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अंधे के हाथ बटेर लगना! मुहावरे की उत्पत्ति, उपयोग और 5 छोटी कहानियाँ

अंधे के हाथ बटेर लगना मुहावरे का अर्थ

यह मुहावरा उस अप्रत्याशित सौभाग्य की बात करता है जो बिना किसी पूर्व योजना या प्रयास के किसी के जीवन में आ जाए। यह एक ऐसा आश्चर्यजनक लाभ है जो व्यक्ति की मेहनत या काबिलियत से नहीं, बल्कि उसकी किस्मत से जुड़ा होता है।

कुछ उदाहरण:

लॉटरी जीतना: मोहन ने तो बस यूँ ही लॉटरी का टिकट ख़रीदा था, और देखो अंधे के हाथ बटेर लग गया – उसने करोड़ों रुपये जीत लिए!

नौकरी का मिलना: रीता ने तो बस यूँ ही एक कंपनी में अपना रिज्यूमे जमा किया था, और अंधे के हाथ बटेर लग गया – उसे तुरंत नौकरी मिल गई जबकि कई अनुभवी लोग भी उस पद के लिए आवेदन कर रहे थे।

खोया हुआ सामान मिलना: मैंने तो अपना पर्स खोने की उम्मीद ही छोड़ दी थी, लेकिन कल अचानक से वो मेरे घर के दरवाज़े पर पड़ा मिला – बिलकुल अंधे के हाथ बटेर लगने जैसा!

मुहावरे की उत्पत्ति

इस मुहावरे की उत्पत्ति के पीछे एक लोकप्रिय कहानी है। एक बार एक अंधा व्यक्ति जंगल में लकड़ियाँ बीन रहा था। उसे रास्ते में एक बटेर का घोंसला दिखा, लेकिन अंधा होने के कारण वह उसे पहचान नहीं पाया। अनजाने में ही उसका पैर घोंसले से टकरा गया और बटेर उड़ गया। बटेर के उड़ते ही उसके अंडे घोंसले से नीचे गिर गए और सीधे अंधे व्यक्ति की झोली में जा गिरे। इस अप्रत्याशित घटना ने इस मुहावरे को जन्म दिया।

मुहावरे का उपयोग

यह मुहावरा अक्सर तब उपयोग किया जाता है जब कोई व्यक्ति बिना किसी मेहनत के कोई बड़ा लाभ प्राप्त कर लेता है। यह एक हल्के-फुल्के और व्यंग्यात्मक तरीके से उस व्यक्ति के सौभाग्य को व्यक्त करता है।

सीख

यह मुहावरा हमें याद दिलाता है कि जीवन में कभी-कभी अप्रत्याशित रूप से अच्छी चीज़ें भी हो सकती हैं, भले ही हमने उसके लिए कोई विशेष प्रयास न किया हो। यह हमें भाग्य और संयोग की शक्ति को स्वीकार करना सिखाता है। साथ ही, यह हमें यह भी बताता है कि हमें हमेशा अवसरों के लिए तैयार रहना चाहिए, क्योंकि किस्मत कभी भी करवट ले सकती है।

अंधे के हाथ बटेर लगना मुहावरे पर आधारित 5 छोटी कहानियाँ

1. रामू की लॉटरी

रामू, गाँव का एक गरीब किसान था। एक दिन उसने मज़ाक में एक लॉटरी का टिकट ख़रीदा। उसे क्या पता था कि उसकी किस्मत उस दिन बदलने वाली है! लॉटरी के परिणाम आए और रामू की आँखें खुली की खुली रह गईं – उसने पहला इनाम जीत लिया था! अब रामू के पास इतने पैसे थे कि वो अपने सारे सपने पूरे कर सकता था।

2. श्यामू का खोया हुआ बटुआ

श्यामू, शहर में एक छोटी सी नौकरी करता था। एक दिन भीड़-भाड़ वाली बस में उसका बटुआ कहीं गिर गया। उसने पूरी बस छान मारी, पर बटुआ नहीं मिला। निराश होकर वो घर लौट आया। अगले दिन उसके दरवाज़े पर एक अनजान आदमी खड़ा था। उसके हाथ में श्यामू का बटुआ था! उस आदमी ने बताया कि उसे बटुआ सड़क पर पड़ा मिला था और उसने उसमें श्यामू का पता ढूंढ निकाला था।

3. राधा की नौकरी

राधा, एक होनहार लड़की थी, लेकिन बेरोज़गारी के कारण उसे नौकरी नहीं मिल रही थी। एक दिन वो एक कंपनी के बाहर से गुज़र रही थी, तभी उसे वहाँ एक नोटिस दिखा कि कंपनी को तुरंत एक कर्मचारी की ज़रूरत है। राधा ने बिना देर किए आवेदन किया और उसकी किस्मत अच्छी थी – उसे नौकरी मिल गई!

4. मोहन का खज़ाना

मोहन अपने पुश्तैनी घर की मरम्मत करवा रहा था। एक दिन मज़दूरों को दीवार तोड़ते समय एक पुराना संदूक मिला। संदूक खोला तो उसमें सोने के सिक्कों और ज़ेवरों से भरा खज़ाना था! मोहन को यकीन नहीं हो रहा था कि उसे इतनी बड़ी दौलत मिल गई है।

5. सीमा की परीक्षा

सीमा, अपनी परीक्षा की तैयारी ठीक से नहीं कर पाई थी। परीक्षा के दिन वो बहुत घबराई हुई थी। पेपर देखकर तो उसके होश उड़ गए – उसमें ज़्यादातर सवाल वही थे जो उसने आखिरी दिन पढ़े थे! सीमा ने सारे सवाल हल कर दिए और परीक्षा में अच्छे नंबर हासिल किए।

ये कहानियाँ दिखाती हैं कि कैसे कभी-कभी किस्मत अचानक बदल जाती है और हमें अप्रत्याशित रूप से कुछ अच्छा मिल जाता है, ठीक वैसे ही जैसे अंधे को बटेर मिल जाए!

KAMLESH VERMA

दैनिक भास्कर और पत्रिका जैसे राष्ट्रीय अखबार में बतौर रिपोर्टर सात वर्ष का अनुभव रखने वाले कमलेश वर्मा बिहार से ताल्लुक रखते हैं. बातें करने और लिखने के शौक़ीन कमलेश ने विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन से अपना ग्रेजुएशन और दिल्ली विश्वविद्यालय से मास्टर्स किया है. कमलेश वर्तमान में साऊदी अरब से लौटे हैं। खाड़ी देश से संबंधित मदद के लिए इनसे संपर्क किया जा सकता हैं।
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