क्यों कहलाते हैं श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम, जानिए – Why Lord Rama Is Called Maryada Purushottam : सनातन धर्म में भगवान राम के जैसा मर्यादित आचरण कहीं नहीं देखा जाता। “प्राण जाए पर वचन ना जाई” जैसी मानस चौपाई उनकी प्रतिष्ठा का यशोगान करती है।
राम नवमी के दिन ही भगवान श्रीराम का प्राकट्य हुआ था। इनके जन्म को लेकर भी कई बातें प्रचलित है लेकिन सब का अर्थ यह है कि उनका पृथ्वी पर आना, मानव का सच्चे रास्ते पर चलना, चुनौतियों और मुश्किलों से लड़ कर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। श्रीराम के आचरण के चलते उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है।
मर्यादा पुरुषोत्तम “संस्कृत” का शब्द है। मर्यादा का अर्थ होता है सम्मान, न्याय व परायण पुरुषोत्तम का अर्थ होता है। सर्वोच्च व्यक्ति श्रीराम ने कभी भी किसी मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया। उन्होंने हमेशा माता, पिता, गुरु का सम्मान और अपनी प्रजा का ध्यान रखा है। वह आदर्श पति,भाई और राजा के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने अपने कर्तव्य का भी समय और सही तरीके से पालन किया। जब समाज में छुआछूत की बात अधिक थी। यहां तक कि संत समाज भी छुआछूत को मानता था। तब श्रीराम ने भील समाज की शबरी के जूठे बेर खाए थे। वह समाज में संतुलन लाने के भी प्रतीक है।
श्रीराम ने अपने पिता राजा दशरथ के आदेश को मानकर उन्हें स्पष्ट कर दिया था कि उनके लिए संपत्ति राजपाट नहीं बल्कि रिश्ते प्रमुख हैं। छोटे भाई भरत के लिए अयोध्या राज्य त्याग दिया। सौतेली माता केकई की इच्छा अनुसार 14 वर्षों तक अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ वन में रहे। श्री राम के तीन भाई थे। तीनों के लिए एक आदर्श थे। भरत को राज्य देने के बाद भी छोटे भाई के प्रति प्रेम कम नहीं हुआ। वनवास के दौरान जब भी भरत राम जी से मिलने आते वह हमेशा एक बड़े भाई की तरह ही उनका मार्गदर्शन करते। श्रीराम हमेशा अपने कार्यों में व्यस्त रहने के बाद भी माता-पिता और सीता को पर्याप्त समय देते थे। सीता जी की सुरक्षा खुद करते या लक्ष्मण को सौपते थे।
श्री राम भले ही वनवास चले गए थे, लेकिन वह अपनी प्रजा के लिए चिंतित रहते थे। ऋषि-मुनियों के साथ मिलकर अपनी राज्य की उन्नति पर चर्चा करते हैं। तो कभी अपने भक्तों को राक्षसों से मुक्ति दिलाने के लिए प्रयास करते रहते हैं। प्राचीन किवदंती है कि वनवास के बाद जब श्री राम अयोध्या के राजा घोषित हुए। तब उनके राज्य में कभी भी कोई चोरी डकैती नहीं होती थी। ना ही कोई भी भूख से मरता था। इसलिए वह एक आदर्श राजा भी थे। यही वजह है कि जब कुछ लोगों ने देवी सीता के चरित्र पर उंगली उठाई तो उन्होंने प्रजा की तरफ होकर फैसला लिया।
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