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सफेद मोती जैसा साबूदाना कैसे तैयार होता है

पूरे भारतवर्ष में चैत्र नवरात्रि पर्व मनाया जाता है. कोरोना संक्रमण का दौर जारी है. एतिहात के तौर पर देश में लॉकडाउन प्रभावी है. जिसके चलते भले ही इस बार मंदिरों में रौनक कम नज़र आ रही हो. पर लोग आस्था के इस पर्व को बड़ी उत्साह से मनाते हैं. बहुत से लोग नवरात्रि में व्रत (उपवास) भी रखते हैं. हालांकि, व्रत लोग अपनी इच्छा अनुसार रखते हैं. व्रत के दिनों में भी साबूदाना (Sabudana) खाने की इजाज़त होती है. कारण है कि साबूदाना (Sabudana) बेहद पवित्र और प्राकृतिक माना जाता है.

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लेकिन साबूदाना (Sabudana) को लेकर लोगों के बीच बहुत-सी भ्रांतियाँ फैली हुई हैं. क्योंकि इसे बेहद ही पवित्र मानें जाने के पीछे कई मद है. इसलिए बहुत से लोग मानते हैं कि इसे फैक्ट्रियों में बनाया जाता है. साथ ही पैरों तक से मसला जाता है. ऐसे में वह मानते हैं कि इसे व्रत के दौरान नहीं खाया जाना चाहिए. लेकिन आइए आज हम आपको विस्तार से समझाते हैं कि आख़िर साबूदाना कहाँ और किस प्रकार तैयार हाेता है.

पेड़ के तने से बनता है साबूदाना (Sabudana in Hindi)

साबूदाना (Sabudana) से लोग खिचड़ी (Sabudana Khichdi), पापड़ और खीर (Sabudana Kheer) के साथ कई सारे व्रत में खाए जाने वाले सात्विक व्यंजन बनाते हैं. कुछ लोग साबूदाने को अनाज समझते हैं, लेकिन साबूदाना वास्तव में कोई अनाज नहीं बल्कि ये एक पेड़ के तने से प्राप्त किया जाता है. साबूदाने बनाए जाने की शुरुआत दुनिया के मानचित्र स्थित पूर्वी अफ्रीका से हुई थी. वहाँ मिलने वाले एक विशेष प्रकार के पेड़ सागो पाम (Sago) के तने के गूदे से इसे निकालकर मोतियों की शक्ल देकर तैयार किया जाता है. सबसे पहले इस पेड़ के तने के गूदे को काटकर अलग कर लिया जाता है. जिसके बाद इसे मशीनों के द्वारा आटे की तरह बारीकी से पीसकर मिश्रण तैयार कर लिया जाता है.

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पीसे जाने से यह पूरी तरह से पाउडर बन जाता है, तो इस पाउडर को छानकर गर्म किया जाता है. गर्म करने के बाद इसे छोटे-छोटे दानों का आकार दे दिया जाता है. साबूदाना को तैयार करने के जिस कच्चे माल का इस्तेमाल किया जाता है उसे टैपिओका रूट (Tapioca Root) कहा जाता है. कई भारतीय लोग इसे कसावा के नाम से भी जानते है.

कई महीने में तैयार होता है साबूदाना

कसावा दिखने में एकदम शकरकंद की भांति लगता है. टैपिओका स्टार्च जो कि कसावा से ही बनाया जाता है. साबूदाने को बनाए जाने की प्रक्रिया बेहद ही कठिन है. सबसे पहले कसावा के गूदे को काटकर बड़े-बड़े बर्तनों में रख लिया जाता है. जिसके बाद इन बर्तनों में नियमित तौर पर 4 से 6 महीने तक रोजाना पानी डाला जाता है. इसके बाद इसी गूदे को बड़ी-बड़ी मशीनों में डाल दिया जाता है. जिसके बाद साबूदाने को बनाने की प्रक्रिया अंतिम चरण में पहुँच जाती है.

इस तरह साबूदाने में आती है मोती जैसी चमक

दोस्तों आपने भी गौर किया होगा कि, जब भी हम साबूदाने को दुकान से खरीदते है तो वह हमेशा मोतियों की तरह चमकते रहते हैं. लेकिन ये चमक इनकी अपनी नहीं होती. इसे चमकाने के लिए इस पर ग्लूकोज और स्टार्च की पॉलिश की लेप चढ़ाई जाती है. पोलिश के बाद साबूदाना मोती की तरह चमकने लगते है. लोगों का यह भी मानना है कि, इन पर पॉलिश ना की जाए तो शायद ही इन्हें बाज़ार में कोई खरीदना पसंद करें.

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भारत में भी यहाँ होता है उत्पादन

साबूदाने का उत्पादन अब भारत में भी बड़े पैमाने पर होता है. लेकिन इसके उत्पादन को लेकर भारत के कई प्रांतों में अफवाह फैली हुई है कि इसका उत्पादन बड़े ही बुरे तरीके से किया जाता है. जिसमें पैरों तक से इसे मसला जाता है. लेकिन आज हम आपको बता दें कि इसके उत्पादन के लिए बड़े पैमाने पर आधुनिक मशीनें लगाई गई हैं. इसलिए भारत का साबूदाना भी उतना ही पवित्र होता है, जितना बाहर का.

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भारत में साबूदाने के उत्पादन की शुरुआत 1943-44 के बीच हुई थी. लेकिन वर्तमान में इसका उत्पादन बड़े पैमाने पर तमिलनाडु राज्य में होता है. इसे यहाँ बनाने के लिए टैपिओका नाम के पौधे की जड़ों से दूध निकाला जाता है. जिसके बाद इसे छानकर छोटे-छोटे दानों में बना लिया जाता है. मालूम हो कि, कसावा सबसे ज़्यादा सेलम में उगाया जाता है. इसलिए टैपिओका स्टार्च के सबसे ज़्यादा प्लांट भी सेलम में ही स्थापित किए गए हैं.

साबूदाने को खाने के क्या हैं फायदे (Sabudana Benefits)

आमतौर पर साबूदाना खाने के कई फायदे हैं. जिसमें सबसे बड़ा फायदा ये है कि ये इतना हल्का होता है कि इसे व्रत के दौरान बिना काम किए आसानी से पचाया जा सकता है. इसमें कार्बोहाइड्रेट के साथ कैल्शियम और विटामिन-सी भी  प्रचुर मात्रा में होता है. जिसके कारण उपासक इसे व्रत दौरान चाव से खाते हैं. इसका सेवन करने से शरीर को भरपूर ऊर्जा मिलती है, जिससे कई दिनों तक व्रत रखने पर भी शरीर में कमजोरी का एहसास नहीं होता.

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साबूदाने के ये हैं नुकसान (Sabudana Side Effects)

दूसरी ओर साबूदाने (Sabudana) खाने के फायदे के साथ नुक़सान भी है, जो कि आपको मालूम होना बेहद ही जरूरी है. सबसे बड़ा नुक़सान ये है कि यदि इसे ज़रा भी कच्चा खा लिया जाए तो ये जान लेवा सिद्ध हो सकता है. कारण कसावा बेहद जहरीला पदार्थ होता है. कसावा साइनाइड पैदा करता है, जो कि मानवीय शरीर के लिए बेहद घा तक होता है. यदि आप मोटापे से परेशान हैं तो साबूदाने का कतई सेवन ना करें. इससे आपका वजन बहुत तेजी से बढ़ता है. ध्यान रहे कि, इसे हमेशा अच्छे से पका कर भी खाएँ.

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KAMLESH VERMA

दैनिक भास्कर और पत्रिका जैसे राष्ट्रीय अखबार में बतौर रिपोर्टर सात वर्ष का अनुभव रखने वाले कमलेश वर्मा बिहार से ताल्लुक रखते हैं. बातें करने और लिखने के शौक़ीन कमलेश ने विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन से अपना ग्रेजुएशन और दिल्ली विश्वविद्यालय से मास्टर्स किया है. कमलेश वर्तमान में साऊदी अरब से लौटे हैं। खाड़ी देश से संबंधित मदद के लिए इनसे संपर्क किया जा सकता हैं।

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