करवा चौथ क्यों मनाया जाता है: जानें इस व्रत का महत्व, इतिहास, रीति-रिवाज और इसके पीछे की मान्यताएं
करवा चौथ का महत्व, इसकी पौराणिक और ऐतिहासिक कहानियां, व्रत की विधि, सोलह श्रृंगार और इस पर्व से जुड़ी विशेष परंपराओं को विस्तार से जानें।

करवा चौथ क्यों मनाया जाता है?
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करवा चौथ भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण और विशेष व्रत है, जो विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी उम्र और समृद्धि के लिए रखा जाता है। यह व्रत हर साल कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस व्रत के दौरान महिलाएं सूर्योदय से चंद्रमा के दर्शन तक बिना अन्न और जल का सेवन किए निर्जला व्रत रखती हैं। करवा चौथ व्रत की धार्मिक और सामाजिक मान्यताओं ने इसे भारतीय समाज में एक विशेष स्थान दिया है। यह पर्व न केवल पति-पत्नी के रिश्ते को और भी प्रगाढ़ बनाता है, बल्कि इसे एक सामाजिक उत्सव के रूप में भी देखा जाता है।
करवा चौथ का धार्मिक महत्व
करवा चौथ का धार्मिक महत्व मुख्य रूप से पति की लंबी उम्र और समृद्ध जीवन से जुड़ा हुआ है। भारतीय संस्कृति में पति को पत्नी का “अर्धांगिनी” माना गया है, और इस रिश्ते को और भी मजबूत बनाने के लिए यह व्रत रखा जाता है। माना जाता है कि करवा चौथ व्रत रखने से भगवान शिव, मां पार्वती, और भगवान गणेश का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे पति की लंबी उम्र और समृद्धि सुनिश्चित होती है। इस व्रत के पीछे धार्मिक कथाएं और मान्यताएं भी जुड़ी हुई हैं, जो इस व्रत को और भी पवित्र बनाती हैं।
करवा चौथ का ऐतिहासिक महत्व
करवा चौथ का ऐतिहासिक महत्व भी अत्यधिक गहरा है। यह पर्व महाभारत काल से जुड़ा हुआ माना जाता है। कहते हैं कि जब पांडव वनवास में थे, तब द्रौपदी ने करवा चौथ का व्रत रखा था ताकि अर्जुन की रक्षा हो सके। इसके अलावा, एक अन्य कथा करवा नामक पतिव्रता स्त्री से जुड़ी है, जिन्होंने अपने पति की जान बचाने के लिए कठोर तपस्या की थी और यमराज से उनके प्राण वापस मांगे थे। तभी से यह व्रत “करवा चौथ” के नाम से जाना जाने लगा।
करवा चौथ की पौराणिक कथाएं
वीरवती की कथा
करवा चौथ की सबसे प्रचलित कथा वीरवती की है। वीरवती सात भाइयों की इकलौती बहन थी, जिसने अपने पति की लंबी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत रखा। दिन भर भूखी-प्यासी वीरवती बहुत थक गई थी, और उसके भाइयों ने उसे चांद के झूठे दर्शन करवाकर व्रत तोड़ने के लिए मना लिया। जब वीरवती ने व्रत तोड़ा, तो उसका पति तुरंत ही मृत्यु को प्राप्त हो गया। दुखी वीरवती ने भगवान से प्रार्थना की और अगले साल पूरे नियम के साथ करवा चौथ का व्रत रखा, जिसके फलस्वरूप उसका पति पुनर्जीवित हो गया। इस कथा से यह मान्यता जुड़ी है कि इस व्रत को पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ करने से पति की लंबी उम्र और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।
करवा की कथा
एक अन्य महत्वपूर्ण कथा करवा नामक महिला से जुड़ी है, जिन्होंने अपने पति को मगरमच्छ के हमले से बचाने के लिए कठोर तपस्या की थी। करवा ने अपनी तपस्या के बल पर यमराज से अपने पति के प्राण वापस मांगे थे और उन्हें अपने पति की जान बचाने में सफलता मिली। तब से इस व्रत का नाम करवा चौथ पड़ा और इसे पतिव्रता स्त्रियों के आदर्श रूप में देखा जाने लगा।
करवा चौथ की परंपराएं और रीति-रिवाज
करवा चौथ के दिन की शुरुआत सूर्योदय से पहले होती है, जब विवाहित महिलाएं अपनी सास द्वारा दी गई सरगी का सेवन करती हैं। सरगी में फल, मिठाई, मेवे और दूध से बने पकवान शामिल होते हैं। सरगी का सेवन करने के बाद महिलाएं पूरा दिन बिना अन्न और जल का सेवन किए निर्जला व्रत रखती हैं। इस व्रत को रखना आसान नहीं होता, लेकिन महिलाएं इसे बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ करती हैं। दिनभर पूजा की तैयारियां की जाती हैं, जिसमें महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं और नए वस्त्र धारण करती हैं।
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सोलह श्रृंगार का महत्व
करवा चौथ के दिन सोलह श्रृंगार का विशेष महत्व है। इसमें चूड़ियां, बिंदी, सिंदूर, मेहंदी, पायल, बिछुआ, काजल, गजरा आदि शामिल होते हैं। सोलह श्रृंगार भारतीय स्त्रियों की सुंदरता और उनके वैवाहिक जीवन का प्रतीक माने जाते हैं। यह श्रृंगार न केवल शारीरिक सुंदरता को दर्शाता है, बल्कि इसके पीछे भावनात्मक और धार्मिक मान्यताएं भी जुड़ी होती हैं।
पूजा विधि और चंद्र दर्शन
संध्या समय महिलाएं करवा चौथ की पूजा करती हैं। पूजा के दौरान मां पार्वती, भगवान शिव, और भगवान गणेश की पूजा की जाती है। करवा चौथ की थाली सजाई जाती है, जिसमें करवा (मिट्टी का पात्र), दीपक, चावल, रोली, और मिठाई रखी जाती है। महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और समृद्धि की कामना करती हैं। चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्य देने के बाद पति द्वारा पानी पिलाकर व्रत तोड़ा जाता है। यह प्रक्रिया भारतीय वैवाहिक संबंधों की गहरी भावनाओं को दर्शाती है।
आधुनिक समय में करवा चौथ का महत्व
करवा चौथ, जो पहले केवल धार्मिक और पारंपरिक दृष्टिकोण से मनाया जाता था, आजकल एक सामाजिक उत्सव के रूप में भी देखा जाने लगा है। आधुनिक समय में भी इस व्रत का महत्व कम नहीं हुआ है, बल्कि यह और भी लोकप्रिय हो गया है। आजकल महिलाएं न केवल धार्मिक कारणों से बल्कि अपने पति के प्रति प्रेम और समर्पण को व्यक्त करने के लिए भी करवा चौथ का व्रत रखती हैं। सोशल मीडिया पर इस दिन की तस्वीरें, वीडियोज और लाइव स्ट्रीमिंग साझा की जाती है, जिससे इस पर्व का महत्त्व और भी बढ़ गया है।
सोशल मीडिया और करवा चौथ
करवा चौथ अब केवल घर तक सीमित नहीं है। आजकल यह पर्व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर भी ट्रेंड करता है। महिलाएं अपने सोलह श्रृंगार की तस्वीरें और वीडियो साझा करती हैं, जो न केवल व्यक्तिगत तौर पर महत्वपूर्ण होती हैं, बल्कि उनके फॉलोवर्स के बीच एक चर्चा का विषय भी बन जाती हैं। इसके अलावा, बॉलीवुड अभिनेत्रियों और टीवी सेलेब्रिटीज के करवा चौथ मनाने की तस्वीरें भी अक्सर सोशल मीडिया पर वायरल होती हैं।
करवा चौथ की तैयारी
करवा चौथ की तैयारी कई दिन पहले से शुरू हो जाती है। महिलाएं नए कपड़े, गहने, और श्रृंगार की वस्तुएं खरीदती हैं। साथ ही, मेहंदी लगवाने का विशेष प्रचलन है। इस दिन बाजारों में भी काफी रौनक रहती है, खासकर चूड़ियों, बिंदी, सिंदूर और मेहंदी की दुकानों पर। महिलाएं अपने हाथों में विशेष डिजाइन वाली मेहंदी लगवाती हैं, जो इस व्रत का एक अभिन्न हिस्सा है।
सरगी का महत्व
करवा चौथ की शुरुआत सरगी से होती है, जो कि सास द्वारा दी जाती है। यह एक प्रकार का आशीर्वाद माना जाता है, जिसमें फल, मिठाई, और अन्य पौष्टिक खाद्य पदार्थ होते हैं। सरगी का सेवन सूर्योदय से पहले किया जाता है और इसे खाने के बाद महिलाएं व्रत की शुरुआत करती हैं। सरगी का आहार इस व्रत को पूरा करने के लिए ऊर्जा प्रदान करता है, इसलिए इसका विशेष महत्व है।
करवा चौथ के दौरान क्या करें और क्या न करें
इस व्रत को सफलतापूर्वक और धार्मिक दृष्टिकोण से पूर्ण करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता है:
क्या करें:
- सूर्योदय से पहले सरगी का सेवन करें: सरगी आपकी ऊर्जा को बनाए रखने में मदद करती है, इसलिए इसे अच्छे से खाएं।
- पूरे दिन सकारात्मक सोच रखें: करवा चौथ व्रत को पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ करें। नकारात्मक विचारों से दूर रहें।
- सोलह श्रृंगार करें: यह न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह आपको एक विशेष आत्मविश्वास भी देता है।
- पूजा विधि को पूरी श्रद्धा के साथ करें: शाम को करवा चौथ की पूजा में पूरी आस्था रखें और चंद्रमा को अर्घ्य दें।
क्या न करें:
- जल और अन्न का सेवन न करें: करवा चौथ का व्रत निर्जला होता है, इसलिए दिनभर जल और अन्न का सेवन नहीं किया जाता।
- नकारात्मक विचारों से दूर रहें: इस दिन सकारात्मक सोच और आत्मविश्वास बनाए रखें।
- व्रत को अधूरा न छोड़ें: व्रत का सही समय पर विधिपूर्वक समापन करें। चंद्रमा के दर्शन के बाद ही व्रत तोड़ें।
करवा चौथ का भविष्य और युवा पीढ़ी
आधुनिक समय में करवा चौथ का महत्व केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि एक सामाजिक उत्सव के रूप में भी बढ़ गया है। युवा पीढ़ी भी अब इस पर्व को पूरे उत्साह के साथ मनाने लगी है। भले ही वे धार्मिक रूप से उतने पारंपरिक न हों, लेकिन यह व्रत उनके लिए अपने जीवन साथी के प्रति प्रेम और सम्मान का प्रतीक बन गया है। युवा महिलाएं अपने पति के साथ यह दिन विशेष रूप से मनाती हैं, और इस पर्व की सामाजिक और सांस्कृतिक धरोहर को आगे बढ़ाती हैं।
करवा चौथ आज की पीढ़ी के लिए भी उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना पहले था। यह पर्व पति-पत्नी के बीच के रिश्ते को और भी मजबूत बनाता है और उनके जीवन में प्रेम, विश्वास, और आपसी सम्मान को बढ़ावा देता है।
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