कश्मीरियों का भरोसा जीतने का फॉर्मूला पाकिस्तान बिना मुश्किल, जानिए क्यों । Jammu Kashmir Pakistan News Updates | PM Modi Meeting India Pakistan Relation Cross Border Trading
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते दिनों जम्मू-कश्मीर के 8 दलों के साथ करीब साढ़े तीन घंटे तक बैठक की. मोदी चाहते हैं कि दिल्ली और कश्मीर के बीच दिलों की दूरियां मिटें. पर, कश्मीरी नेताओं का कहना है कि एक बैठक से यह मुश्किल है. नेताओं का तर्क है कि, कश्मीर और कश्मीरियों में विश्वास की बहाली जरूरी है.
इसी बीच महबूबा मुफ्ती ने पाकिस्तान के साथ दोबारा बातचीत शुरू करने की बात कहकर नई बहस शुरू कर दी है. बहस यह है कि कश्मीर में आखिर पाकिस्तान का क्या काम है? दरअसल, विश्वास बहाली फिलहाल पाकिस्तान से बातचीत किए बिना संभव नहीं दिखती है.
LoC पार रिश्ते अहम क्यों, जानिए…
सबसे पहला सवाल यह है कि सरकार को कश्मीरी नेताओं से बातचीत की जरूरत क्यों पड़ी?
पीएम मोदी की कश्मीरी नेताओं के साथ बातचीत को एक बड़ी रुकावट दूर करने के तौर पर देखा जा रहा है. सूत्रों का कहना है कि, नई दिल्ली और श्रीनगर के बीच पुल बनाने की कोशिश की जारी है. कश्मीर मामले के जानकार बताते हैं कि सरकार को ये कदम उठाने की जरूरत इसलिए पड़ी, क्योंकि जम्मू-कश्मीर में किसी तरह की अस्थिरता अभी नहीं है और न ही कोई दबाव है. ऐसे में कश्मीरी पार्टियों के साथ बातचीत का ग्राउंड बन गया.
पाकिस्तान के साथ भी सीजफायर चल रहा है. यह फरवरी 2021 से जारी है. दो साल में सैकड़ों आतंकवादी और उनके कई कमांडर मारे गए हैं. साथ ही जियो-पॉलिटिकल बदलाव भी हो रहे हैं. इन्हें देखते हुए सरकार को बातचीत का कदम उठाना पड़ा है.
आखिर पाकिस्तान का नाम फिर उठा क्यों?
गुपकार अलायंस का हिस्सा बनी PDP की चीफ महबूबा मुफ्ती ने मोदी के साथ मीटिंग के बाद कहा कि जिस तरह चीन से आप बात कर रहे हैं. तालिबान से दोहा में बात कर रहे हैं, उसी तरह कश्मीर मुद्दे पर आपको पाकिस्तान से दोबारा बातचीत शुरू करनी चाहिए.
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पाकिस्तान का नाम उठने का वृहद असर क्या होगा?
महबूबा ने पाकिस्तान का नाम लिया है, लेकिन गुपकार अलायंस में शामिल नेशनल कॉन्फ्रेंस चीफ फारूक अब्दुल्ला का कहना है कि, हम पाकिस्तान को तस्वीर में लाना नहीं चाहते, हम इस मामले पर देश के प्रधानमंत्री से ही बात करेंगे. महबूबा ने जो कहा, वो उनका एजेंडा होगा. दोनों बयानों से गुपकार में शामिल पार्टियों के आपसी मतभेद सामने आ गए हैं.
अब क्रॉस बॉर्डर ट्रेड और सफर क्यों जरूरी है?
दिल्ली स्थित ब्यूरो ऑफ रिसर्च ऑन इंडस्ट्री एंड इकोनॉमिक्स फंडामेंटल्स (BRIEF) ने कश्मीरियों के LoC पार व्यापार पर शोध किया है. इसमें BRIEF ने श्रीनगर, बारामूला, उरी, पुंछ के व्यापारियों और करीब 4 हजार से ज्यादा परिवारों से बातचीत भी की है.
शोध में यह बात भी सामने आई है कि उरी-मुजफ्फराबाद और पुंछ-रावलकोट रूट पर व्यापार करने वाले लोगों पर बहुत बुरा असर पड़ा है. अप्रैल 2019 के बाद जम्मू-कश्मीर में क्रॉस LoC ट्रेडिंग पर रोक लगा दी गई.
क्रॉस बॉर्डर ट्रेडिंग कब शुरू हुई ?
मुफ्ती सईद जब जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री थे, उनके समय 7 अप्रैल 2005 को तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पहली क्रॉस LoC बस सेवा कारवां-ए-पाकिस्तान की शुरुआत की थी. यह बस सेवा श्रीनगर को मुजफ्फराबाद से जोड़ती थी. बाद में 21 अक्टूबर 2008 को क्रॉस LoC ट्रेड शुरू की गई. ये उरी-मुजफ्फराबाद और पुंछ-रावलकोट रूट पर शुरू की गई थी.
शोधकर्ताओं की मानें तो, साल 2008 से 2019 के बीच इन दोनों रूट पर 21 आइटम्स के व्यापार की इजाजत दी गई थी. इसके लिए कोई बैंकिंग या मनी ट्रांसफर फैसिलिटी नहीं थी. शोध के मुताबिक, उरी-मुजफ्फराबाद रूट पर व्यापार करने वाले लोगों को सालाना 40 करोड़ का नुकसान हो रहा है. 2008 से 2019 के बीच दोनों रूट पर करीब 7500 करोड़ का व्यापार हुआ.
क्रॉस बॉर्डर ट्रेडिंग पर रोक क्यों लगा दी?
क्रॉस बॉर्डर ट्रेडिंग सीजफायर वॉयलेशन के चलते कई बार रोकनी पड़ी. जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल-370 हटाए जाने से 5 महीने पहले 9 अप्रैल 2019 को इसे पूरी तरह से रोक दिया गया. सरकार ने कहा कि इस ट्रेडिंग रूट का इस्तेमाल हथियारों की स्मगलिंग, ड्रग्स और जाली नोटों की तस्करी के लिए किया जा रहा है. जो देश की सुरक्षा के लिए ठीक नहीं है.
अब जानें ये क्रॉस बॉर्डर ट्रेडिंग जरूरी क्यों है?
कश्मीर मामले के जानकारों का कहना है कि क्रॉस LoC ट्रेडिंग और बस सर्विस कश्मीर में विश्वास बहाली के लिए 2 सबसे अहम जरूरी चीजें हैं. भारत और पाकिस्तान के बीच भी कश्मीर मसला सुलझाने के लिए इनकी काफी अहमियत है. BRIEF ने अपनी रिसर्च के दौरान जब लोगों से बातचीत की, तब यही बातें सामने आईं.
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