- नमक के पानी से गरारे, कोई स्वैब नहीं, सरल, तेज और सस्ता
- एक विधि से कई लाभ : सरल, तेज़, आरामदायक और किफायती
- तीन घंटे के भीतर परिणाम मिल जाएगा
- ग्रामीण एवं जनजातीय क्षेत्रों के लिए उपयुक्त
नई दिल्ली। कोरोना महामारी कोविड-19 का प्रकोप शुरू होने के बाद से ही भारत अपने यहाँ इसकी जांच (परीक्षण) के बुनियादी ढांचे और क्षमता को बढ़ाने के लिए लगातार कदम उठा रहा है. वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के अंतर्गत नागपुर स्थित राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (एनईईआरआई) के वैज्ञानिकों ने इस कड़ी में एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है.
प्रक्रिया के अंतर्गत जिसमें कोविड-19 के नमूनों के परीक्षण के लिए ‘नमक के पानी से गरारे (सलाइन गार्गल) आरटी-पीसीआर विधि’ खोजी गई है. नमक के पानी से गगारे (सेलाइन गार्गल) की इस विधि से कई प्रकार के लाभ एक साथ देखने को मिलते हैं. यह उपाय सरल, तेज, लागत प्रभावी, रोगी के लिए बेहद ही मददगार है. इस विधि के परिणाम भी जल्दी मिलते हैं. न्यूनतम बुनियादी ढांचा आवश्यकताओं को देखते हुए यह विधि ग्रामीण और जनजातीय क्षेत्रों के लिए बेहद ही सुविधायुक्त है.
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसन्धान संस्थान (एनईईआरआई) में पर्यावरण विषाणु विज्ञान प्रकोष्ठ के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. कृष्णा खैरनार ने कहा कि : “स्वैब संग्रह विधि के लिए समय की आवश्यकता होती है. इसके अलावा, इस तकनीक में सम्भावित संक्रमितों जांच के दौरान कुछ असुविधा का सामना भी करना पढ़ सकता है जिससे वे कभी-कभी असहज भी हो सकते.
इतना ही नहीं इस प्रकार से एकत्र किए गए नमूनों को एकत्रीकरण केंद्र और जांच केंद्र तक ले जाने में भी कुछ समय लगता है. वहीं दूसरी ओर, नमक के पानी से गरारे (सेलाइन गार्गल) की आरटी-पीसीआर विधि तत्काल, आरामदायक और रोगी के लिए बेहद ही सुविधाजनक है.नमूना तुरंत ले लिया जाता है और तीन घंटे में ही परिणाम मिल जाएगा।” रोगी स्वयं ही अपना नमूना एकत्र कर सकता है.
डॉ. खैरनार ने मीडिया को जानकारी देते हुए बताया है कि, यह विधि गैर-आक्रामक और इतनी सरल है कि रोगी स्वयं नमूना एकत्र कर सकता है. उन्होंने कहा कि, “नाक से और मुंह से नासोफेरींजल और ऑरोफरीन्जियल स्वैब एकत्र करने जैसी संग्रह विधियों के लिए तकनीकी विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है और इनमें समय भी लगता है.
दूसरी ओर, नमक के पानी से गरारे (सेलाइन गार्गल) की आरटी-पीसीआर विधि में नमक के पानी (सेलाइन वाटर) से भरी एक साधारण संग्रह ट्यूब का इस्तेमाल किया जाता है. रोगी इस घोल से गरारे करता है और उसे ट्यूब के अंदर डाल देता है. संग्रह ट्यूब में यह नमूना लैब में ले जाया जाता है जहां इसे कमरे के तापमान पर एनईईआरआई द्वारा तैयार एक विशेष बफर घोल (सौल्युशन) में रखा जाता है.
इस घोल को गर्म करने पर एक आरएनए टेम्प्लेट तैयार किया जाता है, जिसे आगे रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन पोलीमरेज़ चेन रिएक्शन (आरटी-पीसीआर) के लिए संसाधित किया जाता है. नमूना एकत्र करने और उसे संसाधित करने की यह विशेष विधि हमें आरएनए निष्कर्षण की दूसरी अन्य महंगी ढांचागत आवश्यकता के स्थान पर इसका प्रयोग करने के लिए सक्षम बनाती है. लोग इससे स्वयं का परीक्षण भी कर सकते हैं, क्योंकि इस विधि अपना नमूना (सैम्पल) खुद ही लिया जा सकता है.” यह विधि पर्यावरण के लिए बेहद ही अनुकूल भी है, क्योंकि इसमें अपशिष्ट उत्पादन कम से कम होता है.
ग्रामीण और जनजातीय क्षेत्रों में परीक्षण के लिए वरदान
वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि परीक्षण की यह अनूठी तकनीक ऐसे ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों के लिए विशेष रूप से लाभप्रद सिद्ध होगी जहां अभी तक बुनियादी ढांचे की आवश्यकताएं एक बंधिश और बाधा के रूप में सामने आ सकती हैं. इस गैर-तकनीक को भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की मंजूरी मिल गई है.
एनईईआरआई से कहा गया है कि वह देश भर में इसके इस्तेमाल में मदद करने के लिए अन्य परीक्षण प्रयोगशालाओं को प्रशिक्षित आवश्यक प्रशिक्षण की व्यवस्था करें. नागपुर नगर निगम ने इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की अनुमति दें दी है, जिसके बाद एनईईआरआई में स्वीकृत परीक्षण प्रोटोकॉल के अनुसार परीक्षण शुरू हो गया है.
पूरे भारत में लागू करने की आवश्यकता
एनईईआरआई में पर्यावरणीय विषाणुविज्ञान प्रकोष्ठ (एनवायरनमेंटल वायरोलॉजी सेल) के वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं और लैब-तकनीशियनों ने विदर्भ क्षेत्र में बढ़ते कोविड-19 संक्रमणों के बीच इस रोगी-अनुकूल तकनीक को विकसित करने के लिए अनथक प्रयास किए हैं.
डॉ. खैरनार और उनकी टीम को उम्मीद है कि इस पद्धति को राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया जाएगा, जिसके परिणामस्वरूप तेजी से और अधिक नागरिक-अनुकूल परीक्षण होंगे, और महामारी के खिलाफ हमारी लड़ाई को और मजबूती मिलेगी.
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