Aja Ekadashi Vrat Katha in Hindi: पढ़ें राजा हरिश्चंद्र की सत्यनिष्ठा और व्रत के प्रभाव की पूरी कहानी

Aja Ekadashi Vrat Katha in Hindi: पढ़ें राजा हरिश्चंद्र की सत्यनिष्ठा और व्रत के प्रभाव की पूरी कहानी
अजा एकादशी व्रत कथा (Aja Ekadashi Vrat Katha) सीधे तौर पर सूर्यवंशी राजा हरिश्चंद्र के जीवन से जुड़ी है, जो अपनी सत्यवादिता के लिए तीनों लोकों में प्रसिद्ध थे। इस कथा को सुनने से न केवल व्रत का संकल्प मजबूत होता है, बल्कि यह भी ज्ञात होता है कि इस व्रत में कितनी शक्ति है कि यह बड़े से बड़े संकटों को भी टाल सकता है। तो चलिए, भगवान श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को सुनाई गई इस अद्भुत कथा का विस्तार से श्रवण करते हैं।
कथा का आरंभ: अर्जुन की जिज्ञासा
द्वापर युग में, धर्मराज युधिष्ठिर के छोटे भाई अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा, “हे पुण्डरीकाक्ष! मैंने श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी का माहात्म्य विस्तार से सुना। अब आप कृपा करके मुझे भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी के विषय में भी बताइए। इस एकादशी का क्या नाम है, इसकी व्रत विधि क्या है और इसके पालन से किस फल की प्राप्ति होती है?”
तब भगवान श्री कृष्ण ने कहा, “हे कुन्तीपुत्र! भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को ‘अजा एकादशी’ कहते हैं। इसका विधिपूर्वक व्रत करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। इस लोक और परलोक में समान रूप से सहायक इस एकादशी जैसा पुण्यदायी व्रत दूसरा कोई नहीं है। अब तुम ध्यानपूर्वक इसकी कथा सुनो।”

अजा एकादशी की संपूर्ण व्रत कथा (The Complete Story of Aja Ekadashi)
1. सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र
पौराणिक काल में, इक्ष्वाकु वंश में अयोध्या नगरी पर एक चक्रवर्ती सम्राट राजा हरिश्चंद्र का शासन था। वे अपनी सत्यनिष्ठा, ईमानदारी और वचन-पालन के लिए पूरी दुनिया में विख्यात थे। उनके राज्य में प्रजा हर प्रकार से सुखी और संपन्न थी।
2. देवताओं की परीक्षा और विश्वामित्र का आगमन
एक बार देवलोक में राजा हरिश्चंद्र की सत्यवादिता की चर्चा हुई, तब देवताओं ने उनकी परीक्षा लेने की योजना बनाई। महर्षि विश्वामित्र ने राजा की परीक्षा लेने का बीड़ा उठाया। एक रात्रि राजा हरिश्चंद्र ने स्वप्न देखा कि उन्होंने अपना संपूर्ण राजपाट महर्षि विश्वामित्र को दान में दे दिया है।
अगली सुबह, महर्षि विश्वामित्र सचमुच उनके राजदरबार में उपस्थित हुए और स्वप्न की बात याद दिलाते हुए अपना राज्य मांगने लगे। अपने सत्य के व्रत का पालन करते हुए, राजा हरिश्चंद्र ने एक पल भी विचार किए बिना अपना संपूर्ण राज्य महर्षि विश्वामित्र को सौंप दिया।
3. दक्षिणा की मांग और राजा का संघर्ष
जब राजा हरिश्चंद्र अपना राज्य छोड़कर जाने लगे, तो विश्वामित्र ने उन्हें रोककर कहा, “हे राजन! बिना दक्षिणा के कोई भी दान पूर्ण नहीं होता। तुमने मुझे राज्य दान किया है, अब उसकी दक्षिणा के रूप में मुझे 500 स्वर्ण मुद्राएं भी दो।”
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राज्य तो पहले ही दान हो चुका था, इसलिए दक्षिणा चुकाने के लिए राजा हरिश्चंद्र को काशी नगरी जाना पड़ा। वहां पूर्व जन्म के कर्मों के फलस्वरूप, उन्हें दक्षिणा चुकाने के लिए अपनी पत्नी रानी तारामती और पुत्र रोहिताश्व को एक ब्राह्मण के हाथों बेचना पड़ा।
4. चांडाल का दास बनना
इतने पर भी जब दक्षिणा पूरी नहीं हुई, तो राजा हरिश्चंद्र ने स्वयं को भी बेच दिया। उन्हें काशी के एक डोम (चांडाल) ने खरीद लिया, जो श्मशान घाट पर मृतकों के दाह संस्कार का कार्य करवाता था। राजा हरिश्चंद्र का काम श्मशान में मृतकों के परिजनों से कफन का कर वसूलना था। इस अत्यंत कठिन और नीच कर्म को करते हुए भी राजा ने कभी भी सत्य का मार्ग नहीं छोड़ा।
5. गौतम ऋषि से भेंट और व्रत का ज्ञान
इसी प्रकार कई वर्ष बीत गए। राजा अपने इस कष्टपूर्ण जीवन से बहुत दुखी थे और इससे मुक्त होने का उपाय सोचते रहते थे। वे दिन-रात यही चिंता करते, “मैं क्या करूँ? इस नीच कर्म से मुझे कैसे मुक्ति मिलेगी?”
एक दिन वे इसी चिंता में डूबे हुए थे, तभी संयोगवश वहां से महर्षि गौतम का आगमन हुआ। राजा हरिश्चंद्र ने उन्हें प्रणाम किया और रोते हुए अपनी पूरी दुखभरी कथा सुनाई। राजा की व्यथा सुनकर महर्षि गौतम भी अत्यंत दुखी हुए। उन्होंने राजा को सांत्वना देते हुए कहा, “हे राजन! तुम चिंता मत करो। भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी का नाम ‘अजा एकादशी‘ है। तुम उस एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो और रात्रि में जागरण करो। इस व्रत के प्रभाव से तुम्हारे समस्त पाप और कष्ट नष्ट हो जाएंगे और तुम्हारा कल्याण होगा।”
6. व्रत का प्रभाव और दुखों का अंत
महर्षि गौतम इतना कहकर अंतर्ध्यान हो गए। जब अजा एकादशी आई, तो राजा हरिश्चंद्र ने महर्षि के बताए अनुसार पूरी श्रद्धा और निष्ठा से व्रत का पालन किया और रात्रि भर जागरण कर भगवान विष्णु का स्मरण किया।
उस व्रत के प्रभाव से राजा हरिश्चंद्र के सभी संचित पाप नष्ट हो गए। तभी आकाश में देवगण नगाड़े बजाने लगे और फूलों की वर्षा होने लगी। राजा ने अपने सामने ब्रह्मा, विष्णु, महेश और इंद्र सहित सभी देवताओं को खड़ा पाया। उन्होंने देखा कि उनका मृत पुत्र रोहिताश्व पुनः जीवित हो गया है और उनकी पत्नी तारामती भी राजसी वस्त्र और आभूषणों से सुसज्जित खड़ी हैं।
7. राज्य की पुनः प्राप्ति और मोक्ष
वास्तव में, यह सब महर्षि विश्वामित्र द्वारा राजा की परीक्षा लेने के लिए रचा गया एक कौतुक था। अजा एकादशी व्रत के अद्भुत प्रभाव से ऋषि द्वारा रची गई सारी माया समाप्त हो गई। राजा हरिश्चंद्र को उनका खोया हुआ राजपाट और वैभव पुनः प्राप्त हो गया। अंत समय में, राजा हरिश्चंद्र अपने पूरे परिवार सहित सशरीर स्वर्ग लोक को गए।
भगवान श्री कृष्ण ने कथा समाप्त करते हुए कहा, “हे अर्जुन! यह सब अजा एकादशी के व्रत का ही प्रभाव था। जो भी मनुष्य इस व्रत को विधि-विधान से करता है और रात्रि जागरण करता है, उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और वह अंत में विष्णु लोक को प्राप्त करता है। इस एकादशी की कथा के श्रवण मात्र से ही अश्वमेध यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है।”
तुलनात्मक सारणी: राजा हरिश्चंद्र के जीवन में व्रत से पहले और बाद में
स्थिति | अजा एकादशी व्रत से पहले | अजा एकादशी व्रत के बाद |
सामाजिक स्तर | एक चांडाल के दास, श्मशान में कार्यरत। | अयोध्या के चक्रवर्ती सम्राट। |
पारिवारिक स्थिति | पत्नी और पुत्र से बिछड़े हुए, पुत्र मृत। | पत्नी और पुत्र के साथ, पुत्र जीवित। |
मानसिक स्थिति | दुखी, चिंतित और कष्ट में। | सुखी, शांत और वैभवशाली। |
आध्यात्मिक स्थिति | पूर्व जन्म के कर्मों का फल भोग रहे थे। | समस्त पापों से मुक्त, अंत में स्वर्ग की प्राप्ति। |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
प्रश्न 1: अजा एकादशी की कथा सुनने का क्या फल है?
उत्तर: भगवान श्री कृष्ण के अनुसार, अजा एकादशी की कथा के श्रवण मात्र से ही अश्वमेध यज्ञ करने के समान पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
प्रश्न 2: इस कथा का मुख्य पात्र कौन है?
उत्तर: इस कथा के मुख्य पात्र सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र हैं, जो अपनी सत्यनिष्ठा और वचन-पालन के लिए जाने जाते हैं।
प्रश्न 3: राजा हरिश्चंद्र को उनके दुखों से मुक्ति कैसे मिली?
उत्तर: राजा हरिश्चंद्र को महर्षि गौतम के कहने पर अजा एकादशी का विधिपूर्वक व्रत और रात्रि जागरण करने से उनके सभी पाप नष्ट हो गए और उन्हें उनके सभी दुखों से मुक्ति मिली।
प्रश्न 4: क्या व्रत रखे बिना सिर्फ कथा सुन सकते हैं?
उत्तर: हाँ, यदि आप किसी कारणवश व्रत नहीं रख पा रहे हैं, तो भी पूरी श्रद्धा से इस कथा को सुनने या पढ़ने से पुण्य की प्राप्ति होती है। हालांकि, पूर्ण फल के लिए व्रत रखना श्रेष्ठ माना गया है।
निष्कर्ष
अजा एकादशी व्रत कथा हमें यह महत्वपूर्ण संदेश देती है कि सत्य और धर्म का मार्ग चाहे कितना भी कठिन क्यों न हो, अंत में विजय सत्य की ही होती है। यह कथा ईश्वर में अटूट विश्वास और व्रत-उपवास की शक्ति का एक ज्वलंत उदाहरण है। जिस प्रकार इस व्रत ने राजा हरिश्चंद्र के जीवन को पूरी तरह से बदल दिया, उसी प्रकार यह व्रत आज भी हर उस व्यक्ति के जीवन से कष्टों और दरिद्रता को दूर करने की क्षमता रखता है जो इसे पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ करता है।
॥ जय श्री हरि विष्णु ॥
संदर्भ और प्रेरणा स्रोत (References & Sources of Inspiration)
- Bhavishya Purana (भविष्य पुराण) – The primary scripture containing the detailed story of Aja Ekadashi and King Harishchandra.
- Religious texts and discourses by spiritual leaders on the significance of Ekadashi Vrats.