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Jitiya Vrat 2024 – जितिया कब है? जीवित्पुत्रिका व्रत 2024

जीवित्पुत्रिका को जितिया के नाम से भी जाना जाता है. यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण व्रत है. इस व्रत को महिलाएं अपने पुत्र की लम्बी उम्र और कुशलता के लिए करती हैं.

Jitiya Vrat 2024: खर जितिया व्रत कथा- जितिया व्रत का क्या महत्व है? जीवित्पुत्रिका व्रत की कथाएँ पीडीएफ में डाउनलोड करें

जितिया व्रत कथा (Jitiya Vrat Katha), इस वर्ष जितिया निर्जला व्रत शुक्रवार, 25 सितम्बर 2024,बुधवार को महिलाओं द्वारा किया जाएगा। खर  जिउतिया व्रत कथा? जितिया की कहानी, खर जितिया व्रत कथा पीडीएफ में डाउनलोड करने के लिए लेख को शुरू से लेकर अंत तक जरूर पढ़े।

24 सितम्बर को नहाय-खाय है.

जितिया नहाय-खाय 24 सितम्बर 2024, मंगलवार
जितिया व्रत 25 सितम्बर 2024, बुधवार
जीवित्पुत्रिका या जितिया पारण 26 सितम्बर 2024, गुरुवार

आश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि

जैसा की मैंने आप सब लोगों को ऊपर बताया है की जितिया व्रत आश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को किया जाता है.

यहाँ हमने आश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि के प्रारंभ और समाप्त होने के समय की जानकारी दी हुई है.

आश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि प्रारंभ 24 सितम्बर 2024, मंगलवार
12:38 pm
आश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि समाप्त 25 सितम्बर 2024, बुधवार
12:10 pm

जितिया व्रत कथा (Jitiya Vrat Katha)

पुत्र को दीर्घायु की कामना के उद्देश्य से माताओं द्वारा जीवित्पुत्रिका या खर- जितिया व्रत किया जाता है। वर्तमान समय में बालिकाओं की माता भी इसे करती है। इसे करने के लिए पुत्र की प्राप्ति होना आवश्यक नहीं है, यदि आपकी संतान बालिका है, तो भी आप इसे निस्वार्थ भाव से कर सकती है। पौराणिक समय से माताएं अपनी संतान की रक्षा, दीर्घ आयु और कुशलता के लिए निर्जला व्रत करती हैं। जीवमूर्व वाहन के नाम पर भी जीवित्पुत्रिका व्रत का नाम पड़ा है। आइए जानते हैं कि जीमूत वाहन कौन है और उनकी कथा क्या है। चलिए पोस्ट के जरिए व्रत के संपूर्ण विषयों पर विस्तार पूर्वक प्रकाश डालें। पोस्ट में हमारे द्वारा बेहद ही प्रचलित और ब्राह्मणों द्वारा सुनाई जाने वाल पांच प्रमुख कथाओं का वर्णन किया है।

जितिया ( जीवित्पुत्रिका ) व्रत कथा – 1

भारतीय पौराणिक प्रचलित कथाओं के अनुसार, प्राचीन समय में गंधर्वों के राजकुमार का नाम जीमूतवाहन था। वह बड़े उदार और परोपकारी थे। जीमूतवाहन के पिता ने बुढ़ापे में वानप्रस्थ आश्रम में जाते समय इनको राज्य सिंहासन पर बैठाया लेकिन उनका मन राज-पाट में नहीं लगता था। वह राज्य का प्रभार छोड़कर वृयोवद्ध पिता की सेवा करने जंगल की ओर निकल पड़े।

वहीं पर उनका मलयवती नामक राज्य कन्या से विवाह हो गया। एक दिन जब वन में भ्रमण करते हुए जीमूत वाहन काफी आगे चले गए तब उन्हें एक वृद्धा रोती हुई दिखाई दी। इनके पूछने पर वृद्धा ने रोते हुए बताया -मैं नागवंशी स्त्री हूं और मुझे एक ही पुत्र है।

पक्षीराज गरुड़ के समक्ष नागो ने उन्हें प्रतिदिन भक्षण हेतु एक नाक सौंपने की प्रतिज्ञा की हुई है।आज मेरे पुत्र शंखचूड़ की बलि का दिन है। जीमूतवाहन ने वृद्धा को आश्वस्त करते हुए कहा डरो मत मैं तुम्हारे पुत्र के प्राणों की रक्षा करूंगा।

आज उसके बदले मैं स्वयं अपने आप को उसके लाल कपड़े में ढक कर वध्य-शीला पर लेटूंगा। इतना कह कर जीमूतवाहन ने शंखचूड़ के हाथ से लाल कपड़ा ले लिया और वे उसे लपेट कर खुद को बलि देने के लिए चुनी हुई वध्य-शीला पर लेट गए।

नियत समय पर गरुड़ बड़े वेग से आए और वह लाल कपड़े में ढके जीमूतवाहन को पंजे में दबोच कर पहाड़ के शिखर पर जाकर बैठ गए। अपने चंगुल में गिरफ्तार प्राणी की आंख में आंसू और मुंह में आह निकलता ना देखकर गरुड़ जी बड़े आश्चर्य में पड़ गए।

उन्होंने जीमूतवाहन से उनका परिचय पूछा। जीमूतवाहन ने सारा किस्सा सुनाया।। गरुड़ जी उनकी बहादुरी और दूसरे की प्राण रक्षा करने में स्वयं का बलिदान देने की हिम्मत से बहुत प्रभावित हुए। प्रसन्न होकर गरुड़ जी ने उनको जीवनदान दे दिया तथा नागों की बलि ना लेने का वरदान भी दे दिया।

इस प्रकार जीमूतवाहन के अदम्य साहस से नाग जाति की रक्षा हुई और तब से पुत्र की सुरक्षा हेतु जीमूतवाहन की पूजा की प्रथा शुरू हो गई। आश्विन कृष्ण अष्टमी के प्रदोष काल में पुत्रवती महिलाएं जीमूतवाहन की पूजा करती हैं।

कैलाश पर्वत पर भगवान शंकर माता पार्वती को कथा सुनाते हुए कहते हैं कि आश्विन कृष्ण अष्टमी के दिन उपवास रखकर जो स्त्रियां साया प्रदोष काल में जीमूतवाहन की पूजा करते हैं तथा कथा सुनने के बाद आचार्य को दक्षिणा देती हैं वह पुत्रों का पूर्ण सुख प्राप्त करती हैं। व्रत का पारण दूसरे दिन अष्टमी तिथि की समाप्ति के पश्चात किया जाता है। यह व्रत अपने नाम के अनुरूप फल देने वाला है।

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जितिया व्रत कथा (Jitiya Vrat Katha)

जितिया ( जीवित्पुत्रिका ) व्रत कथा – 2

नर्मदा नदी के पास एक कंचनबटी नाम का नगर था। वहां के राजा का नाम मलाई केतु था। उसी नर्मदा नदी के पश्चिम और बालुहटा नाम की मरुभूमि थी। जिसमें एक विशाल पेड़ पर चील रहती थी और उसी पेड़ के नीचे एक सियारिन भी रहती थी।

चील और सियारिन दोनों ही पक्की सहेलियां थी। कुछ महिलाओं को जितिया व्रत करते देख चील और सियारिन ने भी यह व्रत करने का संकल्प लिया और दोनों ही भगवान श्री जीमूतवाहन की पूजा और व्रत करने का प्रण ले लिया।

जिस दिन दोनों को व्रत रखना था ठीक उसी दिन शहर के एक बड़े व्यापारी की मृत्यु हो गई और उनका दाह संस्कार वही मरुस्थल पर हुआ। मुर्दा देखकर सियारिन को भूख लगने लगी और वह खुद को रोक नहीं पाई जिसके कारण उसका व्रत टूट गया।

परंतु चील ने खुद पर संयम रखा और पूरी श्रद्धा और नियम से अपना व्रत पूरा किया और अगले दिन व्रत का पारण भी किया। उसके बाद अगले जन्म में दोनों सहेलियों ने पुत्री के रूप में एक ब्राह्मण परिवार में जन्म लिया। उनके पिता का नाम भास्कर था।

चील बड़ी बहन और सियारिन छोटी बहन बनी। बड़ी बहन का नाम शीलावती रखा गया और उसकी शादी बुद्धिसेन के साथ हो गई। छोटी बहन का नाम कपूरावती रखा गया और उसकी शादी उस शहर के राजा मलायकेतु से हुई। और छोटी बहन कपूरावती कंचनवटी नगर की रानी बन गई।

अब भगवान जीमूतवाहन के आशीर्वाद से बड़ी बहन शीलावती को सात पुत्र प्राप्त हुए। लेकिन कपूरावती के बच्चे जन्म लेते ही खत्म हो जाते थे। कुछ सालों बाद शीलावती के सातों पुत्र बड़े हो गए और राजा के दरबार में काम करने लगे उन्हें देखकर कपूरावती के मन में ईर्ष्या और जलन की भावना उत्पन्न होने लग गई।

इस ईशा की भावना में कपूर आवती ने राजा से कहकर शीलावती के सातों बेटों के सर कटवा दिए। फिर उन सातों सिरो को साथ में बर्तन में डालकर ढक दिया गया और शीलावती के पास भिजवा दिया गया।

यह सब देख भगवान जीमूतवाहन ने मिट्टी की सहायता से सातों भाइयों के सर बनाएं और सभी सिरो को धड़ से जोड़ कर उन पर अमृत छिड़क दिया जिसके कारण वे सात भाई फिर से जिंदा हो गए और घर लौट आए। रानी ने जो कटे सर भिजवाए थे वह सब फूल बन गए।

कपूरावती समाचार पाने को बहुत व्याकुल थी लेकिन जब उसे इस बात का पता चला तो वह अपने बड़ी बहन के घर गई और वहां सब को जिंदा देखकर आश्चर्य में पड़ गई और बेहोश हो गई। जब कपूरावती होश में आई तो उसने अपनी बड़ी बहन से यह सारी बात बताई और अपनी गलती का पछतावा किया।

भगवान जीमूतवाहन की कृपा से बड़ी बहन को पूर्व जन्म की सारी बात याद आ गई और वह अपनी छोटी बहन को उसी पेड़ के नीचे लाकर पूर्व जन्म की सारी बातें सुनाई जिसे सुनकर कपूरावती फिर बेहोश हो गई और मर गई। जब राजा तक इस बात की सूचना मिली तो उन्होंने उसी जगह पर पेड़ के नीचे कपूरावती का दाह संस्कार कर दिया।

जितिया ( जीवित्पुत्रिका ) व्रत कथा – 3

दो बहने थी जिनका नाम था चूलिया और सियरिया। चूलिया बहुत मेहनती थी और गरीब भी थी वह मजदूरी करके अपने बच्चों को पालती थी। लेकिन सियरिया गलत आचरण वाली थी जो हमेशा मौज और ऐश करती थी और चूलिया से जलती भी थी।

हर वक्त सियरिया यह सोचती थी कि चूलिया इतना खुश कैसे रहती है चूलिया की हंसी खुशी सियरिया से सहन नहीं हो पाती थी जिसके कारण सियरिया चूलिया के संतानों को सताने के कई प्रयास कर चुकी थी और कई बार चूलिया के बच्चों को खत्म करने की कोशिश भी कर चुकी थी।

किंतु चूलिया के तपस्या और व्रत के कारण उसके बच्चे हमेशा सुरक्षित बच जाया करते थे। एक दिन सियरिया चूलिया के सभी बच्चों को लेकर जंगल में लकड़ी चुनने के लिए लेकर गई वहां जंगल में लकड़ी को चुनते-चुनते बच्चे थक गए और थोड़ी देर के लिए सो गए।

बच्चों को सोते देख सियरिया ने सभी बच्चों का सिर काट दिया और टोकरी में रखकर वापस घर आ गई और चूलिया को वह टोकरी भेंट में दे दी और कहा दीदी मैं जंगल से आपके लिए नारियल लाई हूं बच्चों को खिला देना।

चूलिया ने उस टोकरी को उठाकर देखा नहीं और किनारे में रख दिया और अपने बच्चों की प्रतीक्षा करने लग गई। जब शाम से रात हो गई और बच्चे वापस नहीं आए तो वह बहुत परेशान हो गई। बड़े ही करुण स्वर में जोर-जोर से रोने लग गई।

करुड़ा भरी स्वर को शंकर पार्वती जी से रहा नहीं गया और उन्होंने महादेव से कहां की हे प्रभु कोई दुखियारी बहुत रो रही है उसके रोने में बहुत दर्द छुपा हुआ है मुझसे बर्दाश्त नहीं हो पा रहा हमें चलकर देखना चाहिए कि कौन रो रहा है और क्यों रो रहा है।

तब इस बात पर महादेव जी ने कहा कि यह मृत्युलोक है और यहां पर यह सारी साधारण सी बात है लेकिन पार्वती के हठ के कारण महादेव उनके सामने झुक गए और चूलिया के पास जाकर उसके रोने का कारण पूछने लगे। महादेव जी के पूछने पर चूलिया ने अपने रोने का कारण विस्तार से बता दिया।

शंकर जी ने जब ध्यान लगाया तो उन्होंने चूलिया के बच्चों को जंगल में मृत पाया जिसके बाद शंकर जी ने पार्वती जी को अनुरोध किया और बच्चों को पुनर्जीवित कर दिया। बच्चे नींद से उठ कर मौसी को ढूंढ रहे थे किंतु मौसी वहां नहीं थी बच्चे डर कर घर आ गए और मौसी के सारे कार्य मां के सामने बता दिए।

यह सब सुनकर चूलिया सियरिया के पास जाकर लड़ने लगी कि तुम मेरे बच्चों को जंगल में क्यों अकेला छोड़ आई। दोनों बहनों में लड़ाई शुरू हो गई और यह लड़ाई 7 दिन 7 रात तक चलती रही किंतु इस लड़ाई का कोई हल नहीं निकला।

जिसके बाद दोनों ने उस जंगल में एक तपस्वी को घटना सुनाई। घटना को सुनने के बाद तपस्वी ने दोनों को आदेश दिया कि तुम दोनों जाकर पास में खेल रहे बच्चों को बाल से पकड़कर घसीटते हुए मेरे पास लेकर आ जाओ।

उसके बाद मैं निर्णय करूंगा। चूलिया बच्चों की मां थी, उससे बच्चों की पीड़ा देखी ना जा सकी उसने महात्मा के वचनों का पालन नहीं किया लेकिन सियरिया दौड़ती हुई गई और खेलते हुए बच्चों को बाल से पकड़ कर खींच कर ले आई।

जिसके बाद तपस्वी ने सियरिया को यह श्राप दिया कि हर जन्म में इसी प्रकार तू सदैव जलती रहेगी और दुखी होती रहेगी। जो महिला किसी बच्चे की पीड़ा और मां की ममता को नहीं जानती जीवन भर धरती पर दुख भोगने के अलावा और कुछ नहीं कर पाएगी।

जितिया ( जीवित्पुत्रिका ) व्रत कथा – 4

दो बहने थी एक का नाम था सुखिया और दूसरी का नाम था दुखिया। दोनों का भाग्य उनके नाम जैसा ही था। दुखिया गरीब थी और बहुत दुखी रहती थी। सुखिया अमीर थी और हमेशा सुखी रहती थी दोनों एक ही गांव में रहती थी। दुखिया सुखिया के घर में काम करती थी, साफ सफाई करती थी खाना बनाती थी और जो खाना बच जाता था वह खाना सुखिया दुखिया को दे देती थी।

इसी तरह दुखिया का घर चलता था। समय बीतता गया दोनों को बच्चे थे। सुखिया को 2 पुत्र थे और दुखिया को भी 2 पुत्र थे। जब जितिया का व्रत आया तो दोनों बहन जितिया का व्रत रखी थी। दुखिया सुखिया के घर में काम करती थी। व्रत के दिन दुखिया ने सुखिया के घर जो चावल फटका (चावल को साफ करना) उससे जो खुर्दी निकला वह अपने लिए रख ली और साफ चावल सुखिया को दे दी।

फिर साग को चुनी (पतियों को डंठल से अलग करना) बढ़िया वाला साग सुखिया के लिए रख दी और जो डंठल था वह अपने लिए रखी। अब दुखिया ने सुखिया के घर सारा खाना बना दिया और अपने घर चावल की खुर्दी और साग की डंठल लेकर गई बनाने के लिए।

खुर्दी का चावल और साग की डंठल बनाकर वह खाना अपने बच्चों को खिलाई और खुद भी खाई। उसके बाद दुखिया सोने चली गई। आधी रात में एक बूढ़ी औरत उसके घर पर आकर दरवाजा खट खटाती है। तो दुखिया पूछती है कौन है? तब बूढ़ी बोलती है बेटा हम हैं।

दुखिया ने उठकर फाटक खोला और पूछती है अम्मा आपको क्या चाहिए? इतनी रात में आप यहां किस लिए आई हो? बूढ़ी बोलती है बेटा मुझे बहुत भूख लगी है कुछ खाने को दे दो। दुखिया उसे घर के अंदर ले आती है और कहती है हम लोग बहुत गरीब हैं आज मैने खुर्दी का चावल और साग की डंठल बनाया है क्या आप खाएंगी?

तो बूढ़ी कहती है हां क्यों नहीं खाएंगे हमें बहुत भूख लगी है हम वहीं खाएंगे। दुखिया अंदर जाकर खुर्दी का चावल और साग की डंठल लाती है और बुढी को देती है खाने के लिए। बूढ़ी खाना खाने के बाद कहती है कि मुझे अच्छे से कुछ दिखाई नहीं देता इतनी रात के अंधेरे में मैं अपने घर कैसे जाऊंगी।

तो दुखिया कहती है कोई बात नहीं आप यहीं पर सो जाइए सुबह अपने घर चले जाना। तो बूढ़ी दुखिया के घर में ही सो जाती है। फिर थोड़ी देर बाद उठकर बूढ़ी बोलती है बेटा मुझे दीर्घसंका (पैखाना) लगी है कहां करूं। तो दुखिया कहती है मेरे घर में बाथरुम नहीं है इसलिए आप उधर कोने में कर लीजिए।

बूढ़ी पूछती है कि बेटा भड़-भड़ करें या छर-छर करें। दुखिया नींद में थी तो वह कहती है माता जी भड़-भड़ कर दो मैं सुबह साफ कर दूंगी। फिर थोड़ी देर बाद बूढ़ी पूछती है कि बेटा मैं अपने हाथ कहां साफ करूं तो दुखिया कहती है आप मेरे सर मैं अपने हाथ को साफ कर लीजिए।

जब सुबह होती है तो दुखिया को यह सब सपने के जैसे लगता है कि सोते समय मुझे कोई सपना आया होगा। वह ज्यादा कुछ नहीं सोचती और नदी में नहाने के लिए चली जाती है जब वह नदी मैं नहाती है और अपने बाल धोती है तो उसके बालों से होते हुए जो पानी बहता है वह सोने का पानी होता है।

आस पास की सभी महिलाएं यह देखकर चकित हो जाती है और कहती है कि तुम्हारे बालों से तो सोने का पानी गिर रहा है क्या बात है फिर उसे रात की सारी बात याद आती है। वह दौड़ कर अपने घर की ओर भागती है यह सोच कर कि उसका घर दीर्घसंका से गंदा हुआ होगा पहले उसको साफ करना होगा।

जब वह अपने घर में जाती है तो देखती है कि घर के हर कोने में ढेर सारा सोना बिखरा पड़ा होता है। यह सब देखकर दुखिया बहुत खुश हो जाती है और सोचती है की जीत मान बाबा (जीमूतवाहन) की कृपा है यह सब जो माता का रूप धारण करके मेरे घर आए और मुझे इतना आशीर्वाद दिए। अब दुखिया अमीर हो जाती है और सुखिया के घर जाकर काम करना बंद कर देती है।

दुखिया जब अपना व्रत पूरा करती है तो अपने पुत्र से कहती है कि जाओ मौसी के घर से तराजू लेकर आओ यह नापने के लिए कि यह सोना कितना है। बच्चा बहुत खुशी से सुखिया मौसी के घर जाता है और तराजू मांगता है तो सुखिया पूछती है कि तराजू पर क्या नापना है।

तो बच्चा बोलता है मेरे घर में बहुत ढेर सारा सोना है उसी को मम्मी नापेगी। सुखिया कहती है खाने के लिए तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है और सोना नापोगे मुझसे झूठ कहते हो। तो बच्चा कहता है -नहीं मैं झूठ नहीं बोल रहा हूं। सुखिया सोचती है जब तराजू मांगा है तो कुछ ना कुछ तो जरूर नापना होगा इसलिए वह तराजू के पीछे गोंद लगा देती है कि जो भी नपेंगा वह थोड़ा सा इसमें चिपक जाएगा।

दुखिया जब तराजू पर सोना नापति है तो कुछ सोना का टुकड़ा उस बूंद में चिपक जाता है। जब बच्चा तराजू लौटाने आता है तो सुखिया उसको उलट-पुलट कर देखती है तो उसे तराजू में सोना लगा हुआ मिलता है। सुखिया सोचती है उसके घर में जरूर कहीं से सोना आया होगा इसलिए वह कई दिन से काम पर भी नहीं आ रही है।

सुखिया उसके घर जाकर देखते हैं कि यह सोना कहां से आया। जब सुखिया दुखिया के पास जाकर पूछती है कि तुम्हारे पास कहां से इतना सोना आया कि तुम तराजू मंगाई नापने के लिए तो दुखिया उस रात की सारी कहानी अपनी बहन सुखिया को बताती है।

दुखिया का मन एकदम सच्चा था इसलिए वह सब कुछ बता दी। लेकिन सुखिया के मन में लालच आने लगा कि दुखिया के पास हमसे भी ज्यादा धन आ गया। अब अगले जितिया में मैं भी खुर्दी का चावल और साग की डंठल बनाऊंगी।

फिर अगले साल जितिया का व्रत दोनों बहन ने रखा। सुखिया के पास हर तरह का सुख था और धन भी था फिर भी वह जितिया के दिन चावल फटक कर साफ चावल फेक थी और खुर्दी अपने पास रख ली। साग को तोड़कर पत्तियां फेंक दी और डंठल अपने पास रख ली और वही बनाई।

खा पीकर पूजा पाठ करके सोने चली गई। फिर आधी रात में उसके घर में भी बुढी आई और दरवाजा खट खटाती है। सुखिया उसका इंतजार कर रही होती है वह तुरंत दरवाजा खोलकर बूढ़ी को अपने घर के अंदर ले आती हैं। बूढ़ी बोलती है मुझे बहुत भूख लगी है कुछ खाने को दे दो।

तो सुखिया कहती है मैंने खुर्दी का चावल और डंठल का साग बनाया है बुढी बोलती है कोई बात नहीं मैं खाऊंगी तो सुखिया परोस देती है वह खाना खाने के लिए और सोने चली जाती है। बूढ़ी बोलती है मैं घर नहीं जा सकती मुझे दिखाई नहीं देता तो सुखिया कहती है कोई बात नहीं आप यही सो जाओ।

थोड़ी देर बाद बूढ़ी फिर बोलती है कि मुझे दीर्घसंका (पैखाना) लगी है कहां करूं तो सुखिया कहती है वहीं कोने में कर लीजिए। फिर थोड़ी देर बाद बुढी पूछती है की भड़-भड़ करे या छर-छर। इस समय सुखिया को याद नहीं आता है की दुखिया ने क्या बोला था।

तो सुखिया बोली मां छर-छर कर दीजिए। फिर बूढ़ी पूछती है कि बेटा मैं अपने हाथ कहां साफ करू, सुखिया कहती है मेरे सर में साफ कर लीजिए। बूढ़ी अपना हाथ सुखिया के सर में साफ कर लेती है। जब सुखिया सुबह उठती है तो उसका पूरा घर गंदगी से भरा पड़ा होता है और उसके बाल में भी बहुत गंदगी लगी होती है।

यह सब देखकर सुखिया बहुत दुखी हो जाती है और उसे बहुत गुस्सा भी आता है। वह अपनी बहन दुखिया को बुलाती है और उसको गुस्सा करती है कि तुमने हमसे झूठ कहा और मेरा पूरा घर गंदा करवा दिया। तो दुखिया पूछती है कि तुमने क्या कहा था भड़-भड़ या छर-छर तो सुखिया कहती है मैं तो छर-छर बोली।

तो दुखिया कहती है यहीं पर तो तुमने गलती करी और तुम्हारे पास तो सब कुछ था किसी चीज की कमी नहीं थी फिर भी तुमने लालच किया। मेरे पास तो कुछ भी नहीं था। तुम्हारे पास तो सब कुछ था तुम्हारे घर जीत मन बाबा (जीमूतवाहन) भेष बदल कर आए लेकिन फिर भी तुमने उन्हें अच्छा खाना नहीं परोसा।

मेरे पास तो कुछ भी नहीं था इसलिए मैंने उन्हें खुर्दी का चावल और साग का डंठल परोसा था तुमने अपने घर आए भगवान का अपमान किया सब कुछ रहते हुए भी तुमने साग और भात खिलाया। तुम्हारे पास सब कुछ होते हुए भी तुम्हें लालच नहीं करना चाहिए इसलिए तुम्हारे साथ बुरा हुआ।

जितिया ( जीवित्पुत्रिका ) व्रत कथा – 5

महाभारत के युद्ध में जब अश्वत्थामा अपने पिता की मृत्यु से बहुत दुखी थे और अपने पिता की मृत्यु का बदला लेना चाहते थे जिसके कारण वह पांडवों की शिविर में घुस गए। शिविर में उस समय 5 लोग सो रहे थे। जिसके कारण अश्वत्थामा ने उनको पांडव समझ कर खत्म कर दिया।

यह माना गया है कि सभी पुत्र द्रोपति के 5 पुत्र थे। जिसके बाद अर्जुन ने अश्वत्थामा को बंदी बना लिया और उनकी दिव्य मणि भी छीन ली। जिसके कारण अश्वत्थामा ने क्रोध में आकर अभिमन्यु की पत्नी के गर्भ में पल रहे शिशु को भी ब्रह्मास्त्र के जरिए मार डाला।

जिसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने अपने सारे पुण्य का फल उत्तरा की अजन्मी संतान कुत्तिया और गर्भ में पल रहे शिशु को पुनः जीवित किया। श्री कृष्ण की कृपा से इस पुत्र का नाम जीवित्पुत्रिका नाम दिया गया। तब से लेकर आज तक संतान की लंबी उम्र के लिए और उन की मंगल कामना के लिए हर साल माताएं जितिया व्रत या जीवित्पुत्रिका व्रत रखती हैं और परंपरा के साथ उन्हें पूरा भी करती हैं।

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जितिया व्रत कथा (Jitiya Vrat Katha) पीडीएफ

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नोट : यदि आपकों पीडीएफ फाइल नहीं मिल रही, तो आप हमें वाट्सएप नंबर 7000019078 पर मैसेज भेज सकते हैं।

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KAMLESH VERMA

दैनिक भास्कर और पत्रिका जैसे राष्ट्रीय अखबार में बतौर रिपोर्टर सात वर्ष का अनुभव रखने वाले कमलेश वर्मा बिहार से ताल्लुक रखते हैं. बातें करने और लिखने के शौक़ीन कमलेश ने विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन से अपना ग्रेजुएशन और दिल्ली विश्वविद्यालय से मास्टर्स किया है. कमलेश वर्तमान में साऊदी अरब से लौटे हैं। खाड़ी देश से संबंधित मदद के लिए इनसे संपर्क किया जा सकता हैं।

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