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हंड्रेड डेट्स – भाग – 54

Hindi Love Story: आज भी हम मूवी के लिए आए हुए थे और पन्द्रह मिनट के बचे वक़्त का इस्तेमाल मॉल के बाहर एक बेंच पर भुट्टे खाते हुए कर रहे थे।“तुम्हें कोई ढंग का टॉप नहीं मिला?” मैंने उसकी छातियों की ओर देखते हुए कहा, बहुत देर से वे मेरा ध्यान खींच रही थीं।“क्यूँ अच्छा नहीं है यह? मुझे तो बहुत पसंद है।” उसने यह कहा ज़रूर, पर मुझे पता था, वह मेरी बात समझ चुकी थी।“अच्छा है, लेकिन थोड़ा ज़्यादा डीप है।” मैंने वही समझाया, जो वह समझ चुकी थी।“तुम्हारी नज़रें वहीं क्यों अटकी हुई हैं?” उसने पीछे से खींचकर अपना टॉप ऊपर चढ़ाया और आगे कहा-“ब्रेस्ट तो हर लड़की के होते हैं, इसमें इतना देखना क्या होता है तुम लोगों को? टॉप, साड़ी, सूट या किसी भी ड्रेस में ये तो दिखेंगे ही। चुन्नी से ढक लेने से क्या ये ग़ायब हो जायेंगे? और ब्रेस्ट कोई ख़राब चीज़ है, जो हम इन्हें छिपाते और ढंकते फिरें? तुमने भी तो माँ का दूध इन्ही से पीया होगा ना?”मुझे ऐसी वाहियात बातों पर गुस्सा आता है- “अरे माता जी! अपना जाली फ़ेमिनिस्ट ज्ञान बंद कीजिए। नहीं ढंकना है तो मत ढँको, ये तुम्हारी आज़ादी है। देखना भी हमारी आज़ादी है, उससे क्या प्रॉब्लम है आपको? और देवी माता, ब्रेस्ट का एकमात्र उपयोग दूध के लिए ही नहीं है; जिस तरह हमारे लिंगो का एकमात्र उपयोग सू-सू करना नहीं है। तुम्हारी सुंदर आँखों, काजल, होठों, गालों पर तो हम शायरियाँ करते फिरें और एक मिल्क टैंक भी अगर हमें अच्छे लग रहे हैं, तो दिक्क़त क्या है फिर?”उसने कुछ नहीं कहा और भुट्टा खाती रही। यह मेरे लिए उकसावा ही था कि, मैं और ज़्यादा बोलूँ-“वैसे कितने ही लड़के बाहर निकलते ही सीने के सैलाबों का मज़ा लेने हैं, आख़िर मजमा भी तो सजा रखा है लोगों ने। हमारा देश भी कितना ख़ूबसूरत है ना? हमने देवियों तक की कल्पना दिव्य उभारों और सुरूप गोलाइयों के साथ ही की है। अब जिसकी छातियाँ ऊल-जलूल हों, बेढंगी हों वे ढंके। तुम्हें क्या आफ़त आन पड़ी है भाई, टॉप पीछे खींच-खींच कर तुम्हारे प्यारे दैवीय अंगो के साथ नाइंसाफी भी क्यों करना?”“तुम कुछ ज़्यादा नहीं बोल रहे?” वह तब से मुझे घूर ही रही थी। उसने धीमें से एक मुक्का मेरी बाँह पर मारा।“ये बताओ अगर विजाइना और बूब्स हम लड़को को आकर्षित नहीं करते तो हम किसी लड़के के पीछे ही ना लग लिए होते; काहे को तुम लड़कियों के नख़रे झेलते? वैसे है तो तुम लड़कियों की यही अदा निराली।” मैंने उसके टॉप के अंदर झांकने का उपक्रम करते हुए इस तरह हवा में किस की, कि उसे मेरी यह उच्च्की हरकत साफ़ समझ में आए।“दुष्ट।” इस बार उसने सचमुच मुक्का मेरी पीठ पर मारा, पर उसके खिलते हुए दाँत और लहरते बाल शृंगार रस ही पैदा कर सकते थे।मूवी की टाइमिंग देखते, कहीं से ख़्याल कौंधा कि, विधाता कुछ भी बुरे के लिए कहाँ करता है? शायद हॉल की कार्नर सीट पर, यह टॉप मुझे वरदान की तरह मिला हो। अपनी सोची बात पर हर्षित होते हुए मैं ख्याली हरकतों को हक़ीक़त में बदल देने के मंसूबे सजा रहा था और मेरी धड़कनें अख़्तियार से बाहर होने में लगी थीं।ये कहानी ‘हंड्रेड डेट्स ‘ किताब से ली गई है, इसकी और कहानी पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं – Hundred dates (हंड्रेड डेट्स)Related

KAMLESH VERMA

दैनिक भास्कर और पत्रिका जैसे राष्ट्रीय अखबार में बतौर रिपोर्टर सात वर्ष का अनुभव रखने वाले कमलेश वर्मा बिहार से ताल्लुक रखते हैं. बातें करने और लिखने के शौक़ीन कमलेश ने विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन से अपना ग्रेजुएशन और दिल्ली विश्वविद्यालय से मास्टर्स किया है. कमलेश वर्तमान में साऊदी अरब से लौटे हैं। खाड़ी देश से संबंधित मदद के लिए इनसे संपर्क किया जा सकता हैं।

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