Jaya Ekadashi 2022 Date: माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी को “जया एकादशी” (Jaya Ekadashi 2022) के नाम से जानते हैं. यह बहुत ही पुण्य फलदायी हाेती, इस व्रत को करने वाले उपासक को नीच योनि जैसे भूत, प्रेत, पिशाच से मुक्ती मिलती है. भगवान विष्णु को समर्पित यह व्रत इसलिए श्रेष्ठ माना गया है कारण इस दिन राजा हरिश्चंद्र ने व्रत का नियम पूर्वक पालनक कर सभी कष्टों को अपने जीवन से दूर किया था. साल 2022 में जया एकादशी 12 फरवरी, शनिवार को पड़ रही हैं.
जया एकादशी शुभ मुहूर्त (Jaya Ekadashi 2021 Shubh Muhurat)
- जया एकादशी 2022
- शनिवार, 12 फरवरी 2022
- एकादशी तिथि शुरू: 11 फरवरी 2022 दोपहर 01:52 बजे
- एकादशी तिथि समाप्त: 12 फरवरी 2022 अपराह्न 04:27 बजे
- जया एकादशी पारण का समय: 13 फरवरी 2022 पूर्वाह्न 07:01 बजे से 09:15 बजे तक
जया एकादशी कथा । Jaya Ekadashi vart katha
प्राचीन समय की बात है कि, नंदन वन में समारोह चल रहा था. जिसमें सभी देवता, सिद्ध संत और दिव्य पुरूष वर्तमान मौजूद थे. उत्सव में गंधर्व गीत कर रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य की प्रस्तुति दे रही थीं. सभा में माल्यवान नामक एक गंधर्व और पुष्पवती नामक गंधर्व कन्या का नृत्य चल रहा था. इसी बीच पुष्यवती की नज़र जैसे ही माल्यवान पर पड़ी वह उस पर मोहित हो गई. अब हुआ यूं कि पुष्यवती उत्सव की मर्यादा को भुलाकर मदहोश हाेकर नृत्य करने लगी. ताकि माल्यवान उनके नृत्य की ओर आकर्षित हो. माल्यवान गंधर्व कन्या की भंगिमा को देखकर सुध बुध खो बैठा और गायन की मर्यादा से भटक गया जिससे सुर ताल उसका साथ छोड़ दिया.
इन्द्र को पुष्पवती और माल्यवान के अमर्यादित हरकतों पर बेहद ही गुस्सा आया. आक्रोशित होकर उन्होंने दोनों को श्राप दे दिया. जिससे दोनों स्वर्ग से वंचित होकर बाहर निकल गए. दोनों पृथ्वी पर रहने का निर्देश दिया गया. श्राप में इंद्र ने कहा कि, मृत्यु लोक में अति नीच पिशाच योनि आप दोनों को मिले. श्राप के फलस्वरुप दोनों पिशाच बन गए. पिशाच बनने के बाद दोनों हिमालय पर्वत पर एक वृक्ष पर रहने लगे. जहां पर दोनों को अत्यंत कष्ट भोगना पड़ा. एक समय की बात है कि माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिनों में दोनो पिशाच दुख काट रहे थे.दोनों केवल फलाहार ही कर रहे थे. अत्यधिक ठंड के कारण दोनों की मृत्यु की हो गई, लेकिन अनजाने में दोनों से जया एकादशी का व्रत हो गया. दोनों को पिशाच योनि से मुक्ति भी मिल गयी. अब माल्यवान और पुष्पवती पहले से भी सुन्दर हो गयी और स्वर्ग लो में उन्हें स्थान मिल गया.
देवराज इंद्र ने जब दोनों को देखा तो वह भौंच्चके रह गए. और पिशाच योनि से मुक्ति कैसी मिली यह पूछा. माल्यवान के उत्तर देते हुए कहा कि यह भगवान विष्णु की जया एकादशी का प्रभाव है. उन्होंने पूरी कहानी देवराज इंद्र को सुनाई. इन्द्र इससे अति प्रसन्न हुए और कहा कि आप जगदीश्वर के भक्त हैं.जो उपासक या श्रद्धालु इस एकादशी का व्रत रखते हैं उन्हें दशमी तिथि से को एक समय फलाहार करना चाहिए.
जया एकादशी व्रत विधि (Jaya Ekadashi 2022 Vrat Vidhi)
व्रत का पालन करने के लिए इस दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठें. जिसके बाद स्नान करें. भगवान विष्णु की पूजा करें. जिसके बाद व्रत का संकल्प लें. पूजा स्थान पर भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें. धूप, दीप, चंदन, फल, तिल, पंचामृत से पूजन करें. दिनभर व्रत के नियमों का श्रद्धा से पालन करें और रात के समय जागरण करें. अगले दिन द्वादशी को पूजा-पाठ के बाद दान करें और पारण करें.
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