जिंदगी में 'दर्द' शायरी

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BY - KAMLESH VERMA

अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसे  तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आएँ कैसे

ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया  जाने क्यूँ आज तेरे नाम पे रोना आया

नींद तो दर्द के बिस्तर पे भी आ सकती है  उनकी आग़ोश में सर हो ये ज़रूरी तो नहीं

नींद तो दर्द के बिस्तर पे भी आ सकती है  उनकी आग़ोश में सर हो ये ज़रूरी तो नहीं

बेनाम सा ये दर्द ठहर क्यूँ नहीं जाता  जो बीत गया है वो गुज़र क्यूँ नहीं जाता

अब के सफ़र में दर्द के पहलू अजीब हैं  जो लोग हम-ख़याल न थे हम-सफ़र हुए

दर्द सा दर्द है भरा उसमें टूटे दिल की सदा को रोते हैं

पहलू का दर्द कैसा है ये तो बताइए देखूँ मैं नब्ज़ हाथ तो अपना बढ़ाइए

अब तो ख़ुशी का ग़म है न ग़म की ख़ुशी मुझे  बेहिस बना चुकी है बहुत ज़िंदगी मुझे

अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें  कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं

दर्द जितना भी उसे बेदर्द दुनिया से मिला शायरी में ढल गया कुछ आँसुओं में बह गया