भद्रा काल 2025: भद्रा क्या है, इसमें क्या न करें, जानें प्रकार, गणना और उपाय

भद्रा काल 2025: भद्रा क्या है, इसमें क्या न करें, जानें प्रकार, गणना और उपाय
हिंदू पंचांग और ज्योतिष शास्त्र में किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले शुभ मुहूर्त का विचार करना अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। मुहूर्त निकालते समय तिथि, वार, नक्षत्र, योग के साथ-साथ ‘करण’ का भी विशेष ध्यान रखा जाता है। इन्हीं करणों में से एक है ‘विष्टि करण’, जिसे आम भाषा में ‘भद्रा’ के नाम से जाना जाता है।
भद्रा काल को ज्योतिष में एक अशुभ और विघ्नकारी समय माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस अवधि के दौरान किए गए शुभ और मांगलिक कार्यों में सफलता नहीं मिलती या उनमें कोई न कोई बाधा अवश्य आती है। इसीलिए, विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, या कोई नया व्यवसाय शुरू करने जैसे कार्यों के लिए भद्रा को त्याज्य माना गया है।
लेकिन भद्रा क्या है? इसकी गणना कैसे की जाती है? कौन सी भद्रा शुभ होती है और कौन सी अशुभ? भद्रा में कौन से कार्य बिल्कुल नहीं करने चाहिए? और इसके बुरे प्रभाव से कैसे बचा जा सकता है? आइए, इस लेख में भद्रा से जुड़े इन सभी महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर विस्तार से जानते हैं।
कौन हैं भद्रा? (पौराणिक कथा)
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भद्रा सूर्य देव की पुत्री और शनि देव की बहन हैं। ब्रह्मा जी ने उन्हें पंचांग के 11 करणों में से सातवें करण ‘विष्टि’ के रूप में स्थान दिया। स्वभाव से अत्यंत क्रोधी और उग्र होने के कारण, उनके जन्म के समय ही वे सृष्टि में विघ्न डालने लगीं। उनके इस स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए ब्रह्मा जी ने उन्हें समझाया और कहा, “हे भद्रे! अब तुम बव, बालव आदि करणों के अंत में निवास करो और जो व्यक्ति तुम्हारे समय में कोई भी शुभ कार्य, यात्रा आदि करे, उसी के कार्यों में विघ्न डालो।” [1]
इसी कारण से, भद्रा काल को अशुभ माना जाता है और इस दौरान शुभ कार्यों से बचने की सलाह दी जाती है।
भद्रा काल की गणना कैसे की जाती है?
भद्रा का वास चंद्रमा की राशि के अनुसार निर्धारित होता है। पंचांग के अनुसार, एक तिथि में दो करण होते हैं (एक पूर्वार्ध में और एक उत्तरार्ध में)। भद्रा महीने के प्रत्येक शुक्ल और कृष्ण पक्ष में आती है।
- शुक्ल पक्ष में भद्रा: चतुर्थी, अष्टमी, एकादशी और पूर्णिमा तिथि पर।
- अष्टमी और पूर्णिमा तिथि के पूर्वार्ध (पहले आधे भाग) में।
- चतुर्थी और एकादशी तिथि के उत्तरार्ध (दूसरे आधे भाग) में।
- कृष्ण पक्ष में भद्रा: तृतीया, सप्तमी, दशमी और चतुर्दशी तिथि पर।
- सप्तमी और चतुर्दशी तिथि के पूर्वार्ध (पहले आधे भाग) में।
- तृतीया और दशमी तिथि के उत्तरार्ध (दूसरे आधे भाग) में।
भद्रा के प्रकार: कौन सी भद्रा है शुभ और कौन सी अशुभ?
भद्रा हमेशा अशुभ नहीं होती। चंद्रमा की स्थिति के आधार पर भद्रा का वास तीन लोकों – स्वर्ग, पाताल और पृथ्वी में होता है, और इसी के आधार पर उसका फल भी निर्धारित होता है।
भद्रा का प्रकार | चंद्रमा की राशि | प्रभाव और फल |
स्वर्ग लोक की भद्रा | मेष, वृषभ, मिथुन, वृश्चिक | शुभ मानी जाती है। यह पृथ्वी पर रहने वाले मनुष्यों के लिए कल्याणकारी होती है। |
पाताल लोक की भद्रा | कन्या, तुला, धनु, मकर | शुभ मानी जाती है। यह धन और समृद्धि प्रदान करने वाली मानी गई है। |
पृथ्वी लोक की भद्रा | कर्क, सिंह, कुंभ, मीन | अशुभ मानी जाती है। जब भद्रा पृथ्वी पर वास करती है, तो वह सभी शुभ कार्यों में बाधा डालती है और अशुभ फल प्रदान करती है। इसी भद्रा का त्याग किया जाता है। [2] |
भद्रा में क्या नहीं करना चाहिए? (कार्य जो भद्रा में वर्जित हैं)
ज्योतिष ग्रंथों के अनुसार, भद्रा काल में निम्नलिखित शुभ और मांगलिक कार्यों को करना वर्जित माना गया है:
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- विवाह संस्कार
- गृह प्रवेश
- मुंडन संस्कार
- घर की नींव रखना या गृह निर्माण शुरू करना
- रक्षाबंधन का पर्व (विशेष रूप से)
- कोई नया व्यवसाय या दुकान शुरू करना
- शुभ यात्रा पर निकलना
- कोई नई वस्तु खरीदना
- यज्ञ और हवन
माना जाता है कि भद्रा में किए गए इन कार्यों का परिणाम अशुभ होता है।
भद्रा मुख और भद्रा पूंछ: क्या है शुभ और अशुभ?
भद्रा की पूरी अवधि अशुभ नहीं होती। भद्रा के समय को भी ‘मुख’ और ‘पूंछ’ में विभाजित किया गया है।
- भद्रा मुख (Bhadra Mukh): यह भद्रा का प्रारंभिक भाग होता है और इसे अत्यंत अशुभ माना जाता है। इस अवधि में कोई भी कार्य करने की सख्त मनाही होती है। भद्रा मुख की अवधि लगभग 5 घटी (2 घंटे) की होती है।
- भद्रा पूंछ (Bhadra Punchha): यह भद्रा का अंतिम भाग होता है। भद्रा पूंछ को शुभ माना जाता है। यदि कोई अति आवश्यक कार्य करना हो, तो उसे भद्रा पूंछ के समय में किया जा सकता है। भद्रा पूंछ की अवधि लगभग 3 घटी (1 घंटा 12 मिनट) की होती है। [3]
भद्रा के अशुभ प्रभाव से बचने के उपाय
यदि भद्रा काल में कोई अनिवार्य कार्य करना ही पड़े, तो उसके अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए कुछ उपाय किए जा सकते हैं।
- भद्रा के 12 नामों का जाप: सुबह उठकर स्नान के बाद भद्रा के 12 नामों का स्मरण करने से भद्रा का दोष कम होता है और कार्य में सफलता की संभावना बढ़ जाती है।
- शिव पूजा: भद्रा के अशुभ प्रभाव को शांत करने के लिए भगवान शिव की पूजा करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है। इस दौरान “ॐ नमः शिवाय” का जाप करें और शिव जी का रुद्राभिषेक करें।
- भद्रा व्रत: कुछ लोग भद्रा के दिन व्रत भी रखते हैं और हनुमान जी की पूजा करते हैं।
- दान-पुण्य: भद्रा काल में अपनी क्षमता अनुसार गरीबों और जरूरतमंदों को दान करने से भी इसके अशुभ प्रभाव में कमी आती है।
भद्रा के 12 नाम (12 Names of Bhadra)
सुबह उठकर इन 12 नामों का जाप करना चाहिए:
- धन्या
- दधिमुखी
- भद्रा
- महामारी
- खरानाना
- कालरात्रि
- महारुद्रा
- विष्टि
- कुलपुत्रिका
- भैरवी
- महाकाली
- असुरक्षयकरी
माना जाता है कि जो व्यक्ति इन नामों का स्मरण करता है, उसे भद्रा काल में कष्ट नहीं भोगना पड़ता और उसके कार्य सिद्ध होते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
प्रश्न 1: भद्रा काल क्या होता है?
उत्तर: भद्रा, पंचांग के ‘विष्टि करण’ का नाम है, जिसे ज्योतिष में एक अशुभ समय माना जाता है। इस दौरान शुभ कार्य करना वर्जित होता है।
प्रश्न 2: भद्रा कितने घंटे की होती है?
उत्तर: भद्रा की अवधि निश्चित नहीं होती, यह तिथि के मान पर निर्भर करती है। आमतौर पर यह लगभग 11-12 घंटे की हो सकती है। इसमें से भद्रा मुख (शुरुआती 2 घंटे) सबसे अशुभ और भद्रा पूंछ (अंतिम 1 घंटा 12 मिनट) शुभ माना जाता है।
प्रश्न 3: कौन सी भद्रा शुभ होती है?
उत्तर: जब चंद्रमा मेष, वृषभ, मिथुन, वृश्चिक (स्वर्ग लोक) या कन्या, तुला, धनु, मकर (पाताल लोक) राशि में हो, तो भद्रा शुभ फलदायी होती है। पृथ्वी लोक की भद्रा (जब चंद्रमा कर्क, सिंह, कुंभ, मीन राशि में हो) अशुभ मानी जाती है।
प्रश्न 4: भद्रा में कौन सा एक त्योहार विशेष रूप से प्रभावित होता है?
उत्तर: रक्षाबंधन का त्योहार भद्रा काल से सबसे अधिक प्रभावित होता है। शास्त्रों के अनुसार, भद्रा में राखी बांधना वर्जित है, क्योंकि माना जाता है कि शूर्पणखा ने अपने भाई रावण को भद्रा काल में ही राखी बांधी थी, जिससे उसके पूरे वंश का विनाश हो गया।
निष्कर्ष
भद्रा काल हिंदू पंचांग का एक महत्वपूर्ण अंग है, जिसे केवल अंधविश्वास मानकर नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। यह एक ज्योतिषीय गणना है जो हमें शुभ और अशुभ समय का ज्ञान कराती है ताकि हम अपने महत्वपूर्ण कार्यों को सही समय पर करके उनकी सफलता सुनिश्चित कर सकें।
हालांकि, यह भी सत्य है कि यदि ईश्वर में आपकी अटूट श्रद्धा है और आपकी नीयत साफ है, तो कोई भी अशुभ मुहूर्त आपका अनिष्ट नहीं कर सकता। फिर भी, ज्योतिषीय ज्ञान का सम्मान करते हुए, जहां तक संभव हो, पृथ्वी लोक की भद्रा में शुभ कार्यों को टालना ही श्रेयस्कर माना गया है।
संदर्भ और प्रेरणा स्रोत (References & Sources of Inspiration)
- Puranic Encyclopedias and mythological texts for the story of Bhadra’s origin.
- Muhurta Chintamani and other classical texts on electional astrology (Muhurta).
- Drik Panchang & other reliable Panchang sources for calculations of Bhadra, its types, Mukh and Punchha timings.