फारबिसगंज (बिहार) का इतिहास | History of Forbesganj Bihar

फारबिसगंज (बिहार) का इतिहास | History of Forbesganj Bihar | बिहार राज्य के अररिया जिला में स्थित एक शहर

फारबिसगंज नाम सुनने में जितना अजीब लग रहा है। लेकिन यह सच है, बिहार राज्य के अररिया जिले में स्थित है फारबिसगंज। 1990 के दशक में यह शहर पूर्णिया जिले का हिस्सा हुआ करता था। खास बात यह है कि फारबिसगंज से महज 15 मिनट की दूरी यानी करीब 20 किमी दूर इस शहर की सीमा नेपाल देश से लगती है। फारबिसगंज की सीमा में राष्ट्रीय राजमार्ग 27 और राष्ट्रीय राजमार्ग 527 आती है।

फारबिसगंज (बिहार) का इतिहास | History of Forbesganj Bihar

फारबिसगंज का इतिहास बेहद ही गौरवशाली रहा है। 19वीं सदी के दौर में जब अलैक्जेंडर जॉन फोरबेस ने बाबू प्रताप सिंह दुगड़ व अन्य से सुल्तानपुर इस्टेट की खरीदा था तो इस शहर का नाम बदलकर फोरबेसाबाद कर दिया गया था। साल 1877 में हंटर की रिपोर्ट में भी बिहार राज्य के इस शहर का नाम फोरबेसाबाद ही उल्लेखित है। लेकिन जब सरकार द्वारा इस क्षेत्र में रेलवे लाइन का विस्तार किया गया तो इसे फोरबेसगंज जंक्शन नाम दे दिया गया। फारबिसगंज के अधीन रामुपर, किरकिचिया, भागकोहलिया तथा मटियारी राजस्व ग्राम हैं। इतना ही नहीं यदि आप इस शहर के प्राचीन इतिहास को खंघालेंगे तो सुल्तानपुर इस्टेट की कचहरी के अवशेष आज भी नजर आते हैं।

History of Forbesganj Bihar
History of Forbesganj Bihar

बीते दशकों की बात करें तो अलैक्जेंडर ने ही फारबिसगंज में सबसे पहले नील की खेती शुरू की थी। उस दौर में इस्टेट के अधीन 17 हजार बीघे में नील की खेती कर फसल ली जाती थी। रोचक बात यह है कि, प्रथम विश्व युद्ध के दिनों में नील की चमक फीकी पड़ने से पहले ही अलैक्जेंडर व उसके वारिस जमींदारी व जूट के धंधे में पांव रख चुके थे।

नील की खेती का रकबा समय के साथ घटता गया और फारबिसगंज के किसानों ने अनाज, कपड़ा व अन्य उपभोक्ता सामानों की सबसे बड़ी मंडी शुरू कर दी। फारबिसगंज के बाजार की बात करें तो यह चारों दिशाओं से रोजाना आने वाली हजारों अनाज लदी गाड़ियों की वजह से समृद्धि के शिखर को छूने की दौड़ में है।

History of Forbesganj Bihar
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फोरबेस परिवार के बाद इस्टेट का कारोबार ई रौल मैके के हाथों में आ गया। मैके आम जन के साथ घुलमिल कर रहने वाला अंग्रेज था और स्थानीय बोलियां बड़े आराम से बोल लेता था । सन 1945 में उन्होंने इस्टेट को जेके जमींदारी कंपनी के हाथ बेच दिया और सबके सब वापस इंग्लैंड चले गए। मैके कानून का बड़ा ज्ञाता था और 1929 में उसने इंडिगो सीड से जुड़े एक मामले में दरभंगा के महाराजा सर कामेश्वर सिंह को हरा दिया था ।

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