ममी बनाने के लिए शव पर लेप चढ़ाया जाता था, लेकिन लेप में किन पदार्थों का मिश्रण होता था और किस तरीके से उनका इस्तेमाल होता था, इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी. अब कुछ ऐसी जानकारियां मिली हैं जो हैरान कर सकती हैं.
वैज्ञानिकों ने मिस्र में ममी बनाने की एक प्राचीन जगह का पता लगाया है. यह एक अभूतपूर्व खोज है. इससे ममी बनाने की जटिल प्रक्रिया के बारे में काफी ज्यादा जानकारी मिली है. साथ ही, प्राचीन मिस्र में प्रचलित चित्रलिपि के बारे में भी जानकारी मिली. मिस्र की राजधानी काहिरा से लगभग 30 किलोमीटर दूर सक्कारा में स्थित यह जगह लगभग 664-525 ईसा पूर्व की है. यहां जमीन के नीचे 30 मीटर तक एक भूमिगत संरचना और कई भूमिगत कमरे मिले हैं.
इस जगह का पता 2016 में चला था. तब से शोधकर्ता लगातार इस पर शोध कर रहे थे. यहां कई बीकर और कटोरे मिले. इन बर्तनों की जांच से पता चला है कि ममी बनाने में जो सामग्री इस्तेमाल होती थी वह दक्षिण पूर्व एशिया तक से लाई जाती थी. इसका मतलब है कि इसके लिए एक बड़ा व्यापार नेटवर्क भी था.
छिपी हुई विधि
अब तक वैज्ञानिकों को ममी बनाने की प्रक्रिया के बारे में जो भी जानकारी हासिल हुई है वह अधिकांश पेपाइरस पर लिखी किताबों, यूनानी इतिहासकारों और मिस्र में मिली ममियों से प्राप्त हुई है. इन स्रोतों से पता चलता है कि ममी बनाना एक जटिल प्रक्रिया थी, जिसमें विशेष तेलों, रेजिन और टार के मिश्रण का इस्तेमाल किया जाता था. हालांकि, वैज्ञानिक पूरी तरह से यह पता नहीं लगा पा रहे थे कि ममी बनाने के लिए इन पदार्थों का क्यों और किस तरह से इस्तेमाल किया जाता था. वे सभी पदार्थों की जानकारी हासिल नहीं कर सके थे.
पुरानी किताबों में कई पदार्थों के नाम दिए गए हैं, लेकिन उनका अनुवाद करना चुनौतीपूर्ण है. इसलिए, अभी भी इस बात पर बहस चल रही है कि किस पदार्थ का नाम क्या है. शोधकर्ता प्राचीन ममियों में पाए जाने वाले पदार्थों का विश्लेषण कर पाते थे, लेकिन अक्सर यह नहीं बता पाते थे कि उनका इस्तेमाल क्यों, कैसे या शव के किस हिस्से पर किया जाता था.
लेबल वाले कंटेनर मिले
नेचर जर्नल में बुधवार को प्रकाशित नए अध्ययन के मुताबिक, लेखकों ने पाया कि शोधकर्ताओं को ज्यादा जानकारी पाने के लिए किस चीज की जरूरत थी. शोधकर्ताओं को 600 ईसा पूर्व के ममी बनाने की जगह से लेबल वाले 31 सेरामिक कंटेनर मिले, जिनमें अभी भी कुछ पदार्थ भरे हुए थे. कुछ कंटेनर पर इस बात की भी जानकारी दी हुई थी कि कुछ खास पदार्थों का इस्तेमाल कैसे और कहां करना है.
उदाहरण के लिए, एक कंटेनर पर यह लिखा था कि इस पदार्थ का इस्तेमाल सिर पर लेप लगाने के लिए किया जाना चाहिए. वहीं, एक अन्य पर लिखा था कि इसका इस्तेमाल सुगंध के लिए किया जाना चाहिए.
काहिरा स्थित अमेरिकी विश्वविद्यालय में इजिप्टोलॉजी की प्रोफेसर सलीमा इकराम ने डॉयचे वेले को बताया, “इससे पहले हुए अध्ययन में हमें कई पदार्थों के नाम की जानकारी हासिल हुई थी, लेकिन हमें यह नहीं पता था कि उनका इस्तेमाल किस तरह किया जाना चाहिए. हमने बस यह मान लिया था कि वे किसी न किसी काम में इस्तेमाल किए जाते थे.” इकराम उस अध्ययन में शामिल नहीं हैं जो नेचर जर्नल में प्रकाशित की गई है.
मिस्र की भाषा के बारे में जानकारी
सक्कारा के एक बड़े प्राचीन कब्रिस्तान में पुरातत्वविदों, प्राचीन भाषा के विशेषज्ञों और रसायन विशेषज्ञों ने एक साथ मिलकर अध्ययन किया. जर्मनी के म्यूनिख स्थित लुडविग मैक्सिमिलियान विश्वविद्यालय में पुरातत्व विभाग के प्रोफेसर और अध्ययन के सह-लेखक फिलिप स्टोकहामर ने प्रेस वार्ता में कहा, “हमने बर्तन के अंदर मौजूद रासायनिक पदार्थों की पहचान की और कंटेनर पर लगे लेबल से पता लगाया कि उनका इस्तेमाल किस काम के लिए किया जाता था.”
ऐसा करके शोधकर्ताओं को पता चला कि पहले वे जिन शब्दों का जो मतलब समझ रहे थे वह गलत था. जैसे, प्राचीन मिस्र के शब्द ‘एंटीयू’, जो पारंपरिक तौर पर लोहबान से जुड़ा हुआ है. इसी तरह ‘सेफेट’, जिसे पारंपरिक रूप से अज्ञात तेल बताया जाता रहा है. इस बार के शोध में शोधकर्ताओं ने पाया कि ‘एंटीयू’ का मतलब लोहबान नहीं, बल्कि जानवरों की चर्बी और देवदार के तेल का मिश्रण है. वहीं, ‘सेफेट’ भी एक सुगंधित लेप है, जो साइप्रस या एलेमी पौधे के तेल का मिश्रण है.
वैज्ञानिकों को एलेमी जैसे उष्णकटिबंधीय रेजिन भी मिले, जो शायद दक्षिण-पूर्व एशिया या अफ्रीकी वर्षा वनों से लाए गए हों. दोनों अपनी सुगंध, एंटी-बैक्टीरियल और एंटीफंगल गुणों के लिए जाने जाते हैं. स्टोकहामर ने कहा, “इससे हमें पता चलता है कि ममी बनाने के कारोबार से वैश्वीकरण की शुरुआत हो चुकी थी, क्योंकि दक्षिण-पूर्व एशिया से रेजिन लाने के लिए परिवहन के साधनों की जरूरत होती होगी.”
मिस्र और यूरोप की सहभागिता
खोज स्थल से मिले सेरामिक कंटेनरों का विश्लेषण करने की जरूरत थी, लेकिन मिस्र का कानून शोधकर्ताओं को देश से प्राचीन नमूनों को बाहर ले जाने की अनुमति नहीं देता है. इसलिए वैज्ञानिकों ने नमूनों का विश्लेषण करने के लिए काहिरा स्थित राष्ट्रीय अनुसंधान केंद्र में शोध किया. अध्ययन की सह-लेखिका सुजाने बेक ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि आपसी सहयोग की कमी की वजह से ही अब तक इस तरह के शोध नहीं हो पाए थे.
नमूनों का विश्लेषण करने के लिए शोधकर्ताओं ने सेरामिक कंटेनरों का पाउडर बनाया और सॉल्वैंट के साथ मिलाकर लेपन की सामग्री को अलग किया. इसके बाद, उन्होंने गैस क्रोमैटोग्राफी मास स्पेक्ट्रोमेट्री नामक एक प्रक्रिया की मदद से उनका विश्लेषण किया. कनाडा स्थित यॉर्क विश्वविद्यालय और टुइबिंगेन स्थित एबरहार्ड कार्ल्स विश्वविद्यालय में पुरातत्व विभाग के प्रोफेसर व अध्ययन के सह-लेखक स्टीफन बकले ने कहा, “इस प्रक्रिया में लेप बनाने की विधि में इस्तेमाल किए जाने वाले प्रत्येक पदार्थों का रासायनिक विश्लेषण किया गया.”
बकले ने कहा कि इस प्रक्रिया के तहत, पदार्थों को अलग-अलग किया जाता है. इसके बाद, हर पदार्थ में शामिल तत्वों की खोज की जाती है. इससे शोधकर्ताओं को पता चलता है कि किन मूल तत्वों का इस्तेमाल ममी बनाने की प्रक्रिया के दौरान किया गया.