लाल सरसों की उन्नत खेती कैसे करें Lal Sarso (Red Mustard) Ki Kheti Kaise Kare
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सरसों भारतीय रसोई घरों में आवश्यक तौर पर उपलब्ध होती है। फिर वह मसाले के रूप में हो या फिर तेल के रूप में, इसका इस्तेमाल भोजन के रूप में किया जाता है। सरसों के तेल से नवजात शिशु की मालिस करने पर उनकी हडि्डयां मजबूत होती है। सरसों के तेल का इस्तेमाल अचार की आयु बढ़ाने के लिए किया जाता है। पोस्ट के जरिए आज हम आपकों लाल सरसों के बारे में बताएंगे, यह अन्य सरसों की भांति ही होती है, लेकिन रंग लाल होता है। इसके पत्तों का आकार का चौड़ा होता है जिसका इस्तेमाल सलाद में तथा सलाद की प्लेट की सजावट के लिए किया जाता है। इसके अलावा भूजी, साग तथा अन्य सब्जी बनाने के लिए उपयोग किया जाता है। यह पौधा उद्यानों, घरेलू गार्डनों में भी सजावट के लिए भी प्रयोग में लाया जाता है। इसकी हल्की नीली लाल पत्तियां देखने में बेहद ही मनमोहक लगती है। लाल सरसों की पत्तियां मुलायम, चिकनी तथा चमकदार होती हैं। पौधे परिपक्व होने पर शाखाओं से पीले रंग के पुष्प भी निकलते हैं। खाने व भोजन में पत्तियां जो ताजी होती हैं उनका अधिक इस्तेमाल किया जाता है। इन पत्तियों से पोषक तत्वों की भी प्राप्ति होती है। होटलों में इसकी मांग अधिक रहती है।
लाल सरसों की उन्नत खेती के लिए आवश्यक भूमि व जलवायु (Soil and Climate for Lal Sarso Kheti)
मालूम हो कि, लाल सरसों की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में बेहद ही आसानी से कि जा सकती है, लेकिन दोमट या हल्की बलुई दोमट सर्वोत्तम रहती है। मिट्टी में जीवांश पदार्थों की मात्रा होना जरूरी है। खेत का पी.एच. मान अन्य सरसों की तरह होना जरूरी है जो 6.5-7.5 के बीच का उत्तम है। यदि आपके इलाके की जलवायु ठण्डी हैं, तो बहुत ही उचित है। कारण उत्तरी भारत में इसे शरद ऋतु की फसल के साथ उगाया जाता है।
लाल सरसों की उन्नत खेती के लिए खेत की तैयारी (Lal Sarso Ki Kheti Ke Liye Khet Ki Taiyari)
खेत की तैयारी हेतु पिछली फसल के अवशेषों को समाप्त करने हेतु एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा अन्य 2-3 जुताई देशी हल या ट्रैक्टर ट्रिलर से करनी चाहिए जिससे मिट्टी भुरभुरी हो जाये । इस प्रकार से खेत ढेले रहित हो जाना चाहिए । तब क्यारियां बनाकर सरसों लगाते हैं ।
लाल सरसों की उन्नत किस्में (Improved Varieties of Red Mustard)
इस सब्जी की बड़े स्तर या क्षेत्र पर न बोकर शौक के तौर पर ही बोई जाती है । इस पर अनुसंधान कार्य अधिक नहीं हुआ । इसलिये इसकी किस्म एक ही है |
खाद एवं उर्वरक (Manure and Fertilizer)
खाद व उर्वरकों की अधिक मात्रा की आवश्यकता नहीं होती लेकिन फिर भी नत्रजन 60 किलो, फास्फोरस 40 किलो तथा पोटाश 40 किलो प्रति हैक्टर तथा 6-8 टन सडी गोबर की खाद प्रति हैक्टर पर्याप्त होती है । खाद व उर्वरकों का प्रयोग सरसों की भांति ही करें ।
बीज की मात्रा (Quantity of Seeds)
लाल सरसों का बीज अन्य सरसों से कुछ हल्का छोटा होता है । इसलिये 6-8 किलो प्रति हैक्टर बीज की आवश्यकता होती है ।
बुवाई का समय एवं विधि (Sowing Time and Method)
बीज की बुवाई का समय मध्य सितम्बर से अक्टूबर का माह उचित होता है । लेकिन अगेता बोने पर मांग अधिक रहती है ।
बीज की बुवाई की विधि– खेत में सीधे बीज बो दिया जाता है तथा छोटे स्तर के लिये पौध नर्सरी में तैयार कर स्थाई रूप से क्यारियों में उचित दूरी पर लगाते हैं ।
पौध की रोपाई एवं दूरी (Transplanting and Distance)
पौध तैयार होने के पश्चात् पौध जब 8-10 सेमी. की हो तो सांय के समय पंक्ति से पंक्ति 45 सेमी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 30 सेमी. रखते हैं । लगाते समय हल्की सिंचाई करनी चाहिए । ध्यान रहे कि जड़ को क्षति न पहुंचे । सजावट हेतु गमले में उगा सकते हैं ।
सिंचाई (Irrigation)
अगेती फसल उगाने हेतु अधिक सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है । प्रथम सिंचाई पौध रोपते समय तथा सीधे बीज बोने पर 15-20 दिन पर सिंचाई करनी चाहिए । इस प्रकार से 2-3 सिंचाइयों की आवश्यकता पड़ती है ।
निकाई-गुड़ाई (Hoeing)
प्रथम सिंचाई के बाद कुछ शरद ऋतु के खरपतवार उग आते हैं जिन्हें खुरपी से गुड़ाई करके समाप्त किया जाता है । इसलिये एक-दो गुड़ाई करने से जंगली घास व अन्य पौधे नष्ट हो जाते हैं तथा इसी समय पौधों पर हल्की मिट्टी भी चढ़ा दी जाती है ।
तुड़ाई (Harvesting / Plucking)
जब पौधों पर पत्तियां वृद्धि कर बड़ी व पूर्ण विकसित हो जायें तो आवश्यकतानुसार काटनी या तोड़नी चाहिए तत्पश्चात् इन पत्तियों के बण्डल या गट्ठर बना कर बाजार में भेजना चाहिए ।
उपज (Yield)
उपज 200-300 क्विंटल पत्तियां प्रति हैक्टर प्राप्त हो जाती है ।
बीमारियां एवं कीट नियन्त्रण (Diseases and Insect Control)
बीमारी के पत्तों पर धब्बे बनते हैं, जिसको फफूंदीनाशक बेवस्टीन के 1% के घोल से रोका जा सकता है ।
कीट माहू या चेपा अधिकतर लगता है जिसको मेटास्सिटॉक्स के 1ml / L घोल के स्प्रे से नियन्त्रण किया जा सकता है ।
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