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इतना फ़र्क़ क्यों ?-गृहलक्ष्मी की कहानियां

Social Story: ये किसकी बेटी है?बड़ी प्यारी लग रही है,श्रीमती वर्मा ने पार्क में बच्चों के साथ खेलती हुई सात वर्षीय जुड़वाँ बच्चियों को देखकर कहा…ये दोनो सामने वाले पुनीत सर की बेटी  त्रिशा और काकुल है, मोनिका जी व्यंग्यात्मक से मुस्कुराते हुए बोलीं…“क्या दोनोँ”? श्रीमती वर्मा ने उसके साथ उसकी बिल्कुल उलट साधारण पर आकर्षक चेहरे वाली बच्ची को देखकर कहा.”“हाँ दोनो”मोनिका ने उत्तर  दिया.क्या कहें ईश्वर की मर्ज़ी को लड़की का जन्म दे तो रूप  जरूर दे.आधे काम तो अच्छे चेहरे से ही आसान हो जाते हैं. श्रीमती वर्मा बोलींये तो है ,मोनिका ने कहा.आजकल जमाना सुन्दर चेहरे का ही है…इस बात का एहसास त्रिशा को भी था कि वह अपनी बहन से दिखने में अच्छी है.सो बचपने में ही सही पर ख़ुद को उससे श्रेष्ठ  समझने की भावना उसमेँ दिख जाती…क्योंकि हर रिश्तेदार और  मिलनेवाला चाहे अनचाहे यह एहसास करा ही जाता कि त्रिशा और काकुल में कोई समानता नहीँ…सो मातापिता की उनके साथ लाख बरती जाने वाली समानताओं के बाद भी  उन बच्चों के सामने उन्हें कोई न कोई इस भेद से   चाहे अनचाहे परिचित करा ही देता.उनके मातापिता रचना और पुनीत एक शिक्षक दम्पति थे, उन प्यारी सी जुड़वाँ बेटियोँ के माता पिता।जहां  त्रिशा दिखने में बिल्कुल बार्बी डॉल सी लगती,वहीँ उसके उलट काकुल दिखने में  साधारण  परन्तु कुशाग्र .उसकी बोलती आँखे और मीठी बोली सबको पल भर में अपना बना लेती,पलक झपकते जो  देखती वह  हूबहू अपने मस्तिष्क में बैठा लेती.रचना जहाँ एक डिग्री कॉलेज में सँस्कृत की व्याख्याता थी ,वहीँ  पुनीत मनोविज्ञान के शिक्षक दोनों ने ही अपनी बेटियों को अच्छी परवरिश दी थी .दोनों  महानगर  के अच्छे और नामीगिरामी स्कूल में पहली कक्षा में पढ़ती थीं.जहाँ काकुल  बहुत  ही शान्त और कुशाग्र…वहीँ त्रिशा पढ़ाई में मध्यम पर अन्य गतिविधियों में  बहुत सक्रिय और चुलबुली. स्कूल की कोई भी एक्टिविटी बग़ैर त्रिशा के पूरी न होती.साँवली सलोनी काकुल जिस बात को पढ़ लेती जल्दी भूलती नहीँ.हमेशा टॉप रैंक बच्चों में उसका नाम आता …पर जब भी स्कूल में कोई भी फंक्शन  होता उसे कभी टीचर सेलेक्ट ही नहीँ करतीं.उसका बड़ा मन करता जब त्रिशा को सब हाथोंहाथ लेते…उसकी उन  प्रोग्राम की  ड्रेसेज और चीजों को वो बड़ी लालसा से छूती और आशा करती कि उसे भी इन सब चीजों में हिस्सा मिले..दर्शकों की भीड़ में बैठी अपने क्लासमेट्स को बड़ी हसरत से देखती और ताली बजाती.अक्सर अपनी मां से पूछती ,”कि मैम मुझे कभी क्योँ नहीँ लेतीं मम्मी?एक बार कहिये न उनसे कि मुझे भी चान्स दें न”.“ओ.के. बेटा मैं मैम से जरुर कहूँगी “रचना ने आश्वासन दिया.माँ  की बात सुनकर ,काकुल की आँखे जुगनू सी झिलमिला उठीं खुशी के मारे. रचना ने भी एक दिन पेरेंट्स मीटिंग के बाद…उसकी क्लास टीचर से उसकी तीव्र इच्छा देखकर प्रार्थना की ..” मैम! एक बार काकुल को भी मौका दीजिये  बहुत पसंद है उसे भी एक्टिंग।”टीचर ने एक उचटती सी नज़र डालकर रचना को आश्वस्त कर दिया ,”डोंट वरी मैम! अबकी बार कोई रोल इसके लायक होगा तो  काकुल को ज़रूर मौक़ा दूँगी”.एक दिन रचना तबियत ख़राब होने के कारण हाफ डे लेकर घर जल्दी आ गयी …माँ को घर देखकर  त्रिशा के साथ काकुल भी खुशी से दौड़ती हुई रचना के पास  आयी.“मम्मा !”आज पता है मैम ने  मुझे भी प्ले में सेलेक्ट किया है “द स्लीपिंग ब्यूटी”…“प्रैक्टिस भी की थी आपको दिखाऊँ…”काकुल आज रोज़ से थोड़ी ज़्यादा खुश थी..तब तक पुनीत की भी घर वापसी हो चुकी थी ,उसने भी खुशी से ताली बजाकर कहा ,”वाओ… आज तो हमारी दोनों प्रिंसेस सिलेक्ट हो गईं.अब मम्मा पापा दोनों ही प्रैक्टिस देखेंगे और शाम को आइसक्रीम भी खाने चलेँगे…त्रिशा और काकुल  प्ले की प्रैक्टिस ख़ुशी-ख़ुशी दिखाने लगीं..लेकिन पुनीत का चेहरा सफ़ेद पड़ गया और रचना की आँखों के साथ गला भी भर गया।त्रिशा को प्रिंसेस का रोल मिला था और काकुल को उसकी नौकरानी का ,त्रिशा भी पूरे जोश में हुक्म दे रही थी और काकुल उसे निभा रही थी…“अरे!ये काकुल को कैसा रोल मिला है त्रिशा,रचना ने त्यौरियां चढ़ा कर पूछा ?”“सर्वेंट का,क्योंकि ये ब्यूटीफुल नहीँ है मम्मी और सर्वेंट लोग ऐसे ही लगते है,त्रिशा ने थोड़ा  मासूमियत से कहा।पर काकुल वो इस बात से दुःखी होकर कोने में जा कर सिसकियाँ लेकर रोने लगी…“मम्मी!आपने मुझे सर्वेंट्स जैसा फेस क्यूँ लगाया?उसने भरी आँखों से रचना से पूछा?अगर आपने मुझे त्रिशा जैसा फेस लगाया होता तो मैं भी प्रिंसेस बनती।”“न बेटा !आप तो हमारी सबसे क्यूट और प्यारी प्रिंसेस हो पुनीत ने बाहें फैलाकर कहा…”“पता है! हमने आपका नाम काकुल क्योँ रखा ?क्योँ पापा?क्योंकि आपकी आँखे बिल्कुल हिरन जैसी हैँ और वह भूल गयी ,अपने पापा के दुलार से..उन दोनों मासूमों को ये ज्ञान भी नहीँ था ,कि वो क्या कर रहीं हैं और उनके माँ-बाप  के दिल पर क्या बीत रही है…शाम को दोनों को वायदे के अनुसार आइसक्रीम भी खिलाई पुनीत ने…लेकिन अगले दिन उन्होंने उनकी प्रिंसिपल से बात करने का निर्णय ले लिया…प्रिंसिपल  मिसेज कपूर ने अपने पूरे  रुआब के साथ उन दोनों  को बैठने को कहा और उनसे आने का कारण पूछा ?इसके साथ ही खुद को बेहद व्यस्त बताते हुए जल्दी बात खत्म करने की ताक़ीद भी की।लेकिन पुनीत ने भी बेहद दृढ़ता के साथ कहा ,”मैम आपको आज हमारी बात भी सुननी पड़ेगी और समय भी देना पड़ेगा,क्योंकि मुद्दा बेहद संवेदनशील है…”“कहना क्या चाहते हैं आप मिस्टर शर्मा?प्रिंसिपल ने थोड़े  तीखे स्वर में कहा।“वही जो सच है मैम “रचना ने भीगे स्वर में कहा।मेरी दोनों बेटियों को प्ले में लिया गया ,पर  एक को रोल दिया प्रिंसेस का और दूसरी को नौकरानी का ऐसा क्योँ?प्रिंसीपल ने थोड़ा चौंकते हुए ,घण्टी बजाई और पियोन को कहा ,कि एक्टिविटी टीचर सोनिया मैम को  मेरे पास भेजिए…”सोनिया ने भी परेशानी भरे हाव भाव के साथ अंदर दाखिल होते हुए आने की परमिशन माँगी..“मिस सोनिया !क्या मिस्टर शर्मा की शिकायत सही है या नहीँ”मिसेज कपूर ने प्रश्न किया?पूरा मामला सुनने के बाद सोनिया बड़ी ढिठाई से बोली ,” सॉरी टू से मैम लेकिन बच्चे को रोल तो उसका लुक देखकर ही दूँगी न …और वैसे भी एक प्ले ही तो है,क्या फ़र्क़ पड़ता है जो सर को इतना बुरा फील हो रहा है,अगर प्ले में सर्वेंट का रोल है तो उसे  काकुल नहीं कोई  और बच्चा करता”बहुत ज़्यादा फ़र्क़ पड़ता है मैम ,क्योंकि इसलिये नहीं  दोनों ही मेरी अपनी बेटियाँ हैं…अगर काकुल को दिया जाने वाला रोल किसी और बच्चे को मिलता तो भी मेरी सोच वही होती जो इस समय है,रचना बोली..“और क्या मैम !अगर मेरी जगह आप की बच्चियां होतीं तो क्या आप दूसरी बेटी को उसे  अभिनय के बजाय उसके साधारण लुक्स के कारण नौकरानी के रोल के लिए चुने जाने का कारण बता पातीं,”पुनीत ने थोड़ा ठहर कर कहा…ये बच्चे हैं,बेहद कोमल मन वालेऔर कच्ची मिट्टी के जैसे ; शिक्षण के पेशे में होकर भी  अगर हमलोग भी उनके मन मे ऐसी घटिया बातों के बीज रोपने लगे तो बाकी लोग क्या करेंगे?अब ऑफिस में माहौल थोड़ा भारी हो चला था ,मिसेज कपूर को भी पुनीत की बातों से पूरी सहमति थी…मिसेज कपूर-स्कूली जीवन में ही इन सब कलाओं के बीज इसलिये  डाले जाते हैं कि बच्चों का सर्वांगीण विकास हो ….हमारा स्कूल पूरा ध्यान देता है सभी बातों परपुनीत-पर मैम कहीँ न कहीँ अपनी  स शारीरिक बनावट पर  शर्मिंदगी के बीज भी  रोपे जाते है जाने  अनजाने में..रचना-फिर ईश्वर भी यह नहीं करता कि राजकुमारी का सुन्दर होना निश्चित हैं और दासी का कुरूप रचना ने कहा…हम इसे अभिनय का अवसर भी कह सकते हैं …और बॉडी शेमिंग के मौके भी….इस बात पर मिसेज कपूर और सोनिया दोनोँ की ही आँखे झुक गयीं..पुनीत-ज़िम्मेदार नागरिक हो कर भी उन्हें हम ख़ुद ही दूसरे से ख़ुद को कमतर मानने  को …अनजाने में ही सही पर मजबूर कर रहे हैं…मिसेज कपूर ,”पर सर इस बहस का तो तो कोई अंत नहीं ,ये कुरीति तो समाज में गहरी जड़ें लेकर बैठी है,आपके पास कोई और सुझाव हो तो बताईये…पुनीत-मैम स्लीपिंग ब्यूटी जैसे प्ले से क्या  सीख मिलेगी बच्चों को,  प्रयास  यह करना होगा कि उन्हें कुछ प्रेरक  सिखाएं ,हमारा इतिहास कई महान व्यक्तित्वों से भरा पड़ा है…कोई न कोई तो पहल करेगा ,तभी तो बदलाव आयेगा  समाज के नज़रिये में ,शुरुआत अभी क्यों नहीं?थोड़ी देर के लिए तो ऑफिस में शान्ति छा गयी पर थोड़ा सोचकर मिसेज कपूर ने  सधे स्वर कहा,”! आपका सुझाव आदर योग्य है ,वाकई बाल मनोविज्ञान के इस पहलू पर हमें ध्यान देने की ज़रूरत है…“जी शुक्रिया “कहकर उन्होंने  विदा ली।अगले दिन त्रिशा और काकुल  स्कूल से घर वापस आयीं बेहद खुशीखुशी…अब नाटक बदल गया था उनका किरदार  झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई और झलकारीबाई का था।वार्षिक उत्सव में श्रेष्ठ अभिनेत्री का प्राइज भी काकुल ने अपने भावप्रवण अभिनय से जीता और  उसके साथसाथ सबका दिल भी।अब बात उसके चेहरे की कम उसकी अदाकारी की ज्यादा  हो रही थी,आज त्रिशा को भी काकुल पर गर्व की एक और वजह मिलीRelated

KAMLESH VERMA

दैनिक भास्कर और पत्रिका जैसे राष्ट्रीय अखबार में बतौर रिपोर्टर सात वर्ष का अनुभव रखने वाले कमलेश वर्मा बिहार से ताल्लुक रखते हैं. बातें करने और लिखने के शौक़ीन कमलेश ने विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन से अपना ग्रेजुएशन और दिल्ली विश्वविद्यालय से मास्टर्स किया है. कमलेश वर्तमान में साऊदी अरब से लौटे हैं। खाड़ी देश से संबंधित मदद के लिए इनसे संपर्क किया जा सकता हैं।

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