Newsधर्म

10 महाविद्या | 10 Mahavidhya

10 महाविद्या | 10 Mahavidhya

शक्ति स्वरूपा माता दुर्गा के नौ रूप का पूजन नवरात्रि के दिनों में की जाती हैं, ठीक उसी प्रकार आदि शक्ति माता की दस महाविद्या भी प्रचलित हैं जिनकी पूजा गुप्त नवरात्रि के दिनों की जाती हैं। महाविद्या शब्द संस्कृत के दो शब्दों “महा” एवं “विद्या” से मिलकर निर्मित हुआ है। इसमें महा का अर्थ महान, विराट, और विशाल होता है, दूसरी ओर विद्या शब्द का अर्थ ज्ञान है। माता के उपासक जो गुप्त नवरात्रों में माता की आराधना करते हैं, उनके लिए यह लेख बेहद ही महत्वपूर्ण है। यह 10 महाविद्या मां सती ने भगवान शिव के समक्ष अपना रोद्र रूप दिखाने के लिए प्रकट की थी जिनका प्राकट्य अलग-अलग उद्देश्यों के लिए विभिन्न समयकाल में हुआ था। चलिए पोस्ट के जरिए विस्तार पूर्वक जानें 10 महाविद्या | 10 Mahavidhya

10 महाविद्या नाम

इन 10 महाविद्याओं के नाम इस प्रकार है :

  1. काली महाविद्या
  2. महाविद्या तारा
  3. त्रिपुर सुंदरी महाविद्या
  4. महाविद्या भुवनेश्वरी
  5. महाविद्या भैरवी
  6. महाविद्या छिन्नमस्ता
  7. महाविद्या धूमावती
  8. महाविद्या बगलामुखी
  9. महाविद्या मातंगी
  10. महाविद्या कमला

दोस्तों बताते चलें कि, उक्त दस महाविद्याओं के रूप की आराधना मुख्य रूप से तांत्रिक विद्या व शक्तियां हासिल करने के लिए की जाती हैं। इसी कारण उक्त विद्या को तांत्रिक महाविद्या या शक्तियां भी कहते हैं। तंत्र क्रिया या सिद्धि प्राप्ति के लिए उक्त 10 महाविद्याओं का बहुत अधिक महत्व होता है। इन 10 विद्याओं की साधना और उपासना से मनुष्य को विशेष फल की प्राप्ति होती है।

इन महाविद्याओं को दशावतार का नाम दिया गया है। 10 महाविद्याएं मां दुर्गा के ही रूप है जिसे सिद्धि देने वाली माना जाता है। मां दुर्गा के इन दस महाविद्याओं की साधना करने वाला उपासक जीवन के तमाम भौतिक सुखों को प्राप्त करने का सामर्थ्य प्राप्त होता है। प्रकृति के कण-कण में ये दस महाविद्या समाहित हैं। सारे ब्रह्मांड का मूल भी इन्ही महाविद्याओं में विराजमान है।

10-mahavidhya
10 Mahavidhya

10 महाविद्या के प्राकट्य की कहानी

भागवत पुराण में उल्लेख मिलता है कि, महाविद्याओं की उत्पत्ति का रहस्य इस प्रकार है: भगवान शिव और सती की शादी हुई थी, तब सती के पिता राजा दक्ष प्रजापति इस शादी से नाराज थे और भगवान शिव ( दामाद ) का तिरस्कार करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते थे।

भगवान शिव का अनादर करने के उद्देश्य से राजा दक्ष ने एक विशाल यज्ञ करवाया, जिसमें उन्होंने शिवजी के अतिरिक्त अन्य सभी देवी देवताओं को निमतंत्रण भेजा। इतना ही नहीं राजा दक्ष ने अपनी अन्य पुत्रिओं और दामाद चंद्र देव को भी यज्ञ में आमंत्रित किया था। माता सती को इस यज्ञ के बारे में पता चला तो सती भगवान शिव से यज्ञ में जाने की हठ करने लगीं, परन्तु शिव ने उनकी बात को अनसुना कर दिया।

इस पर सती ने क्रोधवश एक रोद्र रूप धारण कर लिया। सती का ऐसा रूप देखकर भगवान शिव भागने लगे। जिस-जिस दिशा में शिव जाते थे, उन्हें रोकने के लिए माता का एक अतिरिक्त विग्रह प्रकट हो जाता था। इस प्रकार भगवान शंकर को रोकने के लिए माता सती ने दस रूप लिए जो 10 महाविद्या कहलाईं।


10 महाविद्या का रूप वर्णन और बीज मंत्र

काली महाविद्या 

महाविद्या काली पहली महाविद्या के नाम से जाती हैं जो माँ सती के शरीर से प्रकट हुई थी। इनका रूप अत्यंत भयंकर व दुष्टों का संहार करने वाला हैं। माता सती ने क्रोधवश सबसे पहले अपने सबसे भीषण रूप को प्रकट किया था जो फुंफकार रही थी।

स्वर्ग के देव और दानवों के बीच हुए युद्ध में मां काली ने ही देवताओं को युद्ध में विजय दिलवाई थी। सिद्धि प्राप्त करने के लिए माता के इस रूप की पूजन किया जाता है।  मां काली का उल्लेख और उनके कार्यों की रूपरेखा चंडी पाठ में दी गई है।

वर्ण  काला
केश खुले हुए एवं अस्त-व्यस्त
नेत्र तीन
हस्त चार
वस्त्र नग्न अवस्था
मुख के भाव अत्यधिक क्रोधित व फुंफकार मारती हुई
अस्त्र शस्त्र व् हाथों की मुद्रा खड्ग, राक्षस की खोपड़ी, अभय मुद्रा, वर मुद्रा
अन्य प्रमुख विशेषता गले व कमर में राक्षसों की मुण्डमाल, जीभ अत्यधिक लंबी, एवं रक्त से भरी हुई
महाविद्या काली मंत्रॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरि कालिके स्वाहा
10-mahavidhya
काली महाविद्या

तारा महाविद्या 

दूसरी महाविद्या का नाम सिद्धि माँ तारा है, इसे श्मशान तारा के नाम से भी जाना जाता है। जो भक्त माँ तारा की उपासना करता है उसका जीवन हमेशा खुशियों से भर जाता है। उस भक्त को माँ तीव्र बुद्धि और रचनात्मक क्षमता का वर देती हैं। शत्रुओं का नाश करने के लिए भी श्मशान माता की पूजा होती है।

बता दें कि, मां दुर्गा के इस रूप की आराधना करने पर आर्थिक उन्नति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में तारापीठ है इसी स्थान पर देवी तारा की उपासना महर्षि वशिष्ठ ने की थी और तमाम सिद्धियां हासिल की थी। तारा देवी का दूसरा प्रसिद्ध मंदिर हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में स्थित है।

इनका रूप भी भीषण व दुष्टों का संहार करने वाला हैं, इसलिए इन्हें माँ काली के समान ही माना गया हैं। बहुत ही कम लोगों को पता होगा कि, आदि शक्ति के इस रूप ने भगवान शिव को स्तनपान करवाया था, इसलिए इन्हें शिव की माँ की उपाधि भी प्राप्त हैं।

सतयुग में देव-दानवों के बीच हुए समुंद्र मंथन में जब अथाह मात्रा में विष निकला तो उसका पान महादेव ने किया किंतु विष के प्रभाव से उनके अंदर मूर्छा छाने लगी। तब माता पार्वती ने तारा रूप धरकर उन्हें स्तनपान करवाया जिससे शिवजी पर विष का प्रभाव कम हुआ।

शक्ति का यह स्वरूप सर्वदा मोक्ष प्राप्त करने वाला तथा अपने भक्तों को समस्त प्रकार से घोर संकटों से मुक्ति प्रदान करने वाला है। चैत्र मास की नवमी तिथि और शुक्ल पक्ष के दिन तंत्र साधकों के लिए सर्वसिद्धिकारक माना गया है।

वर्ण  नीला
केश खुले हुए एवं अस्त-व्यस्त
नेत्र तीन
हस्त चार
वस्त्र बाघ की खाल
मुख के भाव आश्चर्यचकित व खुला हुआ
अस्त्र शस्त्र व् हाथों की मुद्रा खड्ग, तलवार, कमल फूल व कैंची
अन्य प्रमुख विशेषता गले में सर्प व राक्षस नरमुंडों की माला
महाविद्या तारा मंत्रऊँ ह्नीं स्त्रीं हुम फट
10-mahavidhya
तारा महाविद्या

त्रिपुर सुंदरी महाविद्या 

त्रिपुर सुंदरी महाविद्या इन्हें ललिता, राज राजेश्वरी और त्रिपुर सुंदरी के नाम से भी जाना जाता है। भारत के त्रिपुरा में स्थित त्रिपुर सुंदरी का शक्तिपीठ है। जहां पर शक्ति स्वरूपा की चार भुजा और 3 नेत्र हैं। इन्हें महाविद्या षोडशी के नाम से भी पुकारा जाता हैं कारण इनकी आयु 16 वर्ष की थी।

पहले दो रूपों में मातारानी ने अपने उग्र और रोद्र रूप प्रकट किया था। जिसके बाद उनका यह सुंदर रूप प्रकट हुआ जो अत्यंत ही मंगलकारी व मन को मोह लेने वाला था। इनका प्राकट्य अपने भक्तों के मन से भय को समाप्त करने व अंतर्मन को शांति प्रदान करने वाला था।

वर्ण  सुनहरा
केश खुले हुए एवं व्यवस्थित
नेत्र तीन
हस्त चार
वस्त्र लाल रंग के
मुख के भाव शांत व तेज चमक के साथ
अस्त्र शस्त्र व् हाथों की मुद्रा पुष्प रुपी पांच बाण, धनुष, अंकुश व फंदा
अन्य प्रमुख विशेषता भगवान शिव की नाभि से निकले कमल के आसन पर विराजमान
त्रिपुर सुंदरी महाविद्या मंत्रऐ ह्नीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नम:
10-mahavidhya
त्रिपुर सुंदरी महाविद्या

भुवनेश्वरी महाविद्या 

मां भुवनेश्वरी चौथी महाविद्या है। भुवन शब्द का अर्थ है ब्रह्मांड और ईश्वरी शब्द का अर्थ है शासक इसी के चलते माता भुवनेश्वरी को ब्रह्मांड के शासक की उपाधि दी गई हैं। माता को राज राजेश्वरी के रूप में भी पुकारा जाता है, यह ब्रह्मांड की रक्षा करतीं हैं।

पुत्र प्राप्ति के लिए माता भुवनेश्वरी की पूजा करना बेहद ही मंगलकारी माना गया है। यह शताक्षी और शाकम्भरी नाम से भी जानी जाती है। भुवनेश्वरी महाविद्या की आराधना से सूर्य के समान तेज ऊर्जा प्राप्ति होती है और जीवन में मान सम्मान मिलता है।

वर्ण  उगते सूर्य के समान तेज व सुनहरा
केश खुले हुए एवं अस्त-व्यस्त
नेत्र तीन
हस्त चार
वस्त्र लाल व पीले रंग के
मुख के भाव शांत व अपने भक्तों को देखता हुआ
अस्त्र शस्त्र व् हाथों की मुद्रा अंकुश, फंदा, अभय व वर मुद्रा
अन्य प्रमुख विशेषता इनका तेज सर्वाधिक है जिसमें कई कार्यों की शक्ति निहित हैं
भुवनेश्वरी महाविद्या मंत्रह्नीं भुवनेश्वरीयै ह्नीं नम:
10-mahavidhya
भुवनेश्वरी महाविद्या

भैरवी महाविद्या 

महाविद्या भैरवी पांचवीं महाविद्या के नाम से जाना जाता हैं। मां का यह रूप भी अत्यंत गंभीर व दुष्टों का नाश करने वाला हैं। अपने इस रूप के कारण इन्हें माता काली व भगवान शिव के भैरव अवतार के समकक्ष माना गया हैं।

तांत्रिक समस्याओं का एक ही साधन है माँ त्रिपुर भैरवी। माँ भैरवी की उपासना करने से विवाह में आई बाधाओं से भी मुक्ति मिलती है। भैरवी की उपासना से व्यक्ति से दुष्ट प्रभावों से मुक्ति मिलती है। इनकी पूजा से व्यापार में लगातार बढ़ोतरी और धन सम्पदा की प्राप्ति होती है।

भैरवी देवी का एक रोद्र और गंभीर रूप है जो प्रकृति में मां काली से शायद ही अभी वाच्य है। देवी भैरवी भैरव के समान ही हैं जो भगवान शिव का एक उग्र रूप है जो सर्वनाश से जुड़ा हुआ है। इनका एक नाम चंडिका भी हैं कारण इनका प्राकट्य चंड व मुंड नाम के दो राक्षसों का सेनासहित वध करने के लिए भी हुआ था।

वर्ण  काला
केश खुले हुए एवं अस्त-व्यस्त
नेत्र तीन
हस्त चार
वस्त्र लाल व सुनहरे
मुख के भाव खड्ग, तलवार, राक्षस की खोपड़ी व अभय मुद्रा
अस्त्र शस्त्र व् हाथों की मुद्रा क्रोधित
अन्य प्रमुख विशेषता राक्षसों की खोपड़ियों के आसन पर विराजमान हैं, जीभ लंबी, रक्तरंजित व बाहर निकली हुई हैं
भैरवी महाविद्या मंत्रह्नीं भैरवी क्लौं ह्नीं स्वाहा
10-mahavidhya
भैरवी महाविद्या

छिन्नमस्ता महाविद्या 

10 महाविद्या देवी छिन्नमस्ता का छठा स्वरूप है उन्हें प्रचंड चंडिका के नाम से भी पहचाना जाता है। देवी छिन्नमस्ता का रूप माँ के सभी रूपों में सबसे भिन्न हैं कारण इसमें देवी ने अपने एक हाथ में किसी राक्षस की खोपड़ी नहीं बल्कि स्वयं का ही मस्तक पकड़े हुए खड़ी हैं।

जब आदि शक्ति दुर्गा ने अपनी दो सेविकाओं जया व विजया के साथ मंदाकिनी नदी पर स्नान करने गयी थी।स्नान करने के पश्चात तीनों को भूख लगी। दोनों सेविकाओं के द्वारा बार-बार भोजन की विनती करने पर माता ने अपना ही मस्तक धड़ से काटकर अलग कर दिया व उसके रक्तपान से सभी की भूख शांत की थी।

इनका स्वरूप कटा हुआ सिर और बहती हुई रक्त की तीन धाराएं से सुशोभित रहता है। इस महाविद्या की साधना करने से मन को शांति मिलती है। छिन्नमस्तिके का मंदिर झारखंड की राजधानी रांची में स्थिति है। तंत्र शक्ति हासिल करने के लिए कामाख्या के बाद यह दूसरा सबसे लोकप्रिय शक्तिपीठ है।

वर्ण  गुड़हल के समान लाल
केश खुले हुए
नेत्र तीन
हस्त दो
वस्त्र नग्न, केवल आभूषण पहने हुए
मुख के भाव अपना ही रक्त पीते हुए
अस्त्र शस्त्र व् हाथों की मुद्रा खड्ग व अपना कटा हुआ सिर
अन्य प्रमुख विशेषता गले में नरमुंडों की माला पहने हुए हैं। धड़ में से तीन रक्त की धाराएँ निकल रही हैं, जिसमें से दो धाराएँ पास में खड़ी सेविकाएँ पी रही हैं। मैथुन करते हुए जोड़े के ऊपर खड़ी हैं।
छिन्नमस्तिका महाविद्या मंत्रश्रीं ह्नीं ऎं वज्र वैरोचानियै ह्नीं फट स्वाहा
10-mahavidhya
छिन्नमस्ता महाविद्या

धूमावती महाविद्या

महाविद्या धूमावती सातवीं महाविद्या की उपमा दी गई हैं। माता का यह रूप अत्यंत दुखदायी, बूढ़ा, दरिद्र, व्याकुल व भूखा हैं। महाविद्या धूमावती का यह रूप शिवजी के श्रापस्वरुप विधवा भी हैं। इनके अवगुणों के कारण इसे अलक्ष्मी व ज्येष्ठा भी कहा जाता है।

मां धूमावती प्रकृति में उनकी तुलना देवी अलक्ष्मी, देवी जेष्ठा और देवी नीर्ती के साथ की जाती है। यह तीनो देवियां नकारात्मक गुणों का अवतार हैं लेकिन साथ ही वर्ष के एक विशेष समय पर उनका पूजन भी की जाती है।

धूमावती माता को अभाव और संकट को दूर करने वाली माता कहा जाता है। इनका कोई भी स्वामी नहीं है। इनकी साधना से व्यक्ति की पहचान महाप्रतापी और सिद्ध पुरूष के रूप में होती है। ऋग्वेद में इन्हें ‘सुतरा’ नाम दिया गया है।

वर्ण  श्वेत
केश खुले, मैले व अस्त-व्यस्त
नेत्र दो
हस्त दो
वस्त्र श्वेत
मुख के भाव थकान, संशय, दुखी, व्याकुल, बेचैन
अस्त्र शस्त्र व् हाथों की मुद्रा टोकरी व अभय मुद्रा
अन्य प्रमुख विशेषता अत्यंत बूढ़ा एवं झुर्रियों वाला शरीर, घोड़े के रथ पर विराजमान जिसके शीर्ष पर कौवा बैठा है
धूमावती महाविद्या मंत्रऊँ धूं धूं धूमावती देव्यै स्वाहा:
10-mahavidhya
धूमावती महाविद्या

बगलामुखी महाविद्या 

बगलामुखी 10 महाविद्याओं में 8वीं महाविद्या है और इनको स्तंभन शक्ति की देवी की उपमा दी गई है। मां बगलामुखी को माँ पितांबरा के नाम से भी पुकारा जाता है।  माँ पितांबरा आदि शक्ति का एक ऐसा स्वरूप है जो पीत अर्थात पीला वस्त्रों से, पीत आभूषणों से, स्वर्ण आभूषणों से, और पीत पुष्पों से सुसज्जित है। इस रूप में देवी एक मृत शरीर पर बैठी हुई अपने एक हाथ से राक्षस की जिव्हा पकड़े हुई हैं।

एक बार सौराष्ट्र में भीषण तूफान ने बहुत तबाही मचाई थी। तब सभी देवताओं ने माँ से सहायता प्राप्ति की विनती की। यह देखकर माँ का एक रूप हरिद्र सरोवर से प्रकट हुआ और इस तूफान को शांत किया। उसके बाद से ही मातारानी का बगलामुखी रूप प्रचलन में आया।

बगलामुखी की साधना दुश्मन के भय से मुक्ति और वाक् सिद्धि के लिए की जाती है। जो साधक नवरात्रि में इनकी साधना करता है वह हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है। महाभारत के युद्ध में कृष्ण और अर्जुन ने कौरवों पर विजय हासिल करने के लिए माता बगलामुखी की पूजा अर्चना की थी।

वर्ण  सुनहरा
केश खुले हुए एवं अस्त-व्यस्त
नेत्र तीन
हस्त दो
वस्त्र पीले
मुख के भाव डराने वाले
अस्त्र शस्त्र व् हाथों की मुद्रा बेलन के आकार का शस्त्र व राक्षस की जिव्हा
अन्य प्रमुख विशेषता गले व कमर में राक्षसों की मुण्डमाल, जीभ अत्यधिक लंबी, एवं रक्त से भरी हुई।
बगलामुखी महाविद्या मंत्रऊँ ह्नीं बगुलामुखी देव्यै ह्नीं ओम नम: (1)
ह्मीं बगलामुखी सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलम बुद्धिं विनाशय ह्मीं ॐ स्वाहा (2)
10-mahavidhya
बगलामुखी महाविद्या

मातंगी महाविद्या 

महाविद्या मातंगी नौवीं महाविद्या मानी जाती हैं । महाविद्या मातंगी का यह रूप सबसे अनोखा हैं क्योंकि आपने कभी नही सुना होगा कि भगवान को झूठन का भोग लगाया जाता हो लेकिन महाविद्या मातंगी को हमेशा झूठन का भोग लगाया जाता है। महाविद्याओं में 9वीं देवी मातंगी वैदिक सरस्वती का तांत्रिक रूप है और श्री कुल के अंतर्गत पूजी जाती हैं।

एक बार जब भगवान शिव व माता पार्वती विष्णु व लक्ष्मी का दिया हुआ भोजन कर रहे थे तब उनके हाथ से भोजन के कुछ अंश नीचे गिर गए। उसी झूठन में से माँ मातंगी का प्राकट्य हुआ। इसी कारण महाविद्या मातंगी के इस रूप को हमेशा झूठन का भोग लगाया जाता हैं।

मतंग भगवान शिव का भी एक नाम है। जो भक्त मातंगी महाविद्या की सिद्धि प्राप्त करता है वह खेल, कला और संगीत के कौशल से दुनिया को अपने वश में कर लेता है।

वर्ण  गहरा हरा
केश खुले हुए व व्यवस्थित
नेत्र तीन
हस्त चार
वस्त्र लाल
मुख के भाव आनंदमयी एवं शांत
अस्त्र शस्त्र व् हाथों की मुद्रा अंकुश, फंदा, तलवार, एवं अभय मुद्रा
अन्य प्रमुख विशेषता इनके हाथों में देवी सरस्वती के सामान वीणा रखी हुई है, इसलिए इन्हे तांत्रिक सरस्वती भी कहते हैं
मातंगी महाविद्या मंत्रऊँ ह्नीं ऐ भगवती मतंगेश्वरी श्रीं स्वाहा:
10-mahavidhya
मातंगी महाविद्या

कमला महाविद्या 

महाविद्या कमला दसवीं व अंतिम महाविद्या मानी जाती हैं। महाविद्या कमला लक्ष्मी के समकक्ष माना गया हैं अर्थात यह एक तरह से माता लक्ष्मी का ही रूप हैं। इन्हें तांत्रिक लक्ष्मी भी कहा जाता हैं। माँ का एक रूप माँ लक्ष्मी भी हैं। इसी रूप को प्रदर्शित करने के लिए माँ सती ने अपने कमला रूप को प्रकट किया था।

मां कमला की साधना समृद्धि, धन सम्पति , नारी, पुत्र की प्राप्ति के लिए की जाती है। महाविद्या कमला की साधना से व्यक्ति धनवान और विद्यावान हो जाता है। धन एवं सुंदरता की देवी जिनकी वजह से आज भी इंद्र को देवराज कहा जाता है, वे हैं देवी कमला।

कमला महाविद्या 
वर्ण  तेज एवं सुनहरा
केश खुले हुए एवं व्यवस्थित
नेत्र तीन
हस्त चार
वस्त्र लाल
मुख के भाव आनंदमयी, सुखकारी एवं शांत
अस्त्र शस्त्र व् हाथों की मुद्रा दो कमल पुष्प, अभय एवं वरदान मुद्रा
अन्य प्रमुख विशेषता कमल पुष्प से भरे हुए सरोवर में, आसपास चार हाथी जल से अभिषेक करते हुए
कमला महाविद्या मंत्रहसौ: जगत प्रसुत्तयै स्वाहा:
10-mahavidhya
कमला महाविद्या

हिमाचल के मंदिर | Himachal Ke Mandir

KAMLESH VERMA

दैनिक भास्कर और पत्रिका जैसे राष्ट्रीय अखबार में बतौर रिपोर्टर सात वर्ष का अनुभव रखने वाले कमलेश वर्मा बिहार से ताल्लुक रखते हैं. बातें करने और लिखने के शौक़ीन कमलेश ने विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन से अपना ग्रेजुएशन और दिल्ली विश्वविद्यालय से मास्टर्स किया है. कमलेश वर्तमान में साऊदी अरब से लौटे हैं। खाड़ी देश से संबंधित मदद के लिए इनसे संपर्क किया जा सकता हैं।

Related Articles

DMCA.com Protection Status
जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा 2024 Amarnath Yatra Start and End Date 2024 बाइक शायरी – Bike Shayari Tribal leader Mohan Majhi to be Odisha’s first BJP CM iOS 18 makes iPhone more personal, capable, and intelligent than ever चुनाव पर सुविचार | Election Quotes in Hindi स्टार्टअप पर सुविचार | Startup Quotes in Hindi पान का इतिहास | History of Paan महा शिवरात्रि शायरी स्टेटस | Maha Shivratri Shayari सवाल जवाब शायरी- पढ़िए