बंटवारे का फैसला और 14 व 15 अगस्त 1947 की पूरी रात की कहानी, पढ़े यहां | Bantvare Ka Faisla Aur 14 Aur 15 August ki rat
हिंदुस्तान के आजाद हुए 75 साल पूरे हो चुके हैं। साल 2022 को आजादी के अमृत महोत्सव के रूप में मनाया जा रहा है. केंद्र सरकार द्वारा हर घर तिरंगा अभियान चलाया जा रहा है. भारत की आजादी का दिन यानी 14 और 15 अगस्त की रात को लोग अपनी जान बचाकर भाग रहे थे। कोई घर पर ताला जड़ कर कर भाग रहा था, तो कोई जमीन छोड़ने को मजबूर था। क्योंकि भारत आजाद हुआ था।
इतिहास की एक ऐसी अनूंठी आजादी, जिसने मानव इतिहास का सबसे बड़ा विस्थापन को देखा। जब एक झटके में करोड़ों लोग दो देशों में बंट गए। जिन लोगों ने एक साथ भारत की आजादी का सपना देखा था, वहीं लोग अब एक दूसरे की जान लेने को तैयार थे।
किसी का घर धूं-धूं कर जल रहा था तो, कोई खून से सना हुआ सड़क पर जान बचाने की दुहाई मांग रहा था। स्टेशन पर रुकने वाली रेलगाड़ी यात्रियों से भरी हुई थी, लेकिन किसी का सिर धड़ से गायब था तो किसी का टांग, किसी का कान कटा था तो किसी की छांती में छुरा लगा था।
यह कहानी है 14 अगस्त साल 1947 की रात की जब भारत के इतिहास में एक ऐसी घटना हुई, जिसने भारत का भूगोल पलट के रख दिया। एक ओर जहां करोड़ों लोग आतिशबाजी कर आजादी का जश्न मना रहे थे। तो दूसरी ओर उसी रात हजारों लोगों के सर धड़ से अलग कर दिए गए थे। आजादी की रात को महिलाओं की आबरू तक लूट गई थी। बहन बेटियों के साथ हैवानियत की गई।
आज भी बहुत से लोगों को नहीं मालूम कि 15 अगस्त साल 1947 से पिछली रात को क्या हुआ था?, कैसे हुआ था और क्यों हुआ था और सबसे बड़ा सवाल कि आजादी के लिए 15 अगस्त का ही दिन क्यों तय किया गया?
भारत की इस खौफनाक आजादी की जो कहानी है, वो शुरू हुई साल 1945 के दौरान जब द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हुआ। युद्ध समाप्त होने के तुरंत बाद ब्रिटेन में चुनाव हुआ था। उस दौरान ब्रिटेन की लेबर पार्टी ने चुनावी वादा किया कि यदि चुनाव में उसकी जीत हो जाती है तब वह भारत सहित बहुत से गुलाम देशों को आजाद कर देगी।
ब्रिटेन में लेबर पार्टी की जीत हुई। बादे के मुताबिक फरवरी साल 1947 में लॉर्ड माउंटबेटन को इस काम के लिए भारत भेजा गया। लॉर्ड माउंटबेटन ने हिंदुस्तान को आजाद करने के लिए 3 जून साल 1948 का दिन तय किया। लेकिन इसी बीच अखंड भारत के लिए एक नई परेशानी मुंह खोले खड़ी थी। और वह थी जिन्ना की जिद…………..
एक ओर तो लॉर्ड माउंटबेटन 3 जून साल 1948 का दिन तय किया तो वहीं दूसरी अखंड भारत में मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना ने भारत में रहने वाले मुसलमानों के लिए एक नए देश की मांग की जिद पर अड़ गए। जी हां, मोहम्मद अली जिन्ना को भारत के भूगोल का टुकड़ा करके एक नया देश चाहिए था और वह भी खास मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए।
मोहम्मद अली जिन्ना अपनी जिद पूरी करवाने के लिए समर्थकों से पूरे देश में उत्पात मचवा रखे थे। नए देश की मांग के बाद पूरे देश में दंगे की आग भड़क गई। जिनमें बंगाल और हैदराबाद का इलाका सबसे प्रमुख था। भारत में मोहम्मद अली जिन्ना ने जो हंगामा खड़ा किया था, वह अंग्रेजों को बहुत पसंद आया।
अंग्रेजों ने सोचा कि यही ठीक समय है, जब भारत को आजाद करने के साथ-साथ इसे दो टुकड़ों में भी तोड़ा जा सकता है। फिर क्या था, जो आजादी 3 जून साल 1948 को मिलने वाली थी, लॉर्ड माउंटबेटन ने उसके लिए 15 अगस्त साल 1947 का दिन तय कर दिया।
आपकों जानना जरूरी है कि, लॉर्ड माउंटबेटन ने 15 अगस्त का दिन ही इसलिए चुना क्योंकि अंग्रेजों के मुताबिक यह दिन बहुत शुभ था। इसी दिन यानी कि 15 अगस्त 1945 को जापान ने आत्मसमर्पण किया था। लेकिन वहीं दूसरी तरफ भारत में रहने वाले ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक यह दिन बहुत ही अशुभ था।
भारत में 15 अगस्त के दिन में बदलाव करने की मांग को लेकर जमकर हंगामा हुआ, लेकिन लॉर्ड माउंटबेटन किसी भी कीमत पर इसमें फेरबदल नहीं करना चाहते थे। जिसके बाद भारत में रहने वाले ज्योतिषाचार्यों ने बातचीत कर के बीच का एक रास्ता निकाला। ज्योतिषियों के मुताबिक आजादी के ऐलान को लेकर 14 और 15 तारीख की आधी रात का समय तय कर दिया गया।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसर 14 अगस्त की रात 11 बजकर 51 मिनट से 12 बजकर 39 मिनट का मुहूर्त बेहद ही शुभ है। कारण अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक रात के 12 बजे के बाद अगला दिन लग जाता है लेकिन हिंदी कैलेंडर के मुताबिक सूर्योदय के बाद ही दूसरा दिन शुरू होता है, इसके अनुससर यदि 14 और 15 तारीख के बीच की आधी रात को आजादी का ऐलान किया जाए तो सभी के मन की बात हो जाएगी।
एक ओर भारत को जल्द से जल्द आजादी का चौला पहना था, दूसरी ओर मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना को मुस्लिमों के लिए एक अलग देश चाहिए था और वहीं अंग्रेजों को जल्द से जल्द भारत को दो टुकड़ों में बांटना था। इसके लिए अंग्रेजों ने सीरिल रेडक्लिफ नाम के एक कसाई को भारत भेजा, जिसका काम था भारत में एक लकीर खींच कर उसे दो टुकड़ों में काट देना।
दोस्तों आपकों जानकार आश्चर्य होगा कि, जिस इंसान को अंग्रेजों ने इस कार्य के लिए चुना था, वह कभी भारत आया ही नहीं था, उसे ना तो भारत के भूगोल का पता था और ना ही भारत की सांस्कृतिक बनावट का और उस आदमी ने बिना कुछ सोचे समझे ही भारत के बीच लकीर खींच डाली।
14 अगस्त साल 1947 को पाकिस्तान नाम का एक नया देश बन गया और रात के 12 बजे के बाद यानी कि 15 अगस्त साल 1947 को भारत आजाद हो गया। लेकिन हैरानी की बात तो यह है कि दोनों ही देशों के बीच जो लकीर खींची गई थी, उसे खींचने में 17 अगस्त तक का वक्त लग गया और आजादी की घोषणा के बाद शुरू हुआ हिंदुस्तान का सबसे बड़ा कत्लेआम।
भारत की धरती पर लकीर खींच कर जैसे ही एक नया देश का ऐलान किया गया, पूरा भारत दंगे की आग से जल उठा। भारत में रहने वाले बहुत से मुसलमानों को पाकिस्तान जाने की जल्दी थी तो वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान में रहने वाले हिंदुओं और सिखों को भगाने का सिलसिला शुरू हो गया। ये वही लोग थे, जो एक साथ बैठकर भारत को आजाद करने का सपना देखते थे।
लेकिन ऐसी आजादी मिली कि वहीं लोग अब एक दूसरे की जान लेने को उतारू थे। भारत आजाद तो हुआ था, लेकिन यह मानव इतिहास का सबसे बड़ा विस्थापन था। विस्थापन उस मंजर को कहते हैं जब इंसान एक जगह से हटकर दूसरी जगह बसने चले जाते हैं। हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बंटवारे के वक्त सबसे बड़ी कीमत हिंदुस्तान की महिलाओं ने अपनी इज्जत गंवाकर चुकाई।
जब हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच बंटवारे की लकीर खींची गई और उसके बाद देशभर में जो टकराव उत्पन्न हुआ। उस टकराव में लाखों महिलाओं की इज्जत तार-तार की गई। बदसलूकी की सीमा क्या होगी, इस बात का अंदाजा आप खुद हीं लगा सकते हैं। पाकिस्तान में हिंदुओं और सिखों की बस्तियों पर मुसलमानों ने अपना कब्जा जमा लिया था। इतना ही नहीं कब्जा जमाने के बाद मुसलमानों ने उन्हें वहां से भाग जाने की धमकियां दी थी।
अगले दिन की सुबह जब पाकिस्तान से चलकर एक रेल गाड़ी अमृतसर के रेलवे स्टेशन पर रुकी बताया जाता है कि उस ट्रेन में बैठे यात्रियों में से किसी का सिर धड़ से गायब था तो किसी की आंते बाहर आ गई थी, पूरी ट्रेन लहूलुहान थी। यहां तक कि रेलवे ट्रैक पर भी सिर्फ खून नजर आ रहा था।
उस दौरान पाकिस्तान से हिंदुस्तान की तरफ भागने वाले लोगों के मुताबिक जब वे लोग पाकिस्तान छोड़कर भाग रहे थे तो रास्ते में उन्होंने बहुत सारे बच्चों को देखा, जिनके साथ कोई भी नहीं था, लोग अपनी जान बचाकर सिर्फ और सिर्फ भाग रहे थे। जो भी छूट रहा था, वह सब कुछ छोड़ कर भाग रहे थे। चाहे वो उनका खुद का बच्चा ही क्यों ना हो। पुरुष तो जैसे तैसे अपनी जान बचाकर भाग भी निकले लेकिन बेचारी महिलाएं और बच्चियां उन हैवानों का सबसे आसान शिकार बन कर रह गई।
14 अगस्त 1947 की रात को 12 बजे दिल्ली में जहां पंडित जवाहरलाल नेहरू आजादी की घोषणा कर रहे थे तो वहीं देश के एक हिस्से में कत्लेआम हो रहा था। लेकिन भारत की राजधानी दिल्ली में जब आजादी का जश्न मनाया जा रहा था, उस वक्त गांधीजी वहां से नदारद थे। देश में जब 15 अगस्त को पहला स्वतंत्रता दिवस मनाया जा रहा था तब भी महात्मा गांधी वहां से सैकड़ों किलोमीटर दूर बंगाल में थे।
बताया जाता है कि महात्मा गांधी ने नेहरू और सरदार पटेल को पत्र लिखकर कहा था कि मैं कैसे खुशी मना सकता हूं जब देश में अपने ही लोगों को मार काट के आजादी का जश्न मनाया जा रहा है।
यह भी पढ़े :