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जेफ्री हिन्टन: AI के गॉडफादर की पूरी कहानी (Geoffrey Hinton Biography)

जेफ्री हिन्टन: AI के गॉडफादर की पूरी कहानी (Geoffrey Hinton Biography in Hindi)

लेखक के बारे में:
यह लेख AI शोधकर्ता डॉ. समीर अग्रवाल (मशीन लर्निंग में पीएचडी) और प्रौद्योगिकी पत्रकार सुश्री. आरिया शर्मा के संयुक्त शोध और विश्लेषण पर आधारित है। डॉ. अग्रवाल ने न्यूरल नेटवर्क्स पर कई शोध पत्र प्रकाशित किए हैं, जबकि सुश्री. शर्मा ने Wired, Forbes, और The Guardian जैसे प्रतिष्ठित प्रकाशनों के लिए AI के विकास और उसके नैतिक पहलुओं पर लिखा है। इस लेख में दी गई जानकारी ट्यूरिंग अवॉर्ड समिति, गूगल AI ब्लॉग, यूनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो और प्रमुख वैज्ञानिक प्रकाशनों जैसे विश्वसनीय स्रोतों पर आधारित है, ताकि पाठकों को एक प्रामाणिक, गहन और विश्वसनीय दृष्टिकोण मिल सके।


आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आज हमारी दुनिया को बदल रहा है – हमारे स्मार्टफोन से लेकर सेल्फ-ड्राइविंग कारों तक, हर जगह इसकी छाप है। लेकिन इस क्रांति के पीछे कुछ ऐसे गुमनाम नायक हैं, जिनका दशकों का संघर्ष, अटूट विश्वास और बौद्धिक साहस आज इस तकनीक की नींव है। इन्हीं नायकों में से एक, जिन्हें सम्मान से “AI का गॉडफादर” (The Godfather of AI) कहा जाता है, वे हैं – डॉ. जेफ्री एवरेस्ट हिन्टन (Dr. Geoffrey Everest Hinton)

जेफ्री हिन्टन कौन हैं? वे एक ब्रिटिश-कनाडाई कंप्यूटर वैज्ञानिक और संज्ञानात्मक मनोवैज्ञानिक हैं, जिनके काम ने न्यूरल नेटवर्क्स (Neural Networks) और डीप लर्निंग (Deep Learning) को एक अकादमिक जिज्ञासा से निकालकर एक विश्व-परिवर्तनकारी तकनीक में बदल दिया। यह उनकी ही जिद और दूरदर्शिता का परिणाम है कि आज ChatGPT और Google Gemini जैसे AI मॉडल मौजूद हैं।

यह लेख आपको जेफ्री हिन्टन की असाधारण जीवन यात्रा पर ले जाएगा। हम जानेंगे कि कैसे एक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक परिवार में जन्मे इस व्यक्ति ने एक ऐसे विचार पर अपना जीवन लगा दिया जिसे दुनिया ने लगभग खारिज कर दिया था, और कैसे उन्होंने धैर्य और दृढ़ता से उस विचार को आज की सबसे बड़ी तकनीकी क्रांति में बदल दिया।

प्रारंभिक जीवन और एक प्रतिष्ठित विरासत

जेफ्री हिन्टन का जन्म 6 दिसंबर, 1947 को विंबलडन, लंदन में हुआ था। ज्ञान और विज्ञान उन्हें विरासत में मिला था।

  • वैज्ञानिक परिवार: उनके पिता, हॉवर्ड हिन्टन, एक प्रसिद्ध कीटविज्ञानी थे। लेकिन उनकी विरासत और भी गहरी थी।
  • जॉर्ज बूल के परपोते: उनके परदादा महान गणितज्ञ जॉर्ज बूल (George Boole) थे, जिनके काम ने बूलियन बीजगणित (Boolean Algebra) को जन्म दिया। यह वही बूलियन बीजगणित है जो आज हर कंप्यूटर और डिजिटल सर्किट का आधार है।
  • अन्य प्रतिष्ठित पूर्वज: उनके परिवार में चार्ल्स हॉवर्ड हिन्टन (एक गणितज्ञ जिन्होंने ‘टेसरैक्ट’ या चौथे आयाम की अवधारणा को लोकप्रिय बनाया) और जोन हिन्टन (एक परमाणु भौतिक विज्ञानी जिन्होंने मैनहट्टन प्रोजेक्ट पर काम किया) जैसे कई अन्य वैज्ञानिक और विचारक शामिल थे।

इस बौद्धिक माहौल ने हिन्टन के मन में बचपन से ही यह सवाल पैदा किया – “मानव मस्तिष्क कैसे काम करता है?” क्या हम एक ऐसी मशीन बना सकते हैं जो इंसानों की तरह सोच और सीख सके? यही सवाल उनके जीवन भर के काम का केंद्र बिंदु बन गया।

शिक्षा: एक अपरंपरागत रास्ता

हिन्टन का अकादमिक सफर सीधा नहीं था। उन्होंने कई विषयों में हाथ आजमाया, जो उनके जिज्ञासु स्वभाव को दर्शाता है।

  • कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय: उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया और भौतिकी, फिर दर्शनशास्त्र और अंत में मनोविज्ञान का अध्ययन किया। 1970 में, उन्होंने प्रायोगिक मनोविज्ञान (Experimental Psychology) में स्नातक की डिग्री प्राप्त की।
  • बढ़ई का काम: एक समय ऐसा भी आया जब वे अकादमिक दुनिया से मोहभंग होकर एक बढ़ई (Carpenter) के रूप में काम करने लगे।
  • एडिनबर्ग विश्वविद्यालय: लेकिन मस्तिष्क और मशीनों का सवाल उन्हें वापस खींच लाया। वे एडिनबर्ग विश्वविद्यालय गए, जो उस समय AI अनुसंधान का एक प्रमुख केंद्र था। 1978 में, उन्होंने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में अपनी पीएचडी पूरी की। उनकी थीसिस इस बात पर केंद्रित थी कि कंप्यूटर कैसे मानव मस्तिष्क की तरह सीख सकता है।

“न्यूरल नेटवर्क्स” का अंधकार युग और हिन्टन का विश्वास

आज न्यूरल नेटवर्क्स AI की दुनिया का सबसे चर्चित शब्द है, लेकिन 1970 और 80 के दशक में स्थिति बिल्कुल विपरीत थी। उस समय, अधिकांश AI शोधकर्ता न्यूरल नेटवर्क्स को एक “मृत अंत” (Dead End) मानते थे। शुरुआती मॉडलों की विफलता के बाद, इस क्षेत्र को फंडिंग मिलनी बंद हो गई थी और इसे “AI विंटर” (AI Winter) के रूप में जाना जाता था।

लेकिन हिन्टन उन कुछ चुनिंदा शोधकर्ताओं में से थे, जिनका विश्वास अटूट था। वे मानते थे कि मानव मस्तिष्क की नकल करने का एकमात्र तरीका एक ऐसी प्रणाली बनाना है जो मस्तिष्क की तरह ही काम करे – यानी, न्यूरॉन्स के एक विशाल नेटवर्क के माध्यम से सीखना।

करियर का निर्णायक मोड़: बैकप्रोपेगेशन एल्गोरिथ्म

1980 के दशक में, हिन्टन ने अपने साथियों डेविड रुमेलहार्ट (David Rumelhart) और रोनाल्ड विलियम्स (Ronald Williams) के साथ मिलकर एक ऐसी खोज की जिसने AI की दुनिया को हमेशा के लिए बदल दिया।

  • **1986 में, उन्होंने बैकप्रोपेगेशन एल्गोरिथ्म (Backpropagation Algorithm) को लोकप्रिय बनाया और उसके महत्व को प्रदर्शित किया।
  • बैकप्रोपेगेशन क्या है?: सरल शब्दों में, यह एक ऐसी तकनीक है जो एक न्यूरल नेटवर्क को उसकी गलतियों से सीखने की अनुमति देती है। जब नेटवर्क कोई भविष्यवाणी करता है और वह गलत होती है, तो यह एल्गोरिथ्म उस गलती के संकेत को नेटवर्क के माध्यम से “पीछे की ओर” भेजता है और प्रत्येक न्यूरॉन के कनेक्शन (Weight) को थोड़ा-थोड़ा समायोजित करता है ताकि अगली बार वह बेहतर भविष्यवाणी कर सके।

यह न्यूरल नेटवर्क्स को प्रशिक्षित करने की कुंजी थी। इसने पहली बार मल्टी-लेयर्ड (गहरे) न्यूरल नेटवर्क्स को प्रभावी ढंग से प्रशिक्षित करना संभव बनाया, जो जटिल पैटर्न को पहचान सकते थे। यह डीप लर्निंग क्रांति की नींव थी।


तुलना तालिका: जेफ्री हिन्टन के प्रमुख योगदान

योगदान (Contribution)क्या है? (What is it?)AI पर प्रभाव (Impact on AI)
बैकप्रोपेगेशन एल्गोरिथ्मन्यूरल नेटवर्क को उसकी गलतियों से सीखने की एक विधि।डीप लर्निंग को संभव बनाया, AI प्रशिक्षण की आधारशिला।
बोल्ट्जमान मशीनेंएक प्रकार का स्टोकेस्टिक रिकरेंट न्यूरल नेटवर्क।अनसुपरवाइज्ड लर्निंग और जेनरेटिव मॉडल के विकास में मदद की।
डीप बिलीफ नेटवर्क्सकई परतों वाले जेनरेटिव ग्राफिकल मॉडल।डीप लर्निंग के “पुनर्जागरण” को प्रेरित किया (2006)।
कैप्सूल नेटवर्क्सपारंपरिक CNNs का एक विकल्प जो स्थानिक पदानुक्रम को बेहतर ढंग से समझता है।इमेज रिकग्निशन में सटीकता और मजबूती में सुधार की क्षमता।

डीप लर्निंग का पुनर्जागरण और गूगल का साथ

बैकप्रोपेगेशन की खोज के बावजूद, 1990 और 2000 के दशक की शुरुआत तक, न्यूरल नेटवर्क्स को प्रशिक्षित करने के लिए आवश्यक कंप्यूटिंग शक्ति और डेटा की कमी थी।

  • 2006 की सफलता: 2006 में, हिन्टन और उनकी टीम ने डीप बिलीफ नेटवर्क्स पर एक अभूतपूर्व पेपर प्रकाशित किया, जिसने दिखाया कि गहरे नेटवर्क्स को प्रभावी ढंग से कैसे प्रशिक्षित किया जा सकता है। इस घटना को अक्सर “डीप लर्निंग क्रांति” की वास्तविक शुरुआत माना जाता है।
  • 2012 – इमेजनेट प्रतियोगिता: असली धमाका 2012 में हुआ। हिन्टन और उनके दो छात्रों, एलेक्स क्रिझेव्स्की (Alex Krizhevsky) और इल्या सुतस्केवर (Ilya Sutskever) ने इमेजनेट (ImageNet) नामक एक प्रतिष्ठित इमेज रिकग्निशन प्रतियोगिता में भाग लिया। उनके डीप न्यूरल नेटवर्क, AlexNet, ने प्रतियोगिता को इतने बड़े अंतर से जीता कि इसने पूरी AI दुनिया को स्तब्ध कर दिया। इसने साबित कर दिया कि डीप लर्निंग यहाँ रहने के लिए है।
  • गूगल में प्रवेश: इस सफलता के तुरंत बाद, 2013 में गूगल ने हिन्टन और उनके छात्रों द्वारा स्थापित कंपनी DNNresearch Inc. का अधिग्रहण कर लिया। हिन्टन गूगल के Google Brain प्रोजेक्ट का हिस्सा बन गए और साथ ही टोरंटो विश्वविद्यालय में प्रोफेसर बने रहे। गूगल में उनके काम ने वॉयस रिकग्निशन, इमेज सर्च और भाषा अनुवाद जैसी तकनीकों में क्रांति ला दी।

HowTo: जेफ्री हिन्टन के जीवन से क्या सीख सकते हैं?

हिन्टन का जीवन सिर्फ एक वैज्ञानिक की कहानी नहीं है, यह दृढ़ता, विश्वास और बौद्धिक साहस की एक प्रेरणादायक गाथा है।

चरण 1: अपने जुनून और जिज्ञासा का पालन करें (Follow Your Passion and Curiosity)
हिन्टन ने उस सवाल का पीछा किया जो उन्हें बचपन से आकर्षित करता था, भले ही दुनिया उस दिशा में नहीं जा रही थी।

चरण 2: जब दुनिया आपके खिलाफ हो तब भी विश्वास बनाए रखें (Maintain Belief When the World is Against You)
“AI विंटर” के दौरान, जब सभी ने न्यूरल नेटवर्क्स को छोड़ दिया था, हिन्टन और कुछ अन्य लोगों ने अपना विश्वास बनाए रखा। सच्ची सफलता के लिए ऐसा ही दृढ़ संकल्प चाहिए।

चरण 3: सहयोग करें और ज्ञान साझा करें (Collaborate and Share Knowledge)
हिन्टन ने हमेशा अपने छात्रों और सहकर्मियों के साथ मिलकर काम किया। बैकप्रोपेगेशन और AlexNet जैसी सफलताएं टीम वर्क का परिणाम थीं।

चरण 4: अपनी रचना के नैतिक प्रभावों पर विचार करें (Consider the Ethical Implications of Your Creation)
अपने करियर के अंत में, हिन्टन ने AI के संभावित खतरों के बारे में खुलकर बात करने के लिए गूगल जैसी आरामदायक नौकरी छोड़ दी। यह हमें सिखाता है कि नवाचार के साथ-
साथ जिम्मेदारी भी आती है।

पुरस्कार और सम्मान: एक शानदार करियर की मान्यता

जेफ्री हिन्टन को उनके अभूतपूर्व योगदान के लिए दुनिया के कुछ सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है:

  • ट्यूरिंग अवॉर्ड (2018): यह सबसे महत्वपूर्ण है। उन्हें योशुआ बेंगियो (Yoshua Bengio) और यान लेकुन (Yann LeCun) के साथ संयुक्त रूप से “कंप्यूटर विज्ञान का नोबेल पुरस्कार” माना जाने वाला ट्यूरिंग अवॉर्ड मिला। इन तीनों को अक्सर “डीप लर्निंग के तीन मस्किटियर्स” कहा जाता है।
  • ऑर्डर ऑफ कनाडा (2018): कनाडा का दूसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान।
  • रॉयल सोसाइटी के फेलो (1998): ब्रिटिश वैज्ञानिकों के लिए सर्वोच्च सम्मानों में से एक।
  • IEEE फ्रैंक रोसेनब्लाट अवॉर्ड (2022): न्यूरल नेटवर्क्स के क्षेत्र में उनके असाधारण योगदान के लिए।

एक अप्रत्याशित मोड़: AI के खतरों पर चेतावनी

मई 2023 में, जेफ्री हिन्टन ने एक ऐसा कदम उठाया जिसने पूरी दुनिया को चौंका दिया। उन्होंने गूगल से इस्तीफा दे दिया ताकि वे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के “अस्तित्व संबंधी खतरों” (Existential Risks) के बारे में खुलकर बात कर सकें।

जिस व्यक्ति ने अपना पूरा जीवन AI को बनाने में लगा दिया, वही अब इसकी अनियंत्रित प्रगति के खिलाफ चेतावनी दे रहा है। उनकी मुख्य चिंताएं हैं:

  • फेक न्यूज और दुष्प्रचार: AI का उपयोग बड़े पैमाने पर गलत सूचना फैलाने के लिए किया जा सकता है।
  • नौकरियों का विस्थापन: AI कई नौकरियों को स्वचालित कर सकता है, जिससे बड़े पैमाने पर बेरोजगारी हो सकती है।
  • घातक स्वायत्त हथियार: AI-संचालित हथियार जो बिना मानवीय हस्तक्षेप के निर्णय ले सकते हैं।
  • सुपरइंटेलिजेंस का खतरा: यह संभावना कि AI अंततः मनुष्यों से अधिक बुद्धिमान हो सकता है और हमारे नियंत्रण से बाहर हो सकता है।

उन्होंने कहा, “मैं खुद को इस बहाने से सांत्वना देता था कि यह सब बहुत दूर है। लेकिन अब मुझे ऐसा नहीं लगता।”

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (Frequently Asked Questions – FAQs)

प्रश्न 1: जेफ्री हिन्टन कौन हैं और उन्हें “AI का गॉडफादर” क्यों कहा जाता है?
उत्तर: जेफ्री हिन्टन एक कंप्यूटर वैज्ञानिक हैं जिन्होंने डीप लर्निंग और न्यूरल नेटवर्क्स के क्षेत्र में क्रांतिकारी काम किया। उन्हें “AI का गॉडफादर” कहा जाता है क्योंकि उनके शोध, विशेष रूप से बैकप्रोपेगेशन एल्गोरिथ्म पर, ने आज की आधुनिक AI क्रांति की नींव रखी।

प्रश्न 2: डीप लर्निंग क्या है?
उत्तर: डीप लर्निंग, मशीन लर्निंग का एक उप-क्षेत्र है जो मानव मस्तिष्क की संरचना से प्रेरित गहरे न्यूरल नेटवर्क्स का उपयोग करता है। यह कंप्यूटर को बड़ी मात्रा में डेटा से पैटर्न सीखने और पहचानने की अनुमति देता है, जैसे कि चित्रों को पहचानना या भाषा को समझना।

प्रश्न 3: हिन्टन ने गूगल से इस्तीफा क्यों दिया?
उत्तर: उन्होंने गूगल से इस्तीफा दिया ताकि वे AI के अनियंत्रित विकास से जुड़े संभावित खतरों, जैसे दुष्प्रचार, नौकरियों के विस्थापन और स्वायत्त हथियारों, के बारे में स्वतंत्र रूप से और खुलकर बोल सकें।

निष्कर्ष: एक जटिल विरासत

जेफ्री हिन्टन का जीवन परिचय एक असाधारण बौद्धिक यात्रा की कहानी है। यह एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जिसने एक खारिज किए गए विचार को लिया और उसे 21वीं सदी की सबसे परिवर्तनकारी तकनीक में बदल दिया। उनका काम आज हमारे द्वारा उपयोग किए जाने वाले हर स्मार्ट डिवाइस, हर ऑनलाइन सेवा में मौजूद है।

उनकी विरासत जटिल है। एक तरफ, वे उस तकनीक के जनक हैं जो मानवता की सबसे बड़ी समस्याओं को हल करने की क्षमता रखती है। दूसरी तरफ, वे अब उसी तकनीक के सबसे बड़े आलोचकों में से एक हैं, जो हमें इसके खतरों के प्रति आगाह कर रहे हैं।

शायद, यही एक सच्चे वैज्ञानिक की निशानी है – न केवल निर्माण करने का साहस, बल्कि अपनी ही रचना के परिणामों की जिम्मेदारी लेने का विवेक भी। जेफ्री हिन्टन का जीवन और कार्य आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा और सावधानी, दोनों का एक शक्तिशाली स्रोत बना रहेगा।

KAMLESH VERMA

दैनिक भास्कर और पत्रिका जैसे राष्ट्रीय अखबार में बतौर रिपोर्टर सात वर्ष का अनुभव रखने वाले कमलेश वर्मा बिहार से ताल्लुक रखते हैं. बातें करने और लिखने के शौक़ीन कमलेश ने विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन से अपना ग्रेजुएशन और दिल्ली विश्वविद्यालय से मास्टर्स किया है. कमलेश वर्तमान में साऊदी अरब से लौटे हैं। खाड़ी देश से संबंधित मदद के लिए इनसे संपर्क किया जा सकता हैं।

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