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गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है और इसका महत्व | Guru Purnima Kyu Manaya Jata Hai Hindi

गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है और इसका महत्व | Guru Purnima Kyu Manaya Jata Hai Hindi

भारत वर्ष में पौराणिक काल से गुरु को सर्वस्व माने जाने की परंपरा रही है। लेकिन क्या आप जानते हैं की गुरु पूर्णिमा क्यों मनाया जाता है? दूसरी ओर पूरे विश्व में मानव का व्यक्तित्व संवारने के लिए शिक्षा ग्रहण किए जाने को प्राथमिकता दी गई है, लेकिन वहीं देखा जाए तो भारत में शिक्षा को तो महत्व दिया गया है उससे लाख गुना अधिक प्राथमिकता शिक्षक यानी गुरुजनों को दी गई है।

एक बहुत ही पुरानी कहावत है कि गुरु ही है जो अपने शिष्य को सद्मार्ग के दर्शन कराता है। गुरु पूर्णिमा का पर्व गुरु को साक्षी मानकर मनाया जाता है।

इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता है कि, भारत वर्ष में मनाए जाने वाले हर दिन व पर्व के पीछे कोई न कोई पौराणिक मान्यता रहती है। ठीक इसी प्रकार गुरु पूर्णिमा पर्व को मनाने के पीछे भी एक मान्यता है जो कि महर्षि वेदव्यास से संबंधित है। भारत में प्राचीन काल से गुरु और शिष्य की बहुत सी कथाएं प्रचिलित हैं जो हमें एहसास कराती हैं कि भविष्य संवारने में गुरु का विशेष योगदान रहता है।

वहीं भारत में गुरु और शिष्य के बीच सबसे पवित्र रिश्ता माना जाता है, शिष्य अपने गुरुओं को पूज्यनीय देव का स्वरूप मानते हैं। इसलिए आज हमारे द्वारा आप लोगों को भी गुरु पूर्णिमा के विषय में पूरी जानकारी विस्तार पूर्वक साझा की जाएगी। ताकि आप लोगों को इस बात का संपूर्ण ज्ञान हो सके कि, गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है और इसका महत्व | Guru Purnima Kyu Manaya Jata Hai Hindi तो फिर चलिए शुरू करते हैं।

गुरु पूर्णिमा क्या है – What is Guru Purnima 2023 in Hindi

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Guru Purnima Kyu Manaya Jata Hai Hindi

गुरु पूर्णिमा मूल रूप से भारत में मनाया जाने वाला पर्व है। इस दिन शिष्य अपने गुरु के प्रति आदर, सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। भारत में गुरुओं को देव तुल्य माना जाता है। आमतौर पर इस दिन को हर कोई नहीं मनाता लेकिन बहुत से लोग इस दिन को सम्मान पूर्वक मनाते हैं और बहुत से लोग गुरु पूर्णिमा को काफी भव्य उत्सव के रूप में मनाते हैं।

गुरु पूर्णिमा में आमतौर पर शिष्य अपने गुरुओं के लिए इस दिन कृतज्ञता व्यक्त करते हैं लेकिन बहुत से लोग साधु संत आदि इस दिन स्नान ध्यान कर पूजा पाठ, आरती आदि करते हैं।

गुरु पूर्णिमा मनाने के पीछे एक पौराणिक मान्यता भी है जो कि महर्षि वेदव्यास जी से संबंधित है। बहुत से लोग इस दिन महर्षि वेदव्यास के छायाचित्र की पूजा आदि करते हैं। पौराणिक मान्यता है कि गुरु पूर्णिमा के दिन अपने गुरुओं का आशीर्वाद लेने से जीवन सफल हो जाता है।

गुरु पूर्णिमा वर्ष 2022 तिथि एवं शुभ मुहूर्त

23 जुलाई09.43 सुबह से शुरू
24 जुलाई07.52 शाम पर समाप्त

गुरु पूर्णिमा कब मनाया जाता है?

गुरु पूर्णिमा का पर्व भारत देश में वर्ष में एक बार हर वर्ष मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा का पर्व महर्षि वेदव्यास जी को पूर्णरूप से समर्पित है। गुरु पूर्णिमा का पर्व हिंदी कैलेंडर के आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है।

 

माना जाता है कि इस दिन 3000 ई. वर्ष पूर्व महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था। उनके प्रति आदर और सम्मान में ही प्रतिवर्ष आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है।

गुरु पूर्णिमा 2023 में कब था और 2023 में कब है?

बताते चलें कि, वर्ष 2019 में गुरु पूर्णिमा तारीख 4 जुलाई को था। गुरु पूर्णिमा का मुहूर्त वर्ष 2019 में तारीख 4 जुलाई को 11:33 बजे से प्रारंभ था और तारीख 5 जुलाई को 10:13 बजे समाप्त था।

इसी प्रकार वर्ष 2021 में गुरु पूर्णिमा 24 जुलाई को था। वर्ष 2021 में गुरु पूर्णिमा का मुहूर्त 24 जुलाई को 08:33 बजे से प्रारंभ हुआ और 25 जुलाई को 10:13 बजे समाप्त हुआ था।

गुरु पूर्णिमा क्यों मनाया जाता है

भारत में गुरु को पौराणिक काल से ही देव तुल्य माना जाता है। प्राचीन समय में गुरु अपने शिष्यों को आश्रम में निःशुल्क शिक्षा देते थे, शिष्य अपने गुरुओं के लिए गुरु पूर्णिमा के दिन पूजन आयोजित करते थे। मान्यता है कि, गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु का आशीर्वाद लेने से शिष्य को सद्मार्ग की प्राप्ति होती है।

यह भी एक मान्यता है कि इस दिन महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था और गुरु पूर्णिमा का पर्व महर्षि वेदव्यास जी को समर्पित है. महर्षि वेदव्यास जी का जन्म आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन हुआ था और हर वर्ष इसी दिन गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है।

एक यह भी मत है कि, गुरु पूर्णिमा से 4 महीने तक का मौसम अध्ययन के लिए बहुत अनुकूल रहता है। कारण इन चार महीनों में न अधिक सर्दी होती है ना अधिक गर्मी।

गुरु पूर्णिमा की कहानी

गुरु पूर्णिमा का पर्व महर्षि वेदव्यास जी को समर्पित है. वेद, उपनिषद और पुराणों का प्रणयन करने वाले महर्षि वेदव्यास जी को मनुष्य जाति का प्रथम गुरु माना गया है. माना जाता है आज से लगभग 3000 ई. वर्ष पूर्व महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था।

महर्षि वेदव्यास जी का जन्म आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को हुआ था और हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को ही गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है. इसीलिए इस दिन बहुत से लोग महर्षि वेदव्यास जी के छायाचित्र की पूजा करते हैं।

माना जाता है कि इसी दिन महर्षि वेदव्यास जी ने अपने शिष्यों एवं मुनियों को सर्वप्रथम भागवत गीता का ज्ञान दिया था. गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है. शास्त्रों के अनुसार महर्षि वेदव्यास जी को तीनों कालों का ज्ञाता माना जाता है. हिन्दू धर्म के चारों वेदों का विभाग किया. महर्षि वेदव्यास जी ने ही श्रीमद भागवत की रचना की और अठारह पुराणों की रचना की।

गुरु पूर्णिमा का महत्व

गुरु का महत्व भारतवर्ष की संस्कृति में प्राचीनकाल से ही रहा है। गुरु एवं शिष्य की बहुत सी कथाएं भी प्रचिलित हैं। भारत में गुरु एवं शिष्य के बीच का एक पवित्र और अनोखा रिश्ता माना गया है। गुरु के प्रति आदर, सम्मान व कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए ही गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है।

गुरु को भारतवर्ष में शुरू से ही देवता तुल्य माना गया है और ब्रम्हा, विष्णु एवं महेश के रूप में पूजा गया है. गुरुपूर्णिमा का पर्व अंधविश्वास से नही बल्कि श्रद्धाभाव से मनाना चाहिए।

शास्त्रों में कहा गया है कि गुरु अपने शिष्य के जीवन को अंधकार से हटाकर प्रकाश की ओर ले जाता है. गुरु पूर्णिमा वर्ष भर में पड़ने वाली सभी पूर्णिमा से खास मानी जाती है. कहा जाता है कि गुरु पूर्णिमा का पुण्य अर्जित करने से वर्ष में पड़ने वाली सभी पूर्णिमाओं का पुण्य मिल जाता है।

गुरु पूर्णिमा का पर्व कैंसे मनाया जाता है?

प्राचीनकाल में गुरु अपने आश्रमों में शिष्यों को मुफ्त शिक्षा देते थे और सभी शिष्य मिलकर अपने गुरु के लिए पूजन आयोजित करते थे। गुरु पूर्णिमा का पर्व भिन्न-भिन्न तरीके से मनाया जाता है। आमतौर पर लोग इस दिन अपने गुरु का पूजन कर उन्हें उपहार देकर चरणस्पर्श करते हैं और गुरु का आशीर्वाद ग्रहण करते हैं। बहुत से लोग जिनके गुरु दिवंगत हो गए हैं वे अपने गुरु की चरण पादुकाओं की पूजा करते हैं।

कुछ लोग गुरु पूर्णिमा का पर्व मुहूर्त में मनाते है। सुबह जल्दी उठकर दैनिक क्रिया से निवृत्त होकर स्नान करते हैं। स्नान करने के बाद भगवान विष्णु, शंकर एवं बृहस्पति की पूजा करने के बाद व्यास जी की पूजा करते हैं।

इस दिन सफेद या पीला वस्त्र धारण कर अपने गुरु का चित्र उत्तर दिशा में रखा जाता है। गुरु के चित्र को फूलों की माला पहनाकर, भोग लगाकर आरती एवं पूजन किया जाता है इसके बाद चरणस्पर्श कर गुरु का आशीर्वाद ग्रहण किया जाता है।

गुरु पूजन में किसकी पूजा होती है?

गुरु पूजन में महर्षि वेदव्यास जी की पूजा होती है। मान्यता है कि आषाढ़ पूर्णिमा तिथि को ही वेदों के रचयिचा महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था। महर्षि वेदव्यास के जन्म पर सदियों से गुरु पूर्णिमा के दिनगुरु पूजन की परंपरा चली आ रही है। 

गुरु पूर्णिमा को दूसरे किस नाम से जाना जाता है?

गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जानते हैं।

प्रथम गुरु कौन है?

माता को ही प्रथम गुरु माना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि जितना माता अपनी संतान को प्रेम करती है और उसकी हितैषी होती है, उतना अन्य कोई नहीं होता है। संतानों को भी माता से सर्वाधिक शिक्षा मिलती है। इस कारण माता प्रथम गुरु है। किसी ने बड़ा ही सुन्दर लिखा है कि अपने बच्चे के लिए मां शास्त्र का काम करती है और पिता शस्त्र का।

मानव के गुरु कौन थे?

महर्षि वेदव्यास को समस्त मानव जाति का गुरु माना जाता है।

KAMLESH VERMA

दैनिक भास्कर और पत्रिका जैसे राष्ट्रीय अखबार में बतौर रिपोर्टर सात वर्ष का अनुभव रखने वाले कमलेश वर्मा बिहार से ताल्लुक रखते हैं. बातें करने और लिखने के शौक़ीन कमलेश ने विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन से अपना ग्रेजुएशन और दिल्ली विश्वविद्यालय से मास्टर्स किया है. कमलेश वर्तमान में साऊदी अरब से लौटे हैं। खाड़ी देश से संबंधित मदद के लिए इनसे संपर्क किया जा सकता हैं।

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