिमा कब है? (Purnima Vrat Dates List 2025)
आइए, सबसे पहले आपके मुख्य प्रश्न का उत्तर जानते हैं और देखते हैं कि साल 2025 में आने वाली सभी पूर्णिमा तिथियां और उनसे जुड़े प्रमुख त्योहार कौन-से हैं।
महीना | तारीख | दिन | पूर्णिमा का नाम और प्रमुख त्योहार |
जनवरी | 13 जनवरी | सोमवार | पौष पूर्णिमा (शाकंभरी जयंती) |
फरवरी | 12 फरवरी | बुधवार | माघ पूर्णिमा (संत रविदास जयंती, गुरु रविदास जयंती) |
मार्च | 14 मार्च | शुक्रवार | फाल्गुन पूर्णिमा (होलिका दहन, होली) |
अप्रैल | 12 अप्रैल | शनिवार | चैत्र पूर्णिमा (हनुमान जन्मोत्सव) |
मई | 12 मई | सोमवार | वैशाख पूर्णिमा (बुद्ध पूर्णिमा) |
जून | 10 जून | मंगलवार | ज्येष्ठ पूर्णिमा (वट पूर्णिमा व्रत) |
जुलाई | 10 जुलाई | गुरुवार | आषाढ़ पूर्णिमा (गुरु पूर्णिमा, व्यास पूर्णिमा) |
अगस्त | 09 अगस्त | शनिवार | श्रावण पूर्णिमा (रक्षाबंधन 2025) |
सितंबर | 07 सितंबर | रविवार | भाद्रपद पूर्णिमा (पूर्णिमा श्राद्ध का प्रारंभ) |
अक्टूबर | 06 अक्टूबर | सोमवार | आश्विन पूर्णिमा (शरद पूर्णिमा, कोजागरी पूजा) |
नवंबर | 05 नवंबर | बुधवार | कार्तिक पूर्णिमा (देव दिवाली, गुरु नानक जयंती) |
दिसंबर | 04 दिसंबर | गुरुवार | मार्गशीर्ष पूर्णिमा (अन्नपूर्णा जयंती, दत्तात्रेय जयंती) |
How-To: पूर्णिमा व्रत की सरल और संपूर्ण विधि
पूर्णिमा का व्रत भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए किया जाता है। इस दिन श्री सत्यनारायण जी की कथा का पाठ करना विशेष फलदायी होता है।
चरण 1: स्नान और संकल्प
- पूर्णिमा के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर किसी पवित्र नदी, सरोवर या घर पर ही गंगाजल मिलाकर स्नान करें।
- स्वच्छ वस्त्र धारण कर हाथ में जल और अक्षत लेकर व्रत का संकल्प लें।
चरण 2: भगवान विष्णु की पूजा
- पूजा स्थल पर भगवान सत्यनारायण (विष्णु जी का स्वरूप) की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें।
- उन्हें पीले वस्त्र, पीले फूल, फल (विशेषकर केला) और पंचामृत अर्पित करें।
- धूप, दीप जलाकर विधि-विधान से पूजा करें।
चरण 3: सत्यनारायण व्रत कथा का पाठ
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- पूजा के बाद परिवार के सभी सदस्यों के साथ बैठकर श्री सत्यनारायण व्रत कथा का पाठ करें या सुनें।
- कथा के बाद ॐ जय जगदीश हरे आरती करें।
चरण 4: चंद्रमा को अर्घ्य देना
- रात में जब चंद्रमा पूर्ण रूप से उदित हो जाए, तब एक लोटे में दूध, जल, चीनी, और अक्षत मिलाकर चंद्रमा को अर्घ्य दें।
- चंद्रमा से अपने जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की प्रार्थना करें।
चरण 5: व्रत का पारण
- चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद प्रसाद ग्रहण कर व्रत का पारण करें। कुछ लोग अगले दिन सुबह पूजा के बाद पारण करते हैं।
तुलनात्मक सारणी: पूर्णिमा बनाम अमावस्या
ये दोनों तिथियां हर महीने आती हैं और हिंदू धर्म में इनका विशेष महत्व है, लेकिन दोनों की प्रकृति और महत्व एक-दूसरे से बिल्कुल भिन्न हैं।
विशेषता | पूर्णिमा (Purnima) | अमावस्या (Amavasya) |
चंद्रमा की स्थिति | चंद्रमा पूर्ण रूप से प्रकाशित होता है। | चंद्रमा अदृश्य होता है। |
प्रकृति | शुक्ल पक्ष का अंत, सकारात्मक और दैवीय ऊर्जा का प्रतीक। | कृष्ण पक्ष का अंत, नकारात्मक ऊर्जा की प्रबलता का समय। |
मुख्य पूजा | भगवान विष्णु (सत्यनारायण), देवी लक्ष्मी और चंद्रमा की पूजा। | पितरों का तर्पण, श्राद्ध, शनि देव और काली की पूजा। |
व्रत का उद्देश्य | सुख, समृद्धि, स्वास्थ्य और सौभाग्य की प्राप्ति। | पितृ दोष, कालसर्प दोष और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति। |
प्रमुख त्योहार | होली, रक्षाबंधन, गुरु पूर्णिमा, शरद पूर्णिमा, देव दिवाली। | दीपावली, शनि जयंती, मौनी अमावस्या, सर्वपितृ अमावस्या। |
आप अमावस्या कब है इस लेख में इसके बारे में और विस्तार से जान सकते हैं। |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
प्रश्न 1: पूर्णिमा का व्रत कब से शुरू करना चाहिए?
उत्तर: पूर्णिमा का व्रत किसी भी माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से शुरू किया जा सकता है। हालांकि, कार्तिक, वैशाख या मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा से व्रत शुरू करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
प्रश्न 2: पूर्णिमा के दिन स्नान-दान का क्या महत्व है?
उत्तर: पूर्णिमा के दिन पवित्र नदियों, विशेषकर गंगा में स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है। स्नान के बाद अपनी सामर्थ्य के अनुसार अन्न, वस्त्र और धन का दान करने से अक्षय पुण्य मिलता है।
प्रश्न 3: क्या पूर्णिमा के दिन बाल धोने चाहिए?
उत्तर: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, एकादशी, अमावस्या और पूर्णिमा जैसी कुछ विशेष तिथियों पर बाल धोने से बचना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इससे धन की हानि हो सकती है।
प्रश्न 4: पूर्णिमा के दिन कौन से मंत्र का जाप करना चाहिए?
उत्तर: पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु के मंत्र “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” और चंद्र देव के मंत्र “ॐ सों सोमाय नमः” का जाप करना विशेष फलदायी होता है।
प्रश्न 5: सत्यनारायण कथा पूर्णिमा पर ही क्यों की जाती है?
उत्तर: भगवान सत्यनारायण भगवान विष्णु के ही स्वरूप हैं और पूर्णिमा तिथि भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है। इसलिए इस दिन उनकी कथा का पाठ करने से वे शीघ्र प्रसन्न होते हैं और मनवांछित फल प्रदान करते हैं।
निष्कर्ष
पूर्णिमा कब है, इसकी जानकारी के साथ यह समझना भी आवश्यक है कि यह तिथि आत्म-निरीक्षण और आध्यात्मिक ऊर्जा संचय का एक अनमोल अवसर है। यह हमें प्रकृति के चक्र से जोड़ती है और जीवन में सकारात्मकता लाती है। 2025 में आने वाली इन पवित्र तिथियों पर व्रत, पूजा और दान-पुण्य करके आप भी अपने जीवन को सुख, शांति और समृद्धि से भर सकते हैं।
(Disclaimer: यह लेख पंचांग, धार्मिक ग्रंथों और मान्यताओं पर आधारित है। तिथियों और मुहूर्त में स्थानीय भिन्नता संभव है। किसी भी धार्मिक अनुष्ठान को करने से पहले किसी विद्वान पंडित से परामर्श अवश्य करें।)